Friday, August 16, 2019

नीम और गुलाब


Conversation between NEEM And ROSE
🥀ROSE --- तऽ चचा और सब ठीक है न...
🌿NEEM--- हाँ भीया मिलाजुला के सब ठीके है आप सब की कृपा से , और अप्पन सुनाबऽऽ
🥀ROSE --- अरे का बताएं रोज मलिया आता है और बाल- बुतरू के तोड़ के लेके चल जाता है , आप ही ठीक हैं जी कोई तंग नहीं करता है l
🌿NEEM - आऽऽऽ बुआ आप नहीं जानते हैं न अबरिये न नागपंचमी मे हाथ गोड तोड़- ताड़ के सब  ठूठ कर दिया है l तुम्हीं ठीक है हो दो दिलों को जोड़ते तो हो।
🥀ROSE - हाँ जी किसको मन करता है कि बेटा के बलि देकर दो दिलों को जोड़ें , लेकिन क्या किया जाय उनका (गुलाब का )  कर्म ही वही है, तो अपने कर्म से पीछे कैसे हटें।
🌿NEEM - ये तो है भाई 😢, अरे काहे फिक्र करते हो कर्म ही पूजा बाला नारा नहीं सुने हो का ,पृथ्वी पर अमर कौन आया है, अच्छा है न बुआ की किसी की जिंदगी का मिठास बन रहा है l
एगो हम हैं कि दूरहीं से लोग नफरत करते हैं l
🥀ROSE --- हाँ ये तो है, अरे हम तो चाहते हैं कि तोरे नियन हमको भी काट - कूट के ठूठ कर दे लेकिन बचवन के छोड़ दे l लेकिन ई कांटा-कूसा से किसको लगाव है I
🌿NEEM --- ऐसन बात कहते हो कि बउआ.. अरे जो पिता इस तरह के पुत्र को जन्म दे उसकी बराबरी भला हम कैसे कर सकते हैं। तुम धन्य हो भाई की ऐसे पुत्र को जन्म देते हो।
🥀ROSE - आपको लोग इज्जत की निगाहों से देखते हैं , शान से घर मे ले जाके आपकी डाली को खोसते हैं , आप तो इतने महान हो कि लोग आपको औषधि निर्माण मे उपयोग करते हैं।
एक हम हैं कि हमरा तो छोड़ ही दीजिये बेटवा के भी छिपा के अन्तर्वस्त्र मे  ले जाते हैं, शुभचिंतकों को देते हैं और इधर - उधर फेंक देते हैं गाड़ी घोड़ा आता है और चूर - चार के बर्बाद कर देता है l और कहीं अगर कोई एकतरफ़ा प्यार के शिकारी अपने काल्पनिक gf को गलती से दे दिया तब तो पूछिये ही मत  कंटीले (👠 हील बाला ) सैन्डल से मसल देते हैं l
🌿NEEM-- ई तो तू सरासर झूठ बक रहा है कि जहाँ- तहां फेंक देते हैं अरे एक्सेप्ट करने के बाद कितना इज्जत से, कितना प्यार से पुनः अन्तर्वस्त्र मे डाल कर घरवालों से बचते- बचाते हुए लौटा कर घर लाते हैं और प्रेम पूर्वक अपने डायरी की सुनहरे पन्नों मे रख देते हैं l औऱ समय समय पर निकाल कर याद करते हैं और फ्री मे लिपस्टिक का पान करवाते हैं 😂
🥀ROSE - अच्छा भीया अब बस करऽ बाल- बच्चा के बारे मे में ऐसे बोलते हैं अच्छा लगता है क्या , चलऽ छोड़ऽ ऊ सब.
और बताइए नश्ता पानी हो गया I
🌿NEEM-- तोरे नियन गमला मे नही न रहते हैं भीया की प्रेम के माली पानी देने आयेंगे जहिया इंद्र भगवान के दिमाग में चुठरी खटपटायेगा ओहिया नास्ता और भोजन सब एक ही बार हो जाएगा। लगता है कि तोहरा मिल गया है। ठीक है जाइए जलपान कीजिए है न....
🥀ROSE -... जी ... Byy मिलते हैं फिर कभी है न.....
NEEM 🌿- ठीक हको byy....




Saturday, August 3, 2019

लास्ट पेज ऑफ द् कॉपी..

                       लास्ट पेज ऑफ द् कॉपी 

कॉपी का लास्ट पेज हमेशा इसी ख्याल में रहता होगा कि ना तो बेचारे की लाइफ का कोई पता है और ना ही इसका पता है कि कब कौन क्या लिख कर चला जाए। पीछे वाली कूट से चिपके उस पेपर को यह भी पता नहीं होता कि कब कहां पटका जाएगा या कब बारिश की पानी में डूब जाएगा। परंतु हमेशा इस आत्मविश्वास के साथ जिता है कि लेखक इसके मदद के बिना किसी साफ-सुथरे पेज को नहीं भर सकता।
जब कभी कोई कलम नहीं चल रहा हो झट से पीछे वाले पेज पर रगड़ देते हैं। न फटने की परवाह और ना ही गंदा होने का डर। जब भी कोई मामूली सा फार्मूला लिखना हो या कोई छोटी सी कैलकुलेशन करना हो तो झट से आखिरी पेज पर ही हमारी उंगलियां दौड़ जाती है। जब कभी किसी ने थोड़ा सा पेपर मांग लिया तो आखिरी पेज का बलिदान देने में जरा सा भी नहीं सकुचाते। जब कभी गुनगुनाने का मन कर रहा हो या बेवजह भी एक कलम आखिरी पेज को ही अपना साथी बना लेता है।
इन्हीं ख्यालों के साथ एक दिन जब पुरानी कॉपियों के लास्ट पेज को निहारना शुरू किया तो यह दिल खुशी से झूम उठा सारी बातें एक साथ याद आने लगी।
कहीं घर की सामग्री के फटे हुए लिस्ट, कहीं बेमतलब की शायरियां, कहीं-कहीं 8-10 सिग्नेचर जो कि महानुभावों ने बेमतलब घसीट दिए थे, कहीं कुछ अटपटे सवाल और कहीं- कहीं संस्कृत के कुछ हलंत विसर्ग।
मेरे खयाल से तो आखिरी पेज जितना इंट्रेस्टिंग कॉपी का कोई और पेज ही नहीं होता क्योंकि इस पेज के ऊपर ना तो VVI का मुहर होता है और ना कि किसी होमवर्क का।




Saturday, June 29, 2019

STEPS TOWARDS COACHINGS

  Coaching is a word formed by word coach that mean instructor.  India is an awared country in the field of education. Every parents want their child do something good for which whatever they need to do. 
  Coachings played a very important role in my life and till now. When I was only 4years old my guardian sent me to an elder sister for tuition for 2 hours. On that time I used to go to the Anganwadi. Time passed by its own speed and time to time I studied in many coaching centres with approx 20 different teachers. So I have a lot of experience as well as knowhow the needs of a coaching centre. Literally coaching is place where teachers try to give their best so not besause they wants to spread education around us but because they want an intelligent student for advertisement by which they can earn money.
           In now a days approx 7 crore students are studying in the coaching centers around India. Kota is known for a coaching hub in our country for preparation for IIT & NEET. These Coachings demandas a large amount from every student. Can’t say all the desirous join them but too many children are fighting with their fate.
A poor father arranges these money by doing hard work and taking loans just because his child could be do well. But parents as well as the student himself don’t understand that their child can do this or not. Some students are ofcourse succeed but not all. The students who failed some of them want to suicide and they do. Do you know why? They thinks that their parents how arranged money and he has failed despite hard work too.
Quarter of Indian student who are studying in  the Coachings are not happy. They always want to get away from there as soon as possible.
When I used  to study in the coachings in the junior classes, then the situation that time was such that the teacher who used to come in the government school, they do not worked properly. Due to this I have joined and I think that the same conditions exist today. The same teachers who teaches in the school teach better in their private Institute than he teach in the government school.
In today’s time there is not being regular classes and they loss the precious time of the precious students.
True to say that the people have changed the literal meaning of tuition, in these days it has taken the form of a bussiness.
Recently approx 2dozens students were died due to fire braked at a coaching in the gujrat(INDIA)……

(कोचिंग शब्द कोच से बना एक शब्द है जिसका मतलब होता है प्रशिक्षक।
     भारत शिक्षा के क्षेत्र में एक जागरुक देश है।  हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा कुछ अच्छा करे, जिसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े।
   कोचिंग ने मेरे जीवन में और अब तक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  जब मैं केवल 4 साल का था तो मेरे अभिभावक ने मुझे 2 घंटे की ट्यूशन के लिए एक दीदी के पास भेजते थे ।  उस समय मैं आंगनवाड़ी जाता था।  समय अपनी गति  के साथ बितता गया , मैंने कई कोचिंग सेंटरों में लगभग 20 विभिन्न शिक्षकों के साथ अध्ययन किया है।  इसलिए मेरे पास कोचिंग की आवश्यकता की और उनमे पढ़ाई का अच्छा अनुभव है। वस्तुतः कोचिंग वह जगह है जहाँ शिक्षक अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करते हैं इसलिए नहीं कि वे हमारे आसपास शिक्षा का प्रसार  कर सकें, इसलिए कि वे विज्ञापन के लिए एक बुद्धिमान छात्र चाहते हैं जिससे वे पैसे कमा सकें।
             आज के समय दिन में लगभग 7 करोड़ छात्र भारत में  कोचिंग सेंटरों में पढ़ रहे हैं।  कोटा IIT और NEET की तैयारी के लिए हमारे देश में कोचिंग हब के लिए जाना जाता है।  ये कोचिंग एक छात्र से बड़ी मात्रा पैसा की में मांग करते हैं।  यह नहीं कह सकते कि सभी वांछित व्यक्ति उनके क्लास जॉइन कर लेते हैं लेकिन बहुत सारे बच्चे अपने भाग्य से लड़ रहे हैं।
 एक गरीब पिता मेहनत करके और कर्ज लेकर इन पैसों का इंतजाम सिर्फ इसलिए करता है ताकि उसका बच्चा अच्छा कर सके।  लेकिन माता-पिता के साथ-साथ छात्र स्वयं भी यह नहीं समझ पाते हैं कि उनका बच्चा ऐसा कर सकता है या नहीं।  कुछ छात्र जरूर सफल होते हैं लेकिन सभी नहीं।  जो छात्र असफल हुए उनमें से कुछ आत्महत्या करना चाहते हैं और वे करते हैं।  तुम जानते हो क्यों?  उन्हें लगता है कि उनके माता-पिता ने पैसे की व्यवस्था कैसे की और वह कड़ी मेहनत के बावजूद भी असफल रहे।
 भारत के एक चौथाई छात्र जो कोचिंग में पढ़ रहे हैं वो कदापि खुश नहीं हैं वे। हमेशा जल्द से जल्द वहां से हट जाना चाहते हैं।
 जब मैं जूनियर कक्षाओं में कोचिंग में पढ़ता था, तो उस समय स्थिति ऐसी थी कि जो शिक्षक सरकारी स्कूल में आते थे, वे ठीक से काम नहीं करते थे।  इसके कारण मैं कोचिंग लिया और मुझे लगता है कि आज भी वही स्थितियां हैं।  सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले वही शिक्षक अपने निजी संस्थान में बेहतर पढ़ाते हैं।
 आज के समय में नियमित कक्षाएं नहीं चल रही हैं और वे कीमती छात्रों के बहुमूल्य समय को नुकसान पहुंचाते हैं।
 यह कहना उचित होगा कि लोगों ने ट्यूशन के शाब्दिक अर्थ को बदल दिया है, इन दिनों  यह केवल एक बिजनेस का रूप ले लिया है।
 हाल ही में लगभग 2 दर्जन छात्रों की मौत गुजरात (भारत) के एक कोचिंग में आग लगने के कारण हुई थी....

Thursday, June 27, 2019

Aaltu - Faltu [2]

"Kado" is a pure magdhi word. Its literally hindi meaning is keechad. Word 'paanka ' is used as its synonym. When the clay soil or Black soil are mixed with water, 'Kado 'is formed. In the rainy season sometime when rains, these type of soil convert into a very hard paste that is called ' Kado '.   Due to frequently walking of human as well as animals its condition worsens worse.when Somewhere on the clean place it's smells good as the earth's clay but near at any chamfer it smells very messy. I remember that when I was child. I used to go to our farm and market via' Kado ' with my grandfather. On those days my grand father wanted to save me from kado and I wanted to walk on that doing splash. On that time I thought that that was a short time  problem for villagers but now, I want to walk on it. but where do I get it these days. Now  that types of streets not present in our society.       Kado is used in our culture for celebrating Holi.while farming of paddy starts all of the  first seeds are bown in the Kado. In the previous eras Kado was used as the house builder cement and some houses were made by only Kado.

                    ... Don't know where those days went. 

Saturday, May 25, 2019

50p से Rs.10 तक का सफर..

एक वक़्त था जब डमरू की आवाज सुनकर हाँफते-हाँफते कुल्फीवाले के तरफ दौड़ता था, पीछे से दादा की आवाज आती "आठ आना वाला दु-तीन गो दे देहीं हो" और हाँथ मे चार कुल्फी आ जाता (सबके लिए एक-एक ) थोड़ी देर बाद किसी तरह से लेकर घर पहुंचने पर जब दादी हाँथ से तीन आइस्क्रीम लेतीं तब जाके जान मे जान आती थी।
....................आजकल का तो आइसक्रीम भी अमीरी की बुलंदियों को छू रहा है, 10 रुपया से कम वाला ठेले के अंदर जाता ही नहीं है (बड़ी संयोग से 5 बाला)।
        ना जाने कहाँ चले गये वो दिन... 

Friday, May 24, 2019

AALTU-FALTU [1]

Topic:The fitta of chappal (lace of the slippers) 

it is the things that is used to hold our feet with chappal. it is made by Rubber, leather, and some plastic also. sometime when is breaks, creates a huge problem for its owner. the person whose fitta of the chappal breaks feels very insult and with 0% interest carries chappals in his hand and moves barefoot on the road.

Wednesday, May 1, 2019

If not you, then who?

People care properly while designing their home. Each member of the family inspects all the ingredients used in building the building. Nobody goes out of his house for inspection When the road construting in their locality because they thought that is the "property of the government". And they thought that they can not do this because they are ordinary people, they will be scolded by the labor and contractor. Either they are afraid or do not take responsibility and make excuses. And the same people abuse the government when they lose lakhs of property due to not being cared for.
           Hey! Lovely people, you should take responsibility for you because the money which is being invested in these works is not of the government, the contractor and does not belong to any workers. that is yours dear public.hey! Partners please leave your house Check these workers, see all the materials and interrogate the contractor. If not you, then who?
People spend thousands of rupees for Palembar services in their home. But many liters of water flows because of not having a tap of only 50 rupees. Just think you say save water, save water ... Hey! Stupid who will save the water? Government? Plumber? ... No, you are responsible for this. I am not telling you that give them important hours for them, but you can give at least 2 hours of 1 week for these.
When I was in middle school, some doors and windows were broken. I came to know that the student who did not get the scholarship broke it. But why brother? Have you got scholarships? No! .. this is your mentality that the things that were broken by you were of the government.No dear that was yours.You should complain in the BEO., DEO. You were a child at that time but your parents could help you. So try to take action, waste does not solve any problem.
            The government can provide you a street lamp, but can it turn it onn or off, that ? Do not you have a few minutes to turn off Street Light? that is your responsibility guys. If you do not then who??

https://youtube.com/shorts/rpabfOGZ72M?si=Fa81A3tRSoBd8XWE


 

Thursday, March 28, 2019

January's morning 2000

That January's morning 2000

A 50-60 years old lady carried an infant lying on her lap. A 3ft cot, a bed and a bowl of oil carried in her another hand. She was climbing on the stairs as if she was on the straight street.
When the grandfather saw, he said that she may fall down with her baby. But he could not even help because till then the woman had completed the journey of HIMALAYAS...
Love you grandma.
                           Your Kumãr

जनवरी की वो सुबह 

एक ५५-६० वर्ष की नारी बाएं हाँथ के सहारे १ माह के शिशु को गोद मे लिए हुए और दूसरी हाथ मे कांपते हुए 3ft का खटिया, बिस्तर और तेल की कटोरी लेकर बिना किसी से help लिए सीढ़ियों पर कुछ यूँ चढ़ रही थीं जैसे सीधी सड़क हो...
मन मे उल्लास और हाथों मे दम इतना था कि छोटी मोटी परेशानियां हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी पास आने की।
जब दादा ने देखा तो कहा कि "अपने भी गिरतय और बुतरुओ के गिरयतय"..चाह कर भी help ना कर सके क्यूँकि तबतक तो अबला ने हिमालय की यात्रा पूरी कर ली थी।
लव यू दादी
           आपका कुमार
Kuchh yu scene tha Jb hum aaye the.. 😄😄

Friday, March 22, 2019

इंटरनेट की पुरानी यादें...


जब 9th में थे तो nokia का एक फोन हुआ करता था।हाँ याद आया Nokia 2626. पापा मम्मी को बस ये पता था कि उस से सिर्फ बातें हो सकती थी। But हमको पता था कि उसमे इंटरनेट  भी चलता था। और इंटरनेट का मतलब बस google और facebook. Idea भी कमाल का कंपनी है हो किफायत मे ही काम चला देता था। एकंगरसराय पीएनबी  के नीचे एक photocopy का दुकान है वही से 5 rupees का 30mb valadity 1din का रीचार्ज करवाता था। और घर आते आते 5-6 बार चेक कर लेता था कि इंटरनेट चल रहा है या नहीं और mb कट रहा है कि नहीं। घर आके जैसे भगवान् को ध्यान करते हैं ना वैसे ही Setting पे Click करता और data connection ऑन करता। फिर web browser के bookmark को खोलता और google पर Fb सर्च करता था।1.5 इंच के स्क्रीन पर 3 min तक गोल चकरी घूमते घूमते welcome to Facebook show करता।खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता था।जल्दी जल्दी id और password डालता और फिर 3 min गोल गोल घूमने का इंतजार करता था। मुस्किल से खुलने के बाद गिने चुने फ़्रेंड्स की तस्वीरें देखकर यूँ खुश होता था जैसे कौची इनवेंट कर दिए हैं। फिर ठुकूर-ठुकूर (2g)टेक्नोलॉजी के जरिए कुछ लोगों से hyy byy करता था। तबतक क्लास का टाइम हो जाता था। क्लास से आता तो टेंशन रहता की 20 mb अभी और खतम करना है नहीं तो approx 3 rupee का हानि हो जाएगी और इधर ये भी डर की दादा डांटेंगें की पढ़े के त खेल करे मे लगल रहता है।तब भी किसी तरह से 12 बजे तक खतम कर ही देता था वो भी लालकिला, ताजमहल, गुलाब etc का pic. डाउनलोड करके।          
उस वक़्त सोचता था कि काश बड्डा सा फोन होता जिसमे ढेर सारे बैलेंस होते, और सब दोस्तों से खूब सारी बातें करते....
‌Aaj बड्डा सा फोन भी है,डाटा भी खूब हैं, कॉलिंग भी फ्री है, but वो सारे दोस्त कोशों दूर हैं।
‌miss you yaaron

Monday, March 18, 2019

गाँव की पार्टी


स्कूल से आया  तो मम्मी बताई की आज न्योता (निमंत्रण) आया है, पूर्वारी टोला से। मुंह में पानी भर आया और दिमाग assume करना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद जब क्रिकेट खेलने गया तो वहाँ सबने verify किया कि सबके पास न्योता आया है। और सब खुश थे कि एक साथ बैठकर खाएँगे आज।जल्दी- जल्दी एकाध मैच खेलकर घर आ गये सब। क्यूंकि डर था कि कहीं हम छूट ना जाएं। आज ना तो लालटेन साफ किया और ना ही पढ़ने को बैठा। दिमाग कही ठहर ही नहीं रहा था। तभी दादाजी बुलाए और पूछे की आज पढ़ नहीं  रहा है हो।लड़खड़ाते मुँह से निकला बाबा आज ना।दादा मेरे बहुत प्यारे हैं मान गए लेकिन गोद में  लेके ओरल ही शुरू कर दिए। मुझे भी मजा आया क्यूंकि सबकुछ तो याद था ही। 
     तभी एकाएक दरवाजे की खटख़टाहट सुनाई दी और गोद से उठकर दरवाजे की तरफ भागा और पीछे पीछे दादा। दरवाजे खोला तो दादा से एक आदमी बोले बीज्जै हको चचा (मतलब खाना स्टार्ट हो गया है)।उत्सुकता मेरी आसमान छूने लगी। फिर दादा एक हाथ से टार्च और  दूसरी हाथ से मेरी हाँथ को पकड़कर चले। 
जब पहुंचे तो किसी तरफ से सब्जी की महक ,किसी तरफ से मिठाइयों की सुगंध आ रही थी। तभी सब दोस्त धीरे धीरे पास आने लगे। और देखते ही देखते 8-10 महापुरुष एक जगह खड़ा हो गए। सब के दिल मे एक ही अभिलाषा थी कि कितना जल्दी जल्दी खाने को मिले। तभी प्रबंधक महोदय आए और सबको बैठाने लगे। हमसब बच्चे एक साथ बैठे और सबके  Guardian जस्ट ऑपोज़िट साइड में बैठे। और बार बार हमलोग को हल्ला करने से मना कर रहे थे। but हमनी कहाँ तो सुनाने बाले थे ।देखते देखते पत्तल(plate) परोसा जाने लगा। झटपट हमलोग अपने -अपने हाथ और पत्तल को धो लिया। तभी दादाजी बोले कि हम्मर दंतीया छूट ना गेलौ पवन (मेरे दादाजी हैंड मेड दाँत लगाते हैं वही वाला)।ना टार्च लिया ना चप्पल पहना, सरपट घर की तरफ भागा और एक साँस में दौड़कर ले आया। दादा खुश भी हुए और डांटे भी थोरा सा। तबतक परोसा जा चुका था but अभी खाना शुरू नहीं किया था लोगों ने क्यूंकि चटनी परोसना अभी भी बाकी था .
पत्तल की तरफ देखा तो खाने का बड़ी मन कर रहा था। लेकिन जबतक सबकुछ परोसा ना जाए तबतक हाँथ लगाना सख्त मना था। फिर भी किसी तरह से छुप छुपा कर आधा रसगूल्ला खा ही गए। चटनी परोसा गया और सब ने जी भर के खाया और फिर सारे दोस्त अपने अपने घर की तरफ चल दिए....

बचपन के वो दिन

                        बचपन की वो यादें...                  

सुबह में खाना खाते – खाते या कभी उस से पहले 5-6 लोगों की एक टोली,कुछ सहपाठी और कुछ जूनियर्स, मेरे घर के द्वार पर जमा होती थी, और उनके मुँह से एक ही बात निकलती थी पऽऽवऽऽनऽ…
ये सुनकर खाना खाने की रफ्तार 300km/h, और दादी की जिह्वा पे एक ही वाक्यांश repeat हो जाती थी “अब एरा खाल हो गेलौ”....मम्मी भी वही की “खा ले बेटा अभी ओखनी हीएँ परी हथिन”। इनलोगों को अपने शब्द पूरा करते-करते मेरा drybathe हो जाता था, फिर स्कूल ड्रेस किसी तरह से तिर खींच कर शरीर पे चढ़ जाता था। आँगन के सामने 5 खाने बाली अलमारी से कुछ कॉपी किताब और एक बोरा कंधे पर रखकर सरपट दरवाजे की तरफ भागता था (बैग का प्रचलन तो मेरे ज़िन्दगी मे इंटरमीडिएट से शुरू हुआ)। फिर शुरू होता था आजाद परिंदों का सुहाना सफर,उछलते-कूदते-गुनगुनाते हुए स्कूल की आधी दूरी तय करने के बाद सबके पाँव थम से जाते थे, और तब हमारे कोमल हाँथ काँटों मे छिपी गुलाब की कलियों को तोड़ने लगती थी। गुलाब बाली आंटी का संबोधन (चीचीए-भतिए तोड़ ले रे... ) सुनने से पहले सबके हाथ में एक – एक कली आ जाती थी। मुँह को मोटेर्साइकिल का भोंपू बनाकर इस कदर भागता था जैसे पकड़ा गए तो जबरदस्ती शादी कर दी जाएगी। स्कूल के सामने छोटा सा तालाब था वहाँ जाके सबके पैर रुकते थे और हांफते – हांफते देखते कि rose तो ठीक है न कि वो भी हाँफ रहा है। महीने मे 20 दिन तो 9 बजे से पहले ही पहुँच जाते थे, फटाफट बस्ता मंदिर के पीछे छिपा करके(तबतक 2-4 महापुरुष और शामिल हो जाते थे) खेलने लग जाते थे। जाड़े की धूप मे करेंट-बिजली, पहाड़-पानी, नुक्चोरीया (लुका-छिपी) खेलने मे वास्तव मे बड़ा मजा आता था। खेत में खेलते खेलते आरी पर हेडमास्टर साहिबा जिन्हें हमसब बड़े प्यार से बुढ़िया मैडम कहते थे, लायक भी थीं! दिख जाती तो सब रुक कर उनके पास आने का wait करते और पास आते ही national anthem की तरह सब एक साथ goood moornning madaaam चिल्लाते थे।फिर हम में से किसी एक को चाबी का गुच्छा (सुतरी में बंधा हुआ) मिल जाता था। वो महाशय भी खुद को मैडम का निजी आदमी समझ कर इतना खुश हो जाता कि जैसे Kiss मिल गया हो, फुदकते हुए जाके ताला खोलता। झारू – वारू लगने के पश्चात हमलोग का क्लास मे पदार्पण होता और उसके कुछ देर बाद sir आते। 1:30 बजे बिहार सरकार थाली लाने घर भेजती और फिर खाके पहुचाने का tension, जल्दी-जल्दी थाली घर पहुंचा के वापस स्कूल आता और सुबह का बचा हुआ टास्क पूरा करने फिर से खेत की तरफ। 4pm में छुट्टि होती पर हमलोगों की 3bje ही, घर पहुचते-पहुचते क्रिकेट का schedule set होता but मेरा selection pending में रहता था (due to mummy’s decision) तब भी किसी तरह से 4 बजे तक निकल ही जाता था, और संकुचाते हुए 6 बजे लौटता तो दर्जनो उपलब्धियां हासिल करने के बाद मूवी मे थोड़ा मार-धार का scene चलता। फिर कुछ यूँ मेरी सफाई की जाती जैसे FeSo4 लगे लोहे को saresh paper से की जाती है। रोते रोते लालटेन खोजता और सीसा साफ करके माँ सरस्वती का आवाह्न करता। फिर गरमा-गरम रोटियां खाता और सो जाता.........
Narrated by: Kumãr Pãvañ

शनिवार: अंक ७

  आतिश का नारा और धार्मिक कट्टरता से परे जब हम किसी धर्म के उसके विज्ञान की चेतना से खुद को जोड़ते हैं तो हमारा जीवन एक ऐसी कला का रुप लेता ...