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Thursday, September 15, 2022
Saturday, July 23, 2022
#कर्नाटक मामला
नीचे लिखे गए टिप्पणी को पढ़ने से पहले इस वीडियो को देख लें 👇 |
हालांकि हमारी संस्कृति सार्वजनिक स्थान पर किसिंग आदि गतिविधियों से बहुत अछूती रही है। लेकिन वास्तविकता यह है कि, हम अब 21वीं सदी में मौजूद हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम राम के युग में नहीं।
किसी भी समाज का विकास कई उतार-चढ़ाव अपने साथ लाता है। उनको संभालना, उनके बीच संतुलन बनाना और उन्हें इस्तेमाल करने का तरीका सीखना ही जीवन जीने की कला है।
यहाँ , कर्नाटक की घटना यह बताती है कि हममें (करीब 66 फीसदी आबादी) में कितना बदलाव आया है।
हम में से कोई भी प्राइवेट और प्राइविसी जैसे शब्दों से अनजान नहीं है। आप इसका क्या मतलब समझते हैं? क्या केवल एफबी पासवर्ड या एटीएम पिन?
हालाँकि मैं किसी भी सार्वजनिक स्थान पर किसी भावनात्मक प्रस्तुतिकरण की आलोचना नहीं कर रहा हूँ, लेकिन एक बार सोचिए कि आप क्या कर रहे हैं! आप अपने दोस्तों को चुनौती दिखा दे रहे हैं कि आप कितना प्यार का इजहार कर सकते हैं, और लड़कियों आप भी उन्हीं 66% में से हैं।
सभी वेबसीरीज, हॉलीवुड फिल्में वगैरह वगैरह जो आप देखने के लिए इस्तेमाल करते हैं वह हमारी संस्कृति से उतनी मिलनसार नहीं हैं ये आपको समझनी चाहिए।
वास्तव में आप खुद को गाली दे रहे हैं और नष्ट कर रहे हैं। और हाँ, आप यानी 66%।
दरअसल हम जिस शब्द का इस्तेमाल रिश्तों के लिए "प्यार" करते हैं, वह इन तौर-तरीकों में बिल्कुल गलत है और इस तरह हम धीरे-धीरे इसका वास्तविक अर्थ बदल रहे हैं। और इसी तरह के बदलावों के कारण हमारे माता-पिता और शुभचिंतक इस तरह के "प्यार" के आलोचक और खिलाफ हैं, तो आप दूसरी तरफ प्रभाव देख भी सकते हैं।
हालांकि मैं अब ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा। अपने आप में एक पागल प्रश्नकर्ता बनें और पूछें कि आप क्या कर रहे हैं, किस लिए कर रहे हैं? मुझे यकीन है कि आपको जवाब मिल जाएगा।
हालांकि मुझे यकीन है, लेकिन इतना भी यकीन नहीं है कि मेरे संपर्क में आने वाले लोग इस तरह की बेतुकी गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं, इसलिए इस मामले में ध्यान दें कि लड़की ने एक ऐसा मोड़ लिया जिससे पूरी तरह से परिदृश्य पलट गया । जिस लड़की को चूमते हुए देखा गया था , उसी ने केस दर्ज कर 8 लोगों को आईपीसी, पोस्को और आईटी की धाराओं में फेंक दिया। आप मानसिक रूप से काफी मजबूत हैं कि यह समझ सकें कि मैं क्या कहना चाहता हूं।
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Although our culture was used to be very untouched with the activities like osculation etc. at public place. But the realities is that, we are now existing in 21st century not in the era of Maryada Purushottam Ram.
The evolution brings many ups and downs in any society. Handling, making balance between and learning the way to use them is the art of living.
Here, the concern of the case of Karnataka shows that how much changes has been taken place in us (around 66% of the population).
None of us are unknown to the words like Private and Privacy . What does it really mean to you? Only FB password or ATM Pin?
Although I'm not criticising any emotional representations at any public place but think once what are you doing! You are challenging to your friends that how much love you can express. And the girls! you are also in that 66% .
All the webseries, Hollywood movies etcetera etcetera what you use to watch are not as fluent as for our culture that you should understand.
In reality you are abusing and destroying yourself and yourself means the 66%.
Actually the word we use Love for the relationship is absolutely wrong in these manners and in this way we are changing the real meaning of it gradually. And due to such shiftings our parents and wellwishers are very critical and against of the love of this kind, hence, you can see the effect on the other hand.
Nevertheless I won't tell anymore. Be a mad questioner to yourself and ask what are you doing for? I'm sure you will get the answer.
Although I'm sure but not sure enough that the people in my touch can act such absurd activities but notice in the case that the girl had taken a turn that completely flipped over the scenario. The same girl who is seen kissing files the case and threw 8 people under the acts of IPC, POSCO and IT. You are mentally strong enough to understand that what I want to say.
Tuesday, May 3, 2022
निस्तब्धता
चांद और सूरज दो शक्तियाँ हैं ब्रह्मांड की,
एक ही मंडल में पृथक चमकना व्यर्थ थोड़ी है ।
किसी का चले जाना अंत थोड़ी है,
दूरियाँ का आशय किसी को खोना थोड़ी है ।
खैर जो भी है... तुम्हें खोना, खोना थोड़ी है,
क्या हुआ जो तुम बिछड़े , किसी को पा लेना भी पाना
थोड़ी है ।
तुम प्राकृतिक रहो इस धरा पर,
गुलाब जो पसंद हो हमे तोड़ लेना जायज थोड़े है।
गिली आंखें और सूखी ज़बान, (महसूस करना)
खैर...
नि:शब्दता संवाद का अंत थोड़ी है ।
आँखें ढंक कर सत्य से ओझल होके,
प्रेम के लिए प्रेमी से मोह करना जायज थोड़े है।
की क्या हुआ जो हम विलग हो गए,
सत्य को स्वीकार कर मुड़ जाना नाजायज़ थोड़े है।
ज़ख्मों से अनजान तुम भी नहीं हम भी नहीं,
ये घाव को गहरा होने से बचाना नाजायज़ थोड़े है।
अंजाम जो भी हो, पता नहीं.... पर
इक बार ये सोंचो की स्वार्थ में जीना जायज थोड़े है।
बेशक वो मान लें हमारी चाहतें
पर जल का तैलीय स्पर्श स्नान थोड़े है।
जिंदगी का एक नायाब तोहफा,
और उसे भी कुबूल ना करना आसान थोड़े है।
पल पल की मुलाकात और हर दूसरे पल की एक आह,
क्या कहें ! मुलाकात शारीरिक हो जरूरी थोड़े है।
Sunday, February 6, 2022
वो शैल के आधार थे
मंदाकिनी के किनार थे
सींचे वो जीवन भर जिन्हें
उन पौधों के वो आधार थे
हैं से थे- हो गए
चंद कुछ अंतराल में
बिना बताये चल दिये
छोड़ के मझधार में
क्या कहें कितना बहे
अश्रु ही बस रह गए हैं
कल तो हम पौधे ही थे
आज वृक्ष बना दिए हैं
या वेदना को स्थान दें
कैसे करें स्थिर पर्वत?
और मंदाकिनी को किनार दें
वक़्त थे जो गुजार दें?
या अश्रु थे जो बिसार दें
कैसे गिनें उन जलकणों को
जिनको वो सम्भाले रखे थे
छोड़ दिया है आपने जो
तो ये न समझें निकल गए हैं
जिद मेरा बदला नहीं है
था जो कल तक मेरे हृदय में
गोद में बैठना हमे है
उंगली वो थामना अभी है
पीठ पर लदना अभी है
और पैर भी दाबना हमें है
ये वक्त था जो जीत गया है
साथ आपका छीन लिया है
छुपा लें हँसकर दर्द को भी
ऐसा कुछ बतला गया है
Tuesday, February 1, 2022
कितना खूबसूरत था वो पल!
खट... खट... खट... की आवाज कानों में गयी और आँखों ने अंगड़ाई लिया। खिड़की के ग्रिल पर बैठी वो चिड़िया सीसे पर चोंच मार - मारकर कब मेरे मन को स्वप्न भरे नींद से चहक और प्रफुल्लता में खिंच लायी पता ही नहीं चला। पहली ही मुलाकात में वो चिड़िया मेरे मन में घर बना ली।
जो हमें अच्छा लग जाता है हमारा इंसानी दिमाग उसका तदनंतर अवलोकन करने से नहीं चुकता। खुद के ऊपर हमारा असंयम का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है। गौर करने लगे। हर कुछ मिनट के बाद, बेवजह ध्यान उसकी ओर खिंचा चला जाता। जब ध्यान जाता तो आँख भरके देखता, फिर कभी शांत छोड़ कर लौट आता और कभी खिड़की खोल कर कोलाहल से उसे छेड़ देता और वो चिड़िया फटाक से फुर्र...
स्वच्छंद जीव को जब खुद आपके बंधन से लगाव होता हुआ दिखे तो आपकी प्रसन्नता बेहद बढ़ जाती है।
छोटी बहन से उसका जिक्र पाया, वो भी बहुत खुश होती थी चिड़िया के आने से। हमारा मन जब प्रसन्नता के गोते से उबरा तो ये दिमाग़ झट से प्रश्न कर बैठा। क्यों आती होगी ये चिड़िया, क्या ढूँढती होगी और क्या पा करके उड़ जाती होगी।
दोनों ने अंदाज़े लगाया कि - शायद वो खिड़की के छज्जे की छाँव के लिए आती होगी, शायद वो अन्न के दाने तलाशती होगी, शायद उसे प्यास लगी हो, या हो सकता है वो खिड़की में बने अपने प्रतिबिंब को देखने आती होगी।
मन ने कुछ टटोला और ये उसकी मुश्किलों को आसान करने के प्रयत्न में जुट गया। धान की कुछ बालियाँ ग्रिल से बाँध दिया और भोले बाबा के यहां जल ले जाने वाले मटकी में जल भर कर बाहर रख दिया। छुप कर प्रतीक्षा करने लग गए। उम्मीद से बहुत पहले उसने दस्तक दिया। अनबोली सी वो चिड़िया कब मुँहबोली बन गयी पता न चला।
हमारे शांत मुख और चंचल आंखें बस उसे निहार रहे थे। कभी धान के दाने खाती, कभी चोंच मारती, कभी उड़ के छज्जे के ऊपर जाती और फिर से आके वहीं बैठती। उसकी क्रीड़ा से भरी क्रियाकलापों को देख देख के बहन मुँह बंद करके ना जाने कितनी बार खिलखिलायी और हम शांत स्वर में मुस्करा रहे थे।और मन ही मन कलम में सियाही डाल रहे थे ताकि आप सबको दृश्य का जिवित विवरण दे सकूं।
यूँ ही वो खेलती रही और हम बेमन उसे छोड़कर पढ़ाने को निकल गए। लौटे तो देखा कि लगभग आधा धान फोंका जा चुका है पर मटकी ज्यादा खाली न हुई थी। भली छोटी से चिड़िया और उसकी छोटी सी चोंच कितना ही पानी पी पाती...
प्रकृति ने हम सबके लिए अनेक उपहार दिए हैं जिनसे हम अपना मन - मष्तिष्क को प्रफुल्लित कर सकते हैं और उसके उपहारों को सहेज कर उसका आभार व्यक्त कर सकते हैं।
समानान्तर सन्दर्भ से परिकल्पित पंक्तियाँ जो लिखते हुए प्रतिबिम्बित हो उठीं ~
वह चिड़िया जो-चोंच मार कर
दूध-भरे जुंडी के दाने
रुचि से, रस से खा लेती है
वह छोटी संतोषी चिड़िया
नीले पंखोंवाली मैं हूंँ
मुझे अन्न से बहुत प्यार है।
~ केदारनाथ अग्रवाल
Sunday, January 2, 2022
YEAR :A UNIT OF TIME
"Birth and death are just passage not of life but of time"~SADGURU
None of us are untouched of the genuine jnana about the importance of time.
Yesterday was the day to wish each other the greetings to be happy the whole year started the previous day . Once more the acquainteds attended us same as the previous year. Every expressions have particular energies and it is much better that people greet you to be happy.
In the daily life anxiety and other business, if people try to fill up some happiness, what is much better than this!
It is the human psychology that if you say or listen 100 times any positive words definitely it will make your mind better than the previous stage. Just like this is tough for me to be angry after having some sweets and cold water.😊
But the wine can inebriate a person until it is in its active mode. After that we are found sleeping without pillow.
I wish these greetings may stay with us for the whole year but I am sure enough that they won't.
Since childhood of 7-8 years I use to celebrate this day very same as the festival by making greeting crafts, paintings on paper and walls, wishing people on sharp 00:00 hour, enjoying picnic and since a few years by posting status and sending messages on FB and WhatsApp.
Today I have noticed the correct calculation of time that we use to learn in primary schooling...
60 Seconds ➡️ 60 Minutes ➡️24 Hours ➡️7 Days ➡️ 30 Days ➡️ 12 Months ➡️ 10 Years and 100 Years.
If I am right these all are the units of time as well. We get new month each year, new date in every month, new day (Monday ) in each week, new morning everyday, new hour one after another, new minutes every after another and ofcourse we get new seconds one after another. Then why do we only celebrate the 1st January of every new year instead of these all units of time?
Either we celebrate the units which are not fast frequent or we celebrate the majors. And what do we do for the celebration - after wishing and filling up the stomach some people enjoy touring, some start something new and some pledge to make changes.
We wish today and forget tommorw that to whom I had wished
We pledge today and forget before Sankranti
Specially in my case I make paintings today and tomorrow I write 2 January 2021 as the new date, 😂 😂
This totally meant that we observe and enjoy the novelty and move ahead without assimilation.
In my accordance, as because year is also a unit of time we should enjoy it in its real form. Instead of enjoyment this is the right day to understand the importance of time and not only understand, we should assimilate this as good as that it can stay longer atleast for one year of whose 1st day we are celebrating today.
Understanding the value of time means your mind should be as trained that it can listen the sound tik - tik - tik even at the noisy place, not only at peaceful night.
Understanding value of time means to manage it as well as the prime minister or president do .
Understanding value of time means being punctual at sharp decipline like soldiers and other defence staffs. For eg : movie Gunjan Saxena
With these word I would like to say that do not give this day to yourself only for enjoyment instead of enjoying it like the period of time. Thank you. 😊
My 2021
YEAR comes and goes according to its nature. We the people fill up the pages of time by our deeds. The YEAR passed gave many new things and seized also many glittering gems from my life. I learnt many new lessons this year.
2022: YEAR OF APPLICATION.
many things I say and many less I do that I've learnt utill 2021. So this is the year for application the previous one and boost up many more new ideas.
Thanks to you all for being part of this blog...
Tik-Tik-Tik |
Sunday, November 14, 2021
बाल दिवस : अंकुरों के मिट्टी और मौसम
बच्चे : भविष्य के नौनिहाल
किसके सामने रोना है, कब हंसना है, किसके सामने खाना के लिए रोना है, किसके सामने घूमने के लिए रोना है वो समझने लगता है। जिसे वो सबसे करीब पाता है उसे अपना मानने लगता है उसकी गोद में वो खुद को सुरक्षित महसूस करता है। वो अपने परिवेश के अवलोकन से ही बोलना, चलना, इशारा करना इत्यादि क्रियाओं को करना सीख लेता है।
किस तरह से एक बच्चा अपने परिवेश का अवलोकन करता है उसको एक उदाहरण से समझने का प्रयास करें - मैं यहां दो अबोध बच्चों की बात करूँगा एक बच्चा है जिसके पिताजी JCB का बिजनेस करते हैं यानी ड्राइवर से चलवाते हैं और जो दूसरा है उसके पिताजी किसान हैं, आप देखेंगे कि पहले का शौक, खिलौना, बातचीत, यहाँ तक कि उसके सपनों में JCB का प्रयोग ज्यादा होगा वहीं दूसरे का शौक, खिलौना, बातचीत और सपनों को देख कर आप किसान से मिलता जुलता व्यक्तित्व की कल्पना अवश्य कर लेंगे।
मेरा यहाँ यह कतई अर्थ नहीं है कि पिता का व्यवसाय ही पुत्र के भविष्य व प्रगति को तय करता है। मेरा तो बस ये मानना है कि जो जिस परिवेश में रहता है उसपर उसके सम-विषम आचरण का आ जाना स्वाभाविक है, प्रकृति की मिसाल है। और उसी परिवेश से निकला हुआ बच्चा अपने बचपन को जीते हुए जब युवावस्था में अपने व्यवसाय का चयन करता है तो उसमे उसके आचरण का विशेष महत्व देखा जा सकता है। अर्थात यह तय करना अनुचित नहीं होगा कि हमारे बच्चे कल के लिए सींचे जा रहे पौधे हैं।
कैसी है सिंचाई
बात अगर स्कूली शिक्षा कि की जाय तो यह कहना सामान्य सी बात है कि हमारा समाज तीन भागों में बंटा हुआ सा दिखाई देता है। ये दृश्य आज नया थोड़े है, आजादी के बाद से ही देखा जाता रहा है। एक वर्ग हैं जिनके बच्चे उच्च दर्जे के प्राइवेट स्कूलों के विद्यार्थि हैं, दूसरा वर्ग हैं जो अपने बच्चों को किसी प्रकार से मध्यम तबके के प्राइवेट स्कूलों में भेजने को विवश हैं और तीसरे वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों को निम्न श्रेणी के विद्यालय या बिहार, ऊ. प्र., झारखंड, जैसे राज्यों के सरकारी विद्यालयों में भेज कर अनुपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
फिर चाहे वो किसी भी स्तर का विद्यालय हो वहाँ से निकलने वाले अधिकांश किशोरों के मन में पहली उत्कंठा यही होती है कि उनके वयस्क होने पर उनकी व्यवसाय क्या होगी?आमदनी कितनी होगी ? जरा आप सोचें कि खाने में आपको सिर्फ और सिर्फ चावल परोसा जाय क्योंकि आपको कार्बोहाइड्रेट की ज्यादा आवश्यकता है तो क्या आप इससे अपने मानवीय शरीर का पूर्ण विकास पा सकते हैं? मैं तो नहीं मानता। कुछ ऐसा ही है आज के अंकूरों का लालन पालन या सिंचाई। तदोत्परांत वे ना तो सुगम व्यवसाय दे पाते हैं खुद को और ना ही एक अच्छा व्यक्तिव के रूप में उभरते हैं , तो अब बात है कि होनहार निकलते कहाँ से हैं! बस यह मान लीजिए कि घोंसला चाहे कितना भी सघनता से क्यों न बनाया गया हो उसमे मणि होंगे तो वो दिखेंगे ही फिर वो चाहे घिस के बनें या पीस के बनें।
कैसे हैं आज के पौधे व आधुनिकतम पेड़
बच्चे मस्त होते हैं। डर भी है, लगन भी है, प्रेम भी है, सम्मान भी है, आदर्शवाद भी है, सहनशीलता भी है, तपोमय भी है और साहस भी है। पर सब में सब नहीं।
एक पल को सोचें कि अगर विद्युत का संचार बल्ब और टीवी में नहीं होता तो क्या उसका उपयोग नहीं हो पाता? तब भी हो रहा होता। ऊर्जा व्यर्थ थोड़े जाती है, पढ़ा भी होगा आप सबने की ऊर्जा वो मात्रात्मक गुण है जो निरंतर परिवर्तित होते रहता है, संचारित होते रहता है, जिस मशीन के संपर्क में आता है उसके क्षमतानुसार उसमें अपनी उपयोगिता दर्ज करता है। बिल्कुल तारों में दौड़ते विद्युत की तरह जो दीवार पर लगे बल्ब को भी जलाता है और ट्रेन के इंजन से लगकर उसके इंजन को भी दौड़ाता है। अर्थात बच्चे अपने आप में एक ऊर्जा हैं जिनको हम एक दिशा में रोकना चाहते हैं या उनकी मानसिकता को एक ही उपकरण तक सीमित करना चाहते हैं।
बच्चों से कब किस तरह का बर्ताव होना चाहिए, कब किस चीज़ से उन्हें अवगत कराना चाहिए, कब किस इंसान से परिचित कराना चाहिए, कब कौन सा साधन मुहैया करानी चाहिए - क्या ये सब हर एक अभिभावक के लिए अध्यन का विषय नहीं है? इन्हीं सब की अज्ञानता का नतीज़ा है कि इन ऊर्जाओं को सही दिशा नहीं दिया जा पाता और बच्चे अतिरिक्त मनोरंजन आदि में संलिप्त होते हैं।
Friday, October 29, 2021
सावन : एक दुर्लभ दृश्य
के शहर बीच बगीचा हजार देखा है
फक्र हो , गुलजार -ए -शादाब देखा है।
आरजू , ऐतबार , ख़ाब , अर्चना....
भवानी तेरे द्वारे माथे हजार देखा है।
काली घटा, जिसमें छुपा चांद देखा है,
फक्र हो, हुस्न - ए - गुलाब देखा है।
मुस्कान, नजाकत, शराफत, शरारत ...
फक्र हो साहब तूने प्राकृतिक फुहार देखा है।
रंगीन दोपहरी और मदहोश शाम देखा है,
मर्यादा की दामन में प्रेयसी हमार देखा है।
गुफ़्तगू, किलकारियाँ, बेपरवाही, जिम्मेवारियां...
हाँ साहब तूने संगीत ए खास सुना है
परछाई में चाँदनी, पवन में महक पाया है,
फक्र हो, तिरंगा लिए सरहद ए हिंद देखा है।
जुनून , हिम्मत, देशभक्ति, कोप...
साहब तूने आज झलक ए हिन्दोस्तान देखा है।
श्वेत ज़मी पर केशरिया अलंकार देखा है,
धरा के बीच पुष्पों का क्यार देखा है।
हिफाजत, मोहब्बत, दिवानगी और क्या...
साहब दऊ महीने बाद तूने बसंती खुमार देखा है।
अंगारों के सिरहाने शबनमी बुखार देखा है,
अश्रु की धार, माने रेशमी बौछार देखा है।
हाँ खनक, झनक, महक और क्या...
फक्र हो साहब आपने दुर्लभ झपास देखा है।
Sunday, August 29, 2021
Udte Parinde
Abhi- abhi to mile hain
Do udte hue parinde
Ek dheer dharte- dharte
Ek fikra karte -karte
Wo dhairya tha sneh ka
Aur fikra thi bhavishya ka
Pani mila jalte hue ko
Fikra zinda rah gya h
Abhi - abhi to mile hn
Do udte hue parinde
Aadhar kya us fikra ka
Simta de jo dono ke par
Barsaaat bhi ab ho gyi
Aakash par halka hua na
Bheenge hue dono ke par hain
Fikra saanse le rha hai
Abhi - abhi...
Do udte...
Kahte jisse Ham Aabroo Hain
Jode hue ham dharm se hain
Jaat - paat, rang - vesh
Inpe hi to atke hue hain
Mithya Nahin kya vo Pratishtha
Jo aadhar - e - fikra ban chuka hai
Abhi - abhi...
Do udte...
Ek dharm Mein ek jaat Mein
Ho Milan ek vritti mein
Kitne sahaj the log ve jo
Ye tajoorve de gaye hain
Bhul unse ye hui ki
Shodhan nahin batla gaye hain
Abhi - abhi...
Do udte...
Ham Yahi bas Sikh liye ki
unsa hi Ijjat Mile
ye to dekha hi Nahin ki
sahjta vo dhampe Nahin the
Kyon na ye bhi sikh len Ham
Saral ganit ke kathin prashn hi
haan Yahi to ban jayen ham.
Abhi - abhi...
Do udte...
kya Nahin Rudhi hue hum
Bin vichare jee Rahe Hain
Aarambh hi Na Ho Milan Ka
to Kaise Vividhta Ek Hoye
Baithe Rahen Sab Apne Ghar Mein
To Kaun Gali ko jagmagaye
Abhi - abhi...
Do udte...
Band rakhte Pinjre me
na to par hi Kat lete
Kyon Diya Shiksha Agar
Usi Ki chamakk se dar Rahe
Har Bhavna par Jeet aapki
to Insan Kaise Huye ham?
Abhi - abhi...
Do udte..
Agraj hain aap Hamesha Rahenge
unch neech behtar hi janenge,
Kurban Kar den Ham Agar
bolen ki bachche Kaun hue firr ?
Dwaar dono Hi Khule Hain
Ek aap manen Nahin
duja hum chunen nahin
Abhi - abhi....
Do udte...
Maan liya hai ab to ye ki
Astitva Nahin is Prem ka hai
char din Ji Le Ham Milkar
Fir To Dur Jana likha Hai
Jeet Ke Bhi Kya Milega
Do Dilon ko cheer ke
ye bhi Didar Kijiyega
hm parindon ko janm deke
Abhi - abhi to mile hain
Do udte hue parinde
Friday, May 14, 2021
इबादत - ए - इश्क़
कहीं दूर से, तेरी खूशबू आयी है।
तेरी गलियों में हूँ , निहारता हुआ।
हर कदम पे, तमन्ना-ए- इश्क़ होगी।
मिले तुम अगर, तो राह - ए - ज़िंदगी आसान होगी।
ग़र ना मिले, तो मंजूर- ए - इश्क़ होगी ।
कहीं दूर पर्वत से, तेरे गीतों की ध्वनि आयी है।
हर पग पे रस बदलें, कुछ यूँ नजाकत है तेरी।
तुम तो तुम हो,स्वाद अपने हैं मेरे।
मिले तुम अगर तो, महफ़िल मे हम भी होंगे।
ग़र ना मिले ,तो एक महफ़िल हमारी भी होगी।
कि हर कतरा हो वाकिफ़ रग रग से, यूँ रास्ते हैं तुम्हारे।
दीदार तो कसौटी ही है तुझे पाने की ,पाकर क्या देखूँ ?
तेरा यूँ नजरें फ़ेर लेना भी , इम्तिहान- ए -चाहत है हमारी।
मिले तुम अगर तो, हम प्रकाश हो जाएं।
ग़र ना मिले, तो यूँ समझो हम दृश्यमान हो जाएं।
तमन्ना है आलिंगन हो तुम्हारा, और मधुमेह ना ले आए।
बेशक तुम यूँ मिलो इस आटे में की मिष्ठान बन जाएं।
गुलाब ख़्बाब दवा जहर जाम, क्या क्या रक्खा है तुमने सिरहाने में?
मिले तुम अगर साकी, तो हम शराबी न हो जाएं।
ग़र ना मिले, तो हम पूरे शराब न हो जाएं।
छनकती पायल तुम्हारी, चित्तचोर हो ये आम है।
तेरी ही चोरी से खुद को चुराना, तेरा शर्त - ए- आम है।
नियति का साथ, ये तो अचिन्त्य है रे पगली।
मिले तुम अगर, तो नियत ही पहचान बन जाए।
ग़र ना मिले, तो शख्स नियति की पहचान बन जाए।
तड़प की वेदना, विरह बनके पहुंचें ओ प्यारे।
त्याग, तप, चाह - ये सब डाकिये हैं हमारे।
धैर्य की स्याही वक़्त की जमीं पर उकेरें।
मिले तुम अगर, तो पत्र भी पवित्र हो जाए।
ग़र ना मिले, तो प्रेम पत्रकार बन जाए।
रश्म - ए - वफ़ा ही ऐसी है, तुझे पाने की।
कि हर आशिक, समृद्ध हो जाए।
पाना, खोना तो कर्मों की उपज है सखी।
मिले तुम अगर, तो बंजर पर स्वर्ण उग आए।
ग़र ना मिले, तो भी ये धरती धनवान बन जाए।
क्या घटा है, तेरी वफ़ा कि ओ रे सखी।
की सबका जीवन, किसानी होने को चाहे।
ताज्जुब! गुड़ का प्रतिवचन शहद के चुंबन से!!
सूर जो मिले तो, हुंकारों की शंखनाद हो उठे।
ग़र ना मिले तो, गन्ने को शहद की माधुर्य मिल जाए।
Sunday, March 21, 2021
Saturday, September 19, 2020
चुनाव : प्रचार - प्रसार
नए प्रत्याशी जनता को अपनी शक्ल और चिह्न दिखाएं तो थोड़ा समझ आता है, लेकिन वो प्रत्याशी जिन्हें जनता वर्षों से देख रही हैं या देख चुकी हैं, ये मज़ाक लगता है। किसी भले मानुष की आवाज है कि "काम बोलता है" , तो वो बोली प्रचार के लिए कम पड़ गया है क्या जो आपको ऐम्पलीफाइ करना पड़ रहा है? खैर हमनी के का पता हम बुडवक जो हैं।
जब कनिष्ठ कक्षाओं में हुआ करते थे न तो 5-7 महानुभाव चिलचिलाती धूप में नंगे पांव बाहर निकल आते थे इनकी लाउडस्पीकर को सुनकर पता है क्यों, ये पर्ची बांटते थे। पर्ची में अभ्यर्थी का नाम, हांथ जोड़ के खिंचवाया हुआ फोटो, चुनाव चिह्न और नंबर इतना पढ़ करते पैंट के पॉकेट में डाल लेते थे। दूसरी बार जब पर्ची को पढ़ते थे एक लंबी लिस्ट होती थी जिन्हें हमलोग वादे बोलते हैं और अंत में पढ़ते थे 12500 प्रतियां, 17000 प्रतियां जो कि हरेक प्रति सबसे नीचे होती थी । उस वक्त बस ये सोंचते थे कि अभी पर्ची बांटा जा रहा है, फलाना तारीख को स्कूल में चुनाव होगा , और हमलोगों की छुट्टी होगी। ना तो उसकी परवाह होती थी कि लिस्ट में क्या हैं और ना ही इसकी की ये लिस्ट ही क्यों हैं?
मनोरंजन तो बच्चों को हर चीज़ में मिल जाता है इसमे भी मिलता था, किसके पास सबसे ज्यादा प्रति है?
आज ये सोचते हैं कि वो हज़ारों प्रतियां उसी तरह से बच्चों को मनोरंजन के लिए बांट दिया करते थे, खैर एक पल के लिए मान लेते हैं कि प्रतियां मनोरंजन हों कोई बात नहीं लेकिन वो नेता, उनके जोड़े हुए हांथ, इत्यादि सब के सब क्या मनोरंजन ही थे?
जितने वाले तो भूल जाते होंगे कि प्रिंटिंग प्रेस वालों की कितना रुपैया दिए थे, लेकिन हारने वाले को जरूर याद होगा कि ये वास्तव में मनोरंजन पर किया गया व्यय था?
उसकी तो बात ही छोड़िए की क्या होना चाहिए नहीं होना चाहिए जब हम विधायक बनेंगे तब पूछ लीजियेगा 😁😁। मज़ाक कर रहे थे 😂
आज वो सिहरी हुई पांव बूथ तक को जाने को तैयार हैं, लिस्ट आज भी हैँ, क्या बोले नए वाले!!! अरे पन्ने नए हुए हैं वो तो अब भी वही हैं।
लेकिन आज ये उंगली प्रतियाँ जमा करके मनोरंजन नहीं करनेवाली हैं। ये घिस गए हैं वादे वाले पन्ने गिन गिन के। घिसने से चमक आ गयी है, अरे दिमाग मे भई ।
Tuesday, June 23, 2020
Ploughman
Tuesday, May 19, 2020
Books are rum
बड़े प्यारे लगते हैं पन्ने अगर किताब अनदेखे मिल जाएं
बड़े मुश्किल होते हैं नाटक अगर वो समझ ना आएं
ख्याल ये होता है कि पूरे रसगुल्ले मुँह में हों
ये पुस्तक गन्ने होते हैं साहब चूसने का भी धैर्य होने चाहिए
ये फुल स्टॉप भोले होते हैं पथिक को रोकते रहते हैं
मुसाफिर जितना थकता है थकावट कमती जाती हैं
संदेह नहीं कि बड़े निष्ठुर होते हैं ये गन्ने दाँतों से चैलेंज करते हैं
अब क्या बताएं आपको दाँतों को लड़ना भी यही सीखाते हैं
हसरत ऐ दिल तो यूँ होता है कि किताबें याद हों जाएं
गन्ने से द्रव्य निकलता है साहब रवा बड़े कम बनते हैं
पुस्तकें द्रव्य देती हैं आप घड़ा बढ़ा लें अपनी
रवा तो तपने से ही बनेंगे आग बढ़ा लें अपनी
विचलित ना हो मन समय का महत्व सोच सोच के
वक्त मीठे होते नहीं हैं रस में डूबा कर बनाने होते हैं
किताबों के रस के भी अपने मिठास होते हैं
आप जितना पियोगे वो बढ़ते ही रहते हैं
Saturday, April 25, 2020
Commas of the life
Thursday, April 23, 2020
रिसोर्स : जिंदा भी तेरा, राख भी तेरा
इज्जत से इस्तेमाल करोगे तो इज्जत बचा पाओगे,
लूटोगे तो एक दिन खुद को भी दांव पे लगा दोगे।
मुझे क्या है बे आज भी तेरा हूं कल भी रहूँगा,
तू सोच ले क्या आज लूटोगे क्या बचा के रखोगे।
मूक हूँ तो क्या हुआ बे मेरी जिंदगी खुद का नहीं है,
अबे जिंदा तो जिंदा, राख भी होकर ये जिंदगी तुम्हारी ही है।
बेटा ये कविताएँ लिख पढ़ के कुछ नहीं होगा,
यूँ त्रुटियाँ गिनने से रत्तीभर फर्क़ नहीं पड़ेगा।
अगर कर सको तो ठीक नहीं तो हथोड़े कौन पीटेगा,
तू नहीं सोचा तो ये बारात तो खाक भी चाट जाएगा।
भाई उतावला ना हो बस बर्बाद करता हुआ ना देख,
हथोड़ा नहीं बाबु हाथ पीट और प्रणाम करके देख।
बस बेइज्जती के हकदार को सीधा इज्जत देके देख,
आंसू कम पड़ जाएंगे उनको पानी देके देख।
Wednesday, April 22, 2020
निद्रालोप
शिकायत दिल से करती हैं
दिल कसमें गिनता है
ये नजरें भींग जाती हैं
आंसू गिरते हैं उनसे
ये दिल को भी भींगाते हैं
ये दिल फिर भी धड़कता है
चाहत उनकी करता है
अचानक बीच उनकी
ये दिमाग है आ जाता
ये दोनों को एक एक करके
बेवकूफ है कहता
वो दोनों करते हैं ऐसे
की जैसे बच्चे हों माँ के
ये मष्तिष्क बाज ना आता है
जोरों का थप्पड़ जड़ता है
नजरें घूरती हैं दिल को
ये दिल भी घूरता है उसको
फिर दिमाग भी उनको, अपनी करुणा दिखाता है
दोनों को एक ही साथ अपनी बाहों में भरता है
फिर तीनों के लफ्जों से
ये सुर एक साथ निकलता है
की जिंदगी हैं मिली हमको
तो इसको जाया ना करना है
कीचड़ को भी भर-भरके
मटमैली काग़ज़ों पर ही
अपना भाग्य है लिखना
अपना भाग्य है लिखना
Tuesday, April 21, 2020
पिकनिक_एक_कहानी
Thursday, March 5, 2020
सोशल मीडिया : एक सोंच
Sunday, February 9, 2020
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शनिवार: अंक ८
दुनिया की कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है: मनमोहन सिंह यह उद्धरण इस तथ्य को दर्शाता है कि जब कोई विचार समय के अन...
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बचपन की वो यादें... सुबह में खाना खाते – खाते या कभी उस से पहले 5-6 लोगों की एक टोली,कुछ सहपाठी...
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