Saturday, September 19, 2020

चुनाव : प्रचार - प्रसार

 



नए प्रत्याशी जनता को अपनी शक्ल और चिह्न दिखाएं तो थोड़ा समझ आता है, लेकिन वो प्रत्याशी जिन्हें जनता वर्षों से देख रही हैं या देख चुकी हैं, ये मज़ाक लगता है। किसी भले मानुष की आवाज है कि "काम बोलता है" , तो वो बोली प्रचार के लिए कम पड़ गया है क्या जो आपको ऐम्पलीफाइ करना पड़ रहा है? खैर हमनी के का पता हम बुडवक जो हैं।

जब कनिष्ठ कक्षाओं में हुआ करते थे न तो 5-7 महानुभाव चिलचिलाती धूप में नंगे पांव बाहर निकल आते थे इनकी लाउडस्पीकर को सुनकर पता है क्यों, ये पर्ची बांटते थे। पर्ची में अभ्यर्थी का नाम, हांथ जोड़ के खिंचवाया हुआ फोटो, चुनाव चिह्न और नंबर इतना पढ़ करते पैंट के पॉकेट में डाल लेते थे। दूसरी बार जब पर्ची को पढ़ते थे एक लंबी लिस्ट होती थी जिन्हें हमलोग वादे बोलते हैं  और अंत में पढ़ते थे 12500 प्रतियां, 17000 प्रतियां जो कि हरेक प्रति सबसे नीचे होती थी । उस वक्त बस ये सोंचते थे कि अभी पर्ची बांटा जा रहा है, फलाना तारीख को  स्कूल में चुनाव होगा , और हमलोगों की छुट्टी होगी। ना तो उसकी परवाह होती थी कि लिस्ट में क्या हैं और ना ही इसकी की ये लिस्ट ही क्यों हैं?
मनोरंजन तो बच्चों को हर चीज़ में मिल जाता है इसमे भी मिलता था, किसके पास सबसे ज्यादा प्रति है?
आज ये सोचते हैं कि वो हज़ारों प्रतियां उसी तरह से बच्चों को मनोरंजन के लिए बांट दिया करते थे,  खैर एक पल के लिए मान लेते हैं कि प्रतियां मनोरंजन हों कोई बात नहीं लेकिन वो नेता, उनके जोड़े हुए हांथ, इत्यादि सब के सब क्या मनोरंजन ही थे?
जितने वाले तो भूल जाते होंगे कि प्रिंटिंग प्रेस वालों की कितना रुपैया दिए थे, लेकिन हारने वाले को जरूर याद होगा कि ये वास्तव में मनोरंजन पर किया गया व्यय था?
उसकी तो बात ही छोड़िए की क्या होना चाहिए नहीं होना चाहिए जब हम  विधायक बनेंगे तब पूछ लीजियेगा 😁😁। मज़ाक कर रहे थे 😂
  आज वो सिहरी हुई पांव बूथ तक को जाने को तैयार  हैं, लिस्ट आज भी हैँ, क्या बोले नए वाले!!! अरे पन्ने नए हुए हैं वो तो अब भी वही हैं।
लेकिन आज ये उंगली प्रतियाँ जमा करके मनोरंजन नहीं करनेवाली  हैं। ये घिस गए हैं वादे वाले पन्ने गिन गिन के। घिसने से चमक आ गयी है, अरे दिमाग मे भई ।




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