Thursday, March 5, 2020

सोशल मीडिया : एक सोंच



सोशल मीडिया आज के दौर में हरेक इंसान का लंगोट बन चुका है। आप चाह कर भी नहीं चौंक सकते मेरे इस वाक्य से क्योंकि वास्तव में ये (सोशल मीडिया )हमारी अधिकतर जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्तरदायी बन चुका है। विश्लेषण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वो आप बेहतर जानते होंगें। हां, ये शत प्रतिशत सत्य है कि आज हम किसी भी वर्ल्ड वाइड न्यूज से सबसे पहले अवगत हो जाते हैं। ये भी सत्य है कि हम अपने विभिन्न रुकावटों को हटाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं - वो चाहे स्टडी रूम हो,किचन रूम हो, गेस्ट रूम हो, बाथरूम हो, बेडरूम हो, पूजा रूम हो, मनोरंजन रूम हो और ना जाने कौन कौन से रूम यानी सारे रूम के उपभोग करने वाला व्यक्ति इस चिड़िया (सोशल मीडिया) को जी भरकर उपयोग करते हैं।
बहुत सारी मुश्किलों को दूर करने में , नए लोगों से जुड़ने में, लोगों की पंखों को उड़ान देने में सोशल मीडिया काफी लाभप्रद देखी जा सकती है।
अब मैं आपसे कुछ ऐसी बातेँ साझा करने जा रहा हूं जो हर युवा की सोच होनी चाहिए लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि बहुत कम लोगों इसपर सोचते हैं -
बढ़ती व्यस्तताओं और आवश्यकताओं के कारण हमारे देश के युवा अपने तीसरे नेत्र का उपयोग ना के बराबर कर रहे हैं
सोशल मीडिया का हरेक स्तंभ इस तरह से मजबूत नहीं प्रतीत होता है जैसा होना चाहिए। इस पर भारी मात्रा में अश्लीलता और झूठे (जाली) समाचारों को परोसा जा रहा है। आज हमारे देश का हरेक युवा साथी हर 5 मिनट किसी न किसी प्रकार से सोशल मीडिया के संपर्क में आ रहे हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है। आप खुद आकलन कर सकते हैं। बस आप 10 मिनट के लिए बारी-बारी से सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को खोलिए और नोट कीजिए कि आपने वहां क्या देखा। आप खुद कहेंगे कि हम क्या देख रहे हैं। क्या यह एक बड़ा प्रश्न नहीं है कि आप हर 5 मिनट में क्या देख रहे?
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप में से बहुत कम लोग ही निर्देश को जो ऊपर दिए गए हैं उसका अनुसरण करेंगे।
इसलिए ध्यानपूर्वक पढ़ें- मुझे ऐसा लगता है कि आज के दौर में सोशल मीडिया पर या तो लोग अपने आपको अच्छा दिखा कर अपनी पहचान बनाने में व्यस्त हैं। या तो वो चंद रुपए कमाने के उद्देश्य से अपने व्यापार आदि को बढ़ावा देने के लिए प्रचार-प्रसार करने में व्यस्त हैं।
लोगों को लगता है कि वह खुद को दिखाएंगे या अपनी चीजों का प्रसार करेंगे तो जनता उन्हें जानेगी। क्या बस इतने तक में सीमित होनी चाहिए उनकी सोच? अरे यह भी सोचें कि जनता आपको जान कर क्या करेगी? क्या जनता की जरूरत सिर्फ आपको जानना है?
अजीब कंपटीशन देखा जाता है आज हमारे युवा साथियों के बीच में, तुम्हारा कितना लाइक है, मेरा तो इतना है? जबकि सच्चाई तो यह है कि like , dislike देखना या देखकर खुश या दुखी होना मूर्खता है। आप खुद को कितना लाइक करते हैं और कितना dislike करते हैं ये बड़ा प्रश्न है?
हालांकि ये प्रश्न इतना मुश्किल नहीं है किंतु आसान भी नहीं है।
सच्चाई तो यह है कि जनता का तवा इतना बड़ा और सस्ता है कि जो चाहे अपनी रोटियां सेक लेता है। जरा सा कोई ये नहीं सोचता कि जिस आग से तवा गर्म हो रही है वह बहुत मेहनत से उपलब्ध हो सकी है।
मैं उन तमाम लघु एडवरटाइजर को यह प्रश्न करना चाहता हूं कि क्या आपका व्यापार जिसके लिए आपको अश्लील प्रचार करना पड़ रहा है वह समाज के अंकुर जैसे नन्हे बच्चों के मानसिकताओं से बढ़कर है? क्या वह व्यापारी यह नहीं जानते कि बच्चे सबसे ज्यादा सीखते हैं कोई भी चीज को? क्या वो व्यापारी ये नहीं जानते कि आपकी आगामी तिथियाँ बच्चों की सोच पर निर्भर करती है जिसे आप अपने व्यापार के साथ समझौता कर रहे हैं?
मैं कदापि नहीं कह सकता कि सारे लोग जो सोशल मीडिया से कनेक्टेड हैं वो सारे एक ही जैसे हैं, यह मेरी मूर्खता समझी जाएगी क्योंकि ऐसा नहीं है। मैं सोशल मीडिया पर बहुत सारे ऐसे सक्रिय तत्वों से भी रूबरू हुआ हूं जो काफी सकारात्मक हैं जिनकी सोच और सार्थकता हमारे युवा और अंकुर दोनों के लिए काफी लाभप्रद है।
अगर आपने इतना पढ़ लिया होगा तो यह सवाल जरूर उत्पन्न हुआ होगा आपके मन में कि इसका निदान क्या हो सकता है? उपाय इतना कठिन भी नहीं है किंतु आसान भी नहीं है। आप किसी को यह कह कर नहीं रोक सकते हैं कि बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो, बुरा मत सोचो, इत्यादि क्योंकि ऐसा बोलने पर सबसे पहले तो उस इंसान की जिज्ञासा और बढ़ जाएगी की कोई चीज़ हमसे छिपाया क्यों जा रहा है या फिर उस काम को करने से हमको मना क्यों किया जा रहा है। और दूसरी बात यह भी है कि हरेक इंसान की डिक्शनरी में अच्छा और बुरा की परिभाषा अलग हो सकती है क्योंकि वह उसके पास्ट में किए गए एक्सपेरिमेंट पर निर्भर करती है।
निदान सिर्फ ये हो सकता है कि आप सोचें कि आप क्या दिखा रहे हैं, इसका क्या-क्या प्रभाव हो सकता है?
निदान सिर्फ ये हो सकता है कि आप खुद से ये प्रश्न करें कि आप क्या देख रहे हैं?

Some parallel thinkers' thoughts 

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