Sunday, February 6, 2022



वो शैल के आधार थे
मंदाकिनी के किनार थे
सींचे वो जीवन भर जिन्हें
उन पौधों के वो आधार थे

हैं से थे- हो गए
चंद कुछ अंतराल में
बिना बताये चल दिये
छोड़ के मझधार में
क्या कहें कितना बहे
अश्रु ही बस रह गए हैं
कल तो हम पौधे ही थे
आज वृक्ष बना दिए हैं
दिल को दें सांत्वना
या वेदना को स्थान दें
कैसे करें स्थिर पर्वत?
और मंदाकिनी को किनार दें
वक़्त थे जो गुजार दें?
या अश्रु थे जो बिसार दें
कैसे गिनें उन जलकणों को
जिनको वो सम्भाले रखे थे
छोड़ दिया है आपने जो
तो ये न समझें निकल गए हैं
जिद मेरा बदला नहीं है
था जो कल तक मेरे हृदय में
गोद में बैठना हमे है
उंगली वो थामना अभी है
पीठ पर लदना अभी है
और पैर भी दाबना हमें है
ये वक्त था जो जीत गया है
साथ आपका छीन लिया है
छुपा लें हँसकर दर्द को भी
ऐसा कुछ बतला गया है

Tuesday, February 1, 2022

 



कितना खूबसूरत था वो पल!

खट... खट... खट... की आवाज कानों में गयी और आँखों ने अंगड़ाई लिया। खिड़की के ग्रिल पर बैठी वो चिड़िया सीसे पर चोंच मार - मारकर कब मेरे मन को स्वप्न भरे नींद से  चहक और प्रफुल्लता में खिंच लायी पता ही नहीं चला। पहली ही मुलाकात में वो चिड़िया मेरे मन में घर बना ली। 

  जो हमें अच्छा लग जाता है हमारा इंसानी दिमाग  उसका तदनंतर अवलोकन करने से नहीं चुकता। खुद के ऊपर हमारा  असंयम का इससे अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता है। गौर करने लगे। हर कुछ मिनट के बाद, बेवजह ध्यान उसकी ओर खिंचा चला जाता। जब ध्यान जाता तो आँख भरके देखता, फिर कभी शांत छोड़ कर लौट आता और कभी खिड़की खोल कर कोलाहल से उसे छेड़ देता और वो चिड़िया फटाक से फुर्र...

स्वच्छंद जीव को जब खुद आपके बंधन से लगाव होता हुआ दिखे तो आपकी प्रसन्नता बेहद बढ़ जाती है।

छोटी बहन से उसका जिक्र पाया, वो भी बहुत खुश होती थी चिड़िया के आने से। हमारा मन जब प्रसन्नता के गोते से उबरा तो ये दिमाग़ झट से प्रश्न कर बैठा। क्यों आती होगी ये चिड़िया, क्या ढूँढती होगी और क्या पा करके उड़ जाती होगी। 

दोनों ने अंदाज़े लगाया कि - शायद वो खिड़की के छज्जे की छाँव के लिए आती होगी, शायद वो अन्न के दाने तलाशती होगी, शायद उसे प्यास लगी हो, या हो सकता है वो खिड़की में बने अपने प्रतिबिंब को देखने आती होगी।

 मन ने कुछ टटोला और ये उसकी मुश्किलों को आसान करने के प्रयत्न में जुट गया। धान की कुछ बालियाँ ग्रिल से बाँध दिया और भोले बाबा के यहां जल ले जाने वाले मटकी में जल भर कर बाहर रख दिया। छुप कर प्रतीक्षा करने लग गए। उम्मीद से बहुत पहले उसने दस्तक दिया। अनबोली सी वो चिड़िया कब मुँहबोली बन गयी पता न चला। 

हमारे शांत मुख और चंचल आंखें बस उसे निहार रहे थे। कभी धान के दाने खाती, कभी चोंच मारती, कभी उड़ के छज्जे के ऊपर जाती और फिर से आके वहीं बैठती। उसकी क्रीड़ा से भरी क्रियाकलापों को देख देख के बहन मुँह बंद करके ना जाने कितनी बार खिलखिलायी और हम शांत स्वर में मुस्करा रहे थे।और मन ही मन कलम में सियाही डाल रहे थे ताकि आप सबको दृश्य का जिवित विवरण दे सकूं।

 यूँ ही वो खेलती रही और हम बेमन उसे छोड़कर पढ़ाने को निकल गए। लौटे तो देखा कि लगभग आधा धान फोंका जा चुका है पर मटकी ज्यादा खाली न हुई थी। भली छोटी से चिड़िया और उसकी छोटी सी चोंच कितना ही पानी पी पाती...


प्रकृति ने हम सबके लिए अनेक उपहार दिए हैं जिनसे हम अपना मन - मष्तिष्क को प्रफुल्लित कर सकते हैं और उसके उपहारों को सहेज कर उसका आभार व्यक्त कर सकते हैं।

समानान्तर सन्दर्भ से परिकल्पित पंक्तियाँ जो लिखते हुए प्रतिबिम्बित हो उठीं ~

वह चिड़िया जो-चोंच मार कर 

दूध-भरे जुंडी के दाने

रुचि से, रस से खा लेती है

वह छोटी संतोषी चिड़िया

नीले पंखोंवाली मैं हूंँ

मुझे अन्न से बहुत प्यार है।

~ केदारनाथ अग्रवाल

Sunday, January 2, 2022

YEAR :A UNIT OF TIME



 "Birth and death are just passage not of life but of time"~SADGURU 

None of us are untouched of the genuine jnana about the importance of time.

         Yesterday was the day to wish each other the greetings to be happy the whole year started the previous day . Once more the acquainteds attended us same as the previous year. Every expressions have particular energies and it is much better that people greet you to be happy.

     In the daily life anxiety and other business, if people try to fill up some happiness, what is much better than this! 

It is the human psychology that if you say or listen 100 times any positive words definitely it will make your mind better than the previous stage. Just like this is tough for me to be angry after having some sweets and cold water.😊

    But the wine can inebriate a person until it is in its active mode. After that we are found sleeping without pillow. 

I wish these greetings may stay with us for the whole year but I am sure enough that they won't.

Since childhood of 7-8 years I use to celebrate this day very same as the festival by making greeting crafts, paintings on paper and walls, wishing people on sharp 00:00 hour, enjoying picnic and since a few years by posting status and sending messages on FB and WhatsApp.

    Today I have noticed the correct calculation of time that we use to learn in primary schooling...

60 Seconds ➡️ 60 Minutes ➡️24 Hours ➡️7 Days ➡️ 30 Days ➡️ 12 Months ➡️ 10 Years and 100 Years.

If I am right these all are the units of time as well. We get new month each year, new date in every month, new day (Monday ) in each week, new morning everyday, new hour one after another, new minutes every after another and ofcourse we get new seconds one after another. Then why do we only celebrate the 1st January of every new year instead of these all units of time?

 Either we celebrate the units which are not fast frequent or we celebrate the majors. And what do we do for the celebration - after wishing and filling up the stomach some people enjoy touring, some start something new and some pledge to make changes.

We wish today and forget tommorw that to whom I had wished

We pledge today and forget before  Sankranti 

Specially in my case I make paintings today and tomorrow I write 2 January 2021 as the new date, 😂 😂 

This totally meant that we observe and enjoy the novelty and move ahead without assimilation. 

    In my accordance, as because year is also a unit of time we should enjoy it in its real form. Instead of enjoyment this is the right day to understand the importance of time and not only understand, we should assimilate this as good as that it can stay longer atleast for one year of whose 1st day we are celebrating today. 

 Understanding the value of time means your mind should be as trained that it can listen the sound tik - tik - tik even at the noisy place, not only at peaceful night.

Understanding value of time means to manage it as well as the prime minister or president do .

Understanding value of time means being punctual at sharp decipline like soldiers and other defence staffs. For eg : movie Gunjan Saxena  

With these word I would like to say that do not give this day to yourself only for enjoyment instead of enjoying it like the period of time. Thank you. 😊

My 2021 

YEAR comes and goes according to its nature. We the people fill up the pages of time by our deeds. The YEAR passed gave many new things and seized also many glittering gems from my life. I learnt many new lessons  this year. 

2022: YEAR OF APPLICATION. 

many things I say and many less I do that I've learnt utill 2021. So this is the year for application the previous one and boost up many more new ideas. 

Thanks to you all for being part of this blog... 

😊
Tik-Tik-Tik



Sunday, November 14, 2021

बाल दिवस : अंकुरों के मिट्टी और मौसम

 


बच्चे : भविष्य के नौनिहाल


इन्साफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के यह देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के। 
कहते हैं कि आपका भविष्य कैसा होगा ये आपके वर्तमान पर निर्भर करता है। इसका सीधा अर्थ यह है कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं इसका कुछ न कुछ परिणाम होगा जिसका एहसास आपको देर - सवेर हो ही जाएगा।
शिशु जब जन्म लेता है तो माँ कि आंचल ही उसकी दुनिया होती है। धीरे - धीरे वो हर उस चीज़ की नवीनता को महसूस करता है जो उसकी माँ के सहारे उसके संपर्क में आता है। बार बार के संपर्क से वो चीजों को पहचानने लग जाता है।
चीजें उसके मस्तिष्क में तस्वीर के रूप में संग्रहित होने लग जााते हैं। जैसे- जैसे वो बड़ा होता है उसके हरेक अंगों का क्रमिक विकास होता है। उसमेें सोचने समझने और याद रखने की प्रवृत्तियों का विस्तार होने लगता हैं। नन्हें आंखों से वो अपने सामने आने वाले चीजों को कैद करना शुरू कर देता है। 

किसके सामने रोना है, कब हंसना है, किसके सामने खाना के लिए रोना है, किसके सामने घूमने के लिए रोना है वो समझने लगता है। जिसे वो सबसे करीब पाता है उसे अपना मानने लगता है उसकी गोद में वो खुद को सुरक्षित महसूस करता है। वो अपने परिवेश के अवलोकन से ही बोलना, चलना, इशारा करना इत्यादि क्रियाओं को करना सीख लेता है।

किस तरह से एक बच्चा अपने परिवेश का अवलोकन करता  है उसको एक उदाहरण से समझने का प्रयास करें - मैं यहां दो अबोध बच्चों की बात करूँगा एक बच्चा है जिसके पिताजी JCB का बिजनेस करते हैं यानी ड्राइवर से चलवाते हैं  और जो दूसरा है उसके पिताजी किसान हैं, आप देखेंगे कि पहले का शौक, खिलौना, बातचीत, यहाँ तक कि उसके सपनों में JCB का प्रयोग ज्यादा होगा वहीं दूसरे का शौक, खिलौना, बातचीत और सपनों को देख कर आप किसान से मिलता जुलता व्यक्तित्व की कल्पना अवश्य कर लेंगे।

मेरा यहाँ यह कतई अर्थ नहीं है कि पिता का व्यवसाय ही पुत्र के भविष्य व प्रगति को तय करता है। मेरा तो बस ये मानना है कि जो जिस परिवेश में रहता है उसपर उसके सम-विषम आचरण का आ जाना स्वाभाविक है, प्रकृति की मिसाल है। और उसी परिवेश से निकला हुआ बच्चा अपने बचपन को जीते हुए जब युवावस्था में अपने व्यवसाय का चयन करता है तो उसमे उसके आचरण का विशेष महत्व देखा जा सकता है। अर्थात यह तय करना अनुचित नहीं होगा कि हमारे बच्चे कल के लिए सींचे जा रहे पौधे हैं।

कैसी है सिंचाई

बात अगर स्कूली शिक्षा कि की जाय तो यह कहना सामान्य सी बात है कि हमारा समाज तीन भागों में बंटा हुआ सा दिखाई देता है। ये दृश्य आज नया थोड़े है, आजादी के बाद से ही देखा जाता रहा है। एक वर्ग हैं जिनके बच्चे उच्च दर्जे के प्राइवेट स्कूलों के विद्यार्थि हैं, दूसरा वर्ग हैं जो अपने बच्चों को किसी प्रकार से मध्यम तबके के प्राइवेट स्कूलों में भेजने को विवश हैं और तीसरे वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों को निम्न श्रेणी के विद्यालय या बिहार, ऊ. प्र., झारखंड, जैसे राज्यों के सरकारी विद्यालयों में भेज कर अनुपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।

तीनों प्रकार के विद्यालयों कि तुलना की जाय तो पाएंगे कि शिक्षा तो तीनों दे रहे हैं, लगभग - लगभग पाठ्यक्रम भी उभयनिष्ठ ही हैं, तो प्रश्न ये है कि फिर अन्तर कैसी है इनके बीच!
गौर करने पर आप गुणवत्ता और सुविधा के तर्ज़ पर कई अन्तर गिना सकते हैं। चूंकि मैंने संपूर्ण भारतवर्ष का दर्शन नहीं किया है, अपने परिवेश को देखते हुए जहाँ तक मेरा मानना है कि ये तीनों तबके के विद्यालय और हमारे देश की शिक्षा पद्धति इन अंकुरों को एक अच्छा व्यक्तित्व और जीवन दर्शन की शिक्षा देने में सक्षम व समर्थ होते हुए भी इसके विपरित हैं । 

फिर चाहे वो किसी भी स्तर का विद्यालय हो वहाँ से निकलने वाले अधिकांश किशोरों के मन में पहली उत्कंठा यही होती है कि उनके वयस्क होने पर उनकी व्यवसाय क्या होगी?आमदनी कितनी होगी ? जरा आप सोचें कि खाने में आपको सिर्फ और सिर्फ चावल परोसा जाय क्योंकि आपको कार्बोहाइड्रेट की ज्यादा आवश्यकता है तो क्या आप इससे अपने मानवीय शरीर का पूर्ण विकास पा सकते हैं? मैं तो नहीं मानता। कुछ ऐसा ही है आज के अंकूरों का लालन पालन या सिंचाई। तदोत्परांत वे ना तो सुगम व्यवसाय दे पाते हैं खुद को और ना ही एक अच्छा व्यक्तिव के रूप में उभरते हैं , तो अब बात है कि होनहार निकलते कहाँ से हैं!  बस यह मान लीजिए कि घोंसला चाहे कितना भी सघनता से क्यों न बनाया गया हो उसमे मणि होंगे तो वो दिखेंगे ही फिर वो चाहे घिस के बनें या पीस के बनें।

आप खुद आकलन करें कि जितने भी विषयों कि शिक्षा दी जाती हों स्कूलों में उसके व्यावहारिकता पर गौर किया जाता है क्या? उनकी सार्थकता पर गौर किया जाता है क्या? क्या ये समझा जाता है कि आखिर प्रथम कक्षा में ही बच्चों को पर्यावरण, प्रदूषण, जोड़ना, घटाना, नीतिपरक  कहानियाँ, समान्य ज्ञान के तथ्य आदि क्यों परोसा जा रहा? जो समिति बच्चों के पुस्तकों को तैयार करती हैं उनके उद्देश्य को समझने का प्रयास किया है आपने कभी?
अगर आप गौर करें तो पाएंगे कि उनमे सिर्फ चावल नहीं परोसा गया है, अगर उत्कृष्टता से उसे प्रयोग में लाया जाय तो उनमें बहुत सारे पोषक तत्व मौजूद हैं।
हालांकि सिर्फ पाठ्यपुस्तक की शिक्षा पद्धति से मैं बिल्कुल असंतुष्ट हूँ पर जिस स्थान पर रहकर मैं सोंच पा रहा हूँ कि कम से कम सुदृढ़ करना तो अपने हाथ में है ।

कैसे हैं आज के पौधे व आधुनिकतम पेड़

बच्चे मस्त होते हैं। डर भी है, लगन भी है, प्रेम भी है, सम्मान भी है, आदर्शवाद भी है, सहनशीलता भी है, तपोमय भी है और साहस  भी है। पर सब में सब नहीं। 

क्या सबमें ये गुण निहित होने चाहिए? अब आप कहेंगे चाहिए तो बहुत कुछ कितना सम्भव हो पाता है! क्यों नहीं हो पाता? कौन है जिम्मेदार? मेरी मानें तो कम से कम बच्चों की तो गलती नहीं हैं।
हसते हुए चेहरे, फुदकते ओंठ, चंचल निगाहें और फुर्तीले शरीर - जैसे मानो नवें ग्रह यही हैं (अपार उर्जावान)। बस कमी है तो इस ऊर्जा के सही दिशाबोध में।

 एक पल को सोचें कि अगर विद्युत का संचार बल्ब और टीवी में नहीं होता तो क्या उसका उपयोग नहीं हो पाता? तब भी हो रहा होता। ऊर्जा व्यर्थ थोड़े जाती है, पढ़ा भी होगा आप सबने की ऊर्जा वो मात्रात्मक गुण है जो निरंतर परिवर्तित होते रहता है, संचारित होते रहता है, जिस मशीन के संपर्क में आता है उसके क्षमतानुसार उसमें अपनी उपयोगिता दर्ज करता है। बिल्कुल तारों में दौड़ते विद्युत की तरह जो दीवार पर लगे बल्ब को भी जलाता है और ट्रेन के इंजन से लगकर उसके इंजन को भी दौड़ाता है। अर्थात बच्चे अपने आप में एक ऊर्जा हैं जिनको हम एक दिशा में रोकना चाहते हैं या उनकी मानसिकता को एक ही उपकरण तक सीमित करना चाहते हैं। 

बच्चों से कब किस तरह का बर्ताव होना चाहिए, कब किस चीज़ से उन्हें अवगत कराना चाहिए, कब किस इंसान से परिचित कराना चाहिए, कब कौन सा साधन मुहैया करानी चाहिए - क्या ये सब हर एक अभिभावक के लिए अध्यन का विषय नहीं है? इन्हीं सब की अज्ञानता का नतीज़ा है कि इन ऊर्जाओं को सही दिशा नहीं दिया जा पाता और बच्चे अतिरिक्त मनोरंजन आदि में संलिप्त होते हैं।


...एक शिक्षक, और सर्वेक्षक के रूप में इन बातों को आपके सम्मुख लाना मेरा कर्तव्य है इसलिए किसी प्रकार की तारीफों की कोई जरूरत नहीं, आए दिन इस तरह के लेख अखबार आदि में छपते रहते हैं, आप चाहें तो समझें नहीं तो परिणाम आपके सम्मुख हैं । गिने चुने पाठकों में से दो चार महानुभाव भी अगर मेरे मन को ध्यान से पढ़ा होगा तो सहृदय धन्यवाद और साथ ही बाल दिवस की स्मृति पूर्ण शुभकामनाएं ।



Friday, October 29, 2021

सावन : एक दुर्लभ दृश्य


के शहर बीच बगीचा हजार देखा है
फक्र हो , गुलजार -ए -शादाब देखा है।
आरजू , ऐतबार , ख़ाब , अर्चना....
भवानी तेरे द्वारे माथे हजार देखा है।

काली घटा, जिसमें छुपा चांद देखा है,
फक्र हो, हुस्न - ए - गुलाब देखा है।
मुस्कान, नजाकत, शराफत, शरारत ...
फक्र हो साहब तूने प्राकृतिक फुहार देखा है।

रंगीन दोपहरी और मदहोश शाम देखा है,
मर्यादा की दामन में प्रेयसी हमार देखा है।
गुफ़्तगू, किलकारियाँ, बेपरवाही, जिम्मेवारियां...
हाँ साहब तूने संगीत ए खास सुना है

परछाई में चाँदनी, पवन में महक पाया है,
फक्र हो, तिरंगा लिए सरहद ए हिंद देखा है।
जुनून , हिम्मत, देशभक्ति, कोप...
साहब तूने आज झलक ए हिन्दोस्तान देखा है।

श्वेत ज़मी पर केशरिया अलंकार देखा है,
धरा के बीच  पुष्पों का क्यार देखा है।
हिफाजत, मोहब्बत, दिवानगी और क्या...
साहब दऊ महीने बाद तूने बसंती खुमार देखा है।

अंगारों के सिरहाने शबनमी बुखार देखा है,
अश्रु की धार, माने रेशमी बौछार देखा है।
हाँ खनक, झनक, महक और क्या...
फक्र हो साहब आपने दुर्लभ झपास देखा है।

Sunday, August 29, 2021

Udte Parinde

Abhi- abhi to mile hain

Do udte hue parinde

Ek dheer dharte- dharte

Ek fikra karte -karte


Wo dhairya tha sneh ka

Aur fikra thi bhavishya ka

Pani mila jalte hue ko

Fikra zinda rah gya h

Abhi - abhi to mile hn

Do udte hue parinde


Aadhar kya us fikra ka

Simta de jo dono ke par

Barsaaat bhi ab ho gyi

Aakash par halka hua na

Bheenge hue dono ke par hain

Fikra saanse le rha hai

Abhi - abhi...

Do udte...


Kahte jisse Ham Aabroo Hain

Jode hue ham dharm se hain

Jaat - paat, rang - vesh

Inpe hi to atke hue hain

Mithya Nahin kya vo Pratishtha

Jo aadhar - e - fikra ban chuka hai

Abhi - abhi...

Do udte...


Ek dharm Mein ek jaat Mein

Ho Milan ek vritti mein

Kitne sahaj the log ve jo 

Ye tajoorve de gaye hain 

Bhul unse ye hui ki

Shodhan nahin batla gaye hain 

Abhi - abhi...

Do udte... 


Ham Yahi bas Sikh liye ki

 unsa hi Ijjat Mile

 ye to dekha hi Nahin ki

 sahjta vo dhampe Nahin the

 Kyon na ye bhi sikh len Ham

 Saral ganit ke kathin prashn hi

 haan Yahi to ban jayen ham.

Abhi - abhi...

Do udte...


kya Nahin Rudhi hue hum 

Bin vichare jee Rahe Hain 

Aarambh hi Na Ho Milan Ka

to Kaise Vividhta Ek Hoye

Baithe Rahen Sab Apne Ghar Mein

To Kaun Gali ko jagmagaye

Abhi - abhi...

Do udte...


Band rakhte Pinjre me 

na to par hi Kat lete 

Kyon Diya Shiksha Agar

Usi Ki chamakk se dar Rahe

 Har Bhavna par Jeet aapki

 to Insan Kaise Huye ham?

Abhi - abhi...

Do udte..



Agraj hain aap Hamesha Rahenge

unch neech behtar hi janenge, 

Kurban Kar den Ham Agar 

bolen ki bachche Kaun hue firr ?

Dwaar dono Hi Khule Hain

Ek aap manen Nahin

 duja hum chunen nahin 

Abhi - abhi.... 

Do udte... 


Maan liya hai ab to ye ki 

Astitva Nahin is Prem ka hai

 char din Ji Le Ham Milkar 

Fir To Dur Jana likha Hai 

Jeet Ke Bhi Kya Milega 

Do Dilon ko cheer ke  

ye bhi Didar Kijiyega 

hm parindon ko janm deke 

Abhi - abhi to mile hain 

Do udte hue parinde

Friday, May 14, 2021

इबादत - ए - इश्क़

 


कहीं दूर से, तेरी खूशबू आयी है।
तेरी गलियों में हूँ , निहारता हुआ।
हर कदम पे, तमन्ना-ए- इश्क़ होगी।
मिले तुम अगर, तो राह - ए - ज़िंदगी आसान होगी।
ग़र ना मिले, तो मंजूर- ए - इश्क़ होगी ।

कहीं दूर पर्वत से, तेरे गीतों की ध्वनि आयी है।
हर पग पे रस बदलें, कुछ यूँ नजाकत है तेरी।
तुम तो तुम हो,स्वाद अपने हैं मेरे।
मिले  तुम अगर तो, महफ़िल मे हम भी होंगे।
ग़र ना मिले ,तो एक महफ़िल हमारी भी होगी।

कि हर कतरा हो वाकिफ़ रग रग से, यूँ रास्ते हैं तुम्हारे।
दीदार तो कसौटी ही है तुझे पाने की ,पाकर क्या देखूँ ?
तेरा यूँ नजरें फ़ेर लेना भी , इम्तिहान- ए -चाहत है हमारी।
मिले तुम अगर तो, हम प्रकाश हो जाएं।
ग़र ना मिले, तो यूँ समझो हम दृश्यमान हो जाएं।

तमन्ना है आलिंगन हो तुम्हारा, और मधुमेह ना ले आए।
बेशक तुम यूँ मिलो इस आटे में की मिष्ठान बन जाएं।
गुलाब ख़्बाब दवा जहर जाम, क्या क्या रक्खा है तुमने सिरहाने में?
मिले तुम अगर साकी, तो हम शराबी न हो जाएं।
ग़र ना मिले, तो हम पूरे शराब न हो जाएं।

छनकती पायल तुम्हारी, चित्तचोर हो ये आम है।
तेरी ही चोरी से खुद को चुराना, तेरा शर्त - ए- आम है।
नियति का साथ, ये तो अचिन्त्य है रे पगली।
मिले तुम अगर, तो  नियत ही पहचान बन जाए।
ग़र ना मिले, तो शख्स नियति की पहचान बन जाए।

तड़प की वेदना, विरह बनके पहुंचें ओ प्यारे। 
त्याग, तप, चाह - ये सब डाकिये हैं हमारे। 
धैर्य की स्याही वक़्त की जमीं पर उकेरें।
मिले तुम अगर, तो पत्र भी पवित्र हो जाए।
ग़र ना मिले, तो प्रेम पत्रकार बन जाए।

रश्म - ए - वफ़ा ही ऐसी है, तुझे पाने की।
कि हर आशिक, समृद्ध हो जाए। 
पाना, खोना तो कर्मों की उपज है सखी। 
मिले तुम अगर, तो बंजर पर स्वर्ण उग आए। 
ग़र ना  मिले, तो भी ये धरती धनवान बन जाए। 

क्या घटा है, तेरी वफ़ा कि ओ रे सखी।
की सबका जीवन, किसानी होने को चाहे।
ताज्जुब! गुड़ का प्रतिवचन शहद के चुंबन से!!
सूर जो मिले तो, हुंकारों की शंखनाद हो उठे।
ग़र ना मिले तो, गन्ने को शहद की माधुर्य मिल जाए।




Saturday, September 19, 2020

चुनाव : प्रचार - प्रसार

 



नए प्रत्याशी जनता को अपनी शक्ल और चिह्न दिखाएं तो थोड़ा समझ आता है, लेकिन वो प्रत्याशी जिन्हें जनता वर्षों से देख रही हैं या देख चुकी हैं, ये मज़ाक लगता है। किसी भले मानुष की आवाज है कि "काम बोलता है" , तो वो बोली प्रचार के लिए कम पड़ गया है क्या जो आपको ऐम्पलीफाइ करना पड़ रहा है? खैर हमनी के का पता हम बुडवक जो हैं।

जब कनिष्ठ कक्षाओं में हुआ करते थे न तो 5-7 महानुभाव चिलचिलाती धूप में नंगे पांव बाहर निकल आते थे इनकी लाउडस्पीकर को सुनकर पता है क्यों, ये पर्ची बांटते थे। पर्ची में अभ्यर्थी का नाम, हांथ जोड़ के खिंचवाया हुआ फोटो, चुनाव चिह्न और नंबर इतना पढ़ करते पैंट के पॉकेट में डाल लेते थे। दूसरी बार जब पर्ची को पढ़ते थे एक लंबी लिस्ट होती थी जिन्हें हमलोग वादे बोलते हैं  और अंत में पढ़ते थे 12500 प्रतियां, 17000 प्रतियां जो कि हरेक प्रति सबसे नीचे होती थी । उस वक्त बस ये सोंचते थे कि अभी पर्ची बांटा जा रहा है, फलाना तारीख को  स्कूल में चुनाव होगा , और हमलोगों की छुट्टी होगी। ना तो उसकी परवाह होती थी कि लिस्ट में क्या हैं और ना ही इसकी की ये लिस्ट ही क्यों हैं?
मनोरंजन तो बच्चों को हर चीज़ में मिल जाता है इसमे भी मिलता था, किसके पास सबसे ज्यादा प्रति है?
आज ये सोचते हैं कि वो हज़ारों प्रतियां उसी तरह से बच्चों को मनोरंजन के लिए बांट दिया करते थे,  खैर एक पल के लिए मान लेते हैं कि प्रतियां मनोरंजन हों कोई बात नहीं लेकिन वो नेता, उनके जोड़े हुए हांथ, इत्यादि सब के सब क्या मनोरंजन ही थे?
जितने वाले तो भूल जाते होंगे कि प्रिंटिंग प्रेस वालों की कितना रुपैया दिए थे, लेकिन हारने वाले को जरूर याद होगा कि ये वास्तव में मनोरंजन पर किया गया व्यय था?
उसकी तो बात ही छोड़िए की क्या होना चाहिए नहीं होना चाहिए जब हम  विधायक बनेंगे तब पूछ लीजियेगा 😁😁। मज़ाक कर रहे थे 😂
  आज वो सिहरी हुई पांव बूथ तक को जाने को तैयार  हैं, लिस्ट आज भी हैँ, क्या बोले नए वाले!!! अरे पन्ने नए हुए हैं वो तो अब भी वही हैं।
लेकिन आज ये उंगली प्रतियाँ जमा करके मनोरंजन नहीं करनेवाली  हैं। ये घिस गए हैं वादे वाले पन्ने गिन गिन के। घिसने से चमक आ गयी है, अरे दिमाग मे भई ।




Tuesday, June 23, 2020

Ploughman

Beetles noise when at night 
ploughman takes the posture right
He beholds the next day's plannings
Eyelids compel for present living
While he found in the slumber
Thy thalamus ships him to the tractor
Turns posture of sleeping body
Other wall of spacious lobby
He is now on his plane
Aviating above towering cane
Clucking gave signal to wake
Sleepless ploughman just at four awake
He is now in the fallow land
For the ploughing as he planned
Sharpen voice of little birdie
Pleasant breezes thrill him early
Sun is feverish to appear
 nimbostratus blankets over & over
Hydrated soil is easy for traction
Peasant is to finish operation
Pearly Droplets surprised a little
He is gifted in a riddle
Daystar hidden cent percent
Water is coming very constant
He amended in today's planning
Next step will be the leveling


Just after a sound he heard
Ding - dong of the anklets appeared
Yes, she was his cute Shrimati
For the lunch he carried basmati
After having he changed hardware
Trolly hook to ground leveler
Finished the work returned near three
Took a bath and sip of tea
In the evening leaves his den
To asking for the ladies and men
This night when comes to cart
He was happy in his heart
O! Dear reader did you sense
It was raining cats and dogs
You must have read and may get bore 
that paddy crops need water more
Became more happy than the past
Standing in the field assuming forecast
As far as his lens can capture
 nothing else but theme of silver 

Just after he comes to take 
He has left spade by mistake 
He sends labours to his field 
Himself goes to repair the field 
Mens are sent to draw the seedlings 
Ladies are for planting them 
In a week disposed his doings 
Sleepless man takes sleeping deep



Tuesday, May 19, 2020

Books are rum

बड़े प्यारे लगते हैं पन्ने अगर किताब अनदेखे मिल जाएं
बड़े मुश्किल होते हैं  नाटक अगर वो समझ ना आएं

ख्याल ये होता है कि  पूरे रसगुल्ले मुँह में हों
ये पुस्तक गन्ने होते हैं साहब चूसने का भी धैर्य होने चाहिए 

ये फुल स्टॉप भोले होते हैं पथिक को रोकते रहते हैं
मुसाफिर जितना थकता है थकावट कमती जाती हैं 

संदेह नहीं कि बड़े निष्ठुर होते हैं ये गन्ने दाँतों से चैलेंज करते हैं
अब क्या बताएं आपको दाँतों को लड़ना भी यही सीखाते हैं

हसरत ऐ दिल तो यूँ होता है कि किताबें याद हों जाएं
गन्ने से द्रव्य निकलता है साहब रवा बड़े कम बनते हैं 

पुस्तकें द्रव्य देती हैं आप घड़ा बढ़ा लें अपनी
रवा तो तपने से ही बनेंगे आग बढ़ा लें अपनी 

विचलित ना हो मन समय का महत्व सोच सोच के
वक्त मीठे होते नहीं हैं रस में डूबा कर बनाने होते हैं 


किताबों के रस के भी अपने मिठास होते हैं
आप जितना पियोगे वो बढ़ते ही रहते हैं







Saturday, April 25, 2020

Commas of the life

Ofcourse count your problems, 
Not for expressing before someone else. 
Ofcourse release your teardrops, 
Not for soaking someone else. 
Ofcourse fracture your pen, 
Not only after giving death penalty. 
Ofcourse scold whom you want, 
Not in presence of the third one. 
Ofcourse tease whom you love, 
Lesser in the crowd than in  together. 
Ofcourse respect who really deserves, 
Doesn't matter when and where. 
Ofcourse remember your lord, 
Not only when you are troubled
Ofcourse help who really needs, 
But teach him first how to handle. 
Ofcourse enjoy what you have, 
But not before one who hasn't. 
Ofcourse study in your classroom, 
But try to teach yourselves everywhere. 
Ofcourse get scared before one, 
But always more by yourselves than one. 
Ofcourse forgive whom has mistaken, 
But always keep his mistakes in mind. 
Ofcourse ignore one's cheekiness, 
But make the limit very short. 
Ofcourse reply same for all the same questions,  
But consecutively change the emotions for comfort. 
Ofcourse respect the things related to you, 
But  also keep the listener's belongings in your mind. 
Ofcourse follow your tradition, 
But don't consider that it's only the righteousness. 
Ofcourse learn other fonts a lot, 
But never lose your indegenous
Ofcourse bear up with thousands of difficulties, 
But not with a single disrespect. 
Ofcourse be 'good' dear reader, 
But never try to prove your listener. 
Ofcourse be a good thinker, 
But don't let your brain that that's sufficient. 
Ofcourse learn any languages, 
But not to scare but for ease. 
Ofcourse orient the youth towards the parenthood, 
But never consider that that's the completest
Ofcourse enumerate all the shortages, 
Remember also that they're are too resources
Ofcourse share the failures courageously, 
Need not to share your success. 
Ofcourse stay in your relationship, 
But your affection is major than the affectionate. 
Ofcourse get moisturized by other's numbers, 
But always sink in your own waters. 

Thursday, April 23, 2020

रिसोर्स : जिंदा भी तेरा, राख भी तेरा

इज्जत से इस्तेमाल करोगे तो इज्जत बचा पाओगे,
लूटोगे तो एक दिन खुद को भी दांव पे लगा दोगे।
मुझे क्या है बे आज भी तेरा हूं कल भी रहूँगा,
तू सोच ले क्या आज लूटोगे  क्या बचा के रखोगे।
मूक हूँ तो क्या हुआ बे मेरी जिंदगी खुद का नहीं है,
अबे जिंदा तो जिंदा, राख भी होकर ये जिंदगी तुम्हारी ही है।
बेटा ये कविताएँ लिख पढ़  के कुछ नहीं होगा,
यूँ त्रुटियाँ गिनने से रत्तीभर फर्क़ नहीं पड़ेगा।
अगर कर सको तो ठीक नहीं तो हथोड़े कौन पीटेगा,
तू नहीं सोचा तो ये बारात  तो खाक भी चाट जाएगा।
भाई उतावला ना हो बस बर्बाद करता हुआ ना देख,
हथोड़ा नहीं बाबु हाथ पीट और प्रणाम करके देख।
बस बेइज्जती के हकदार को सीधा इज्जत देके देख,
आंसू कम पड़ जाएंगे उनको पानी देके देख।

Wednesday, April 22, 2020

निद्रालोप

नजरे बेचैन होती हैं
शिकायत दिल से करती हैं
दिल कसमें गिनता है
ये नजरें भींग जाती हैं
आंसू गिरते हैं उनसे
ये दिल को भी भींगाते हैं
ये दिल फिर भी धड़कता है
चाहत उनकी करता है
अचानक बीच उनकी 
ये दिमाग है आ जाता 
ये दोनों को एक एक करके 
बेवकूफ है कहता 
वो दोनों करते हैं ऐसे 
की जैसे बच्चे हों माँ के 
ये मष्तिष्क बाज ना आता है 
जोरों का थप्पड़ जड़ता है 
नजरें घूरती हैं दिल को 
ये दिल भी घूरता है उसको 
फिर दिमाग भी उनको, अपनी करुणा दिखाता है 
दोनों को एक ही साथ अपनी बाहों में भरता है 
फिर तीनों के लफ्जों से 
ये सुर एक साथ निकलता है 
की जिंदगी हैं मिली हमको 
तो इसको जाया ना करना है 
कीचड़ को भी भर-भरके
मटमैली काग़ज़ों पर ही 
 अपना भाग्य है लिखना 
अपना भाग्य है लिखना 


Tuesday, April 21, 2020

पिकनिक_एक_कहानी


ये उस दौर की बात है जब मुझे और मेरे महानुभावों को पिकनिक का मतलब बस ये पता था कि घर से बाहर बिना माताओं की मदद के भोजन पकाना। जब बनाने गए तो ज्ञात हुआ की सिर्फ एक वक्त का भोजन जुटाने में क्या - क्या मशक्कत करनी पड़ती है, क्या-क्या सोचना पड़ता और कौन - कौन से किरदार निभाने पड़ते हैं। 
उन दिनों हमारी समझ इन बातों को observe करने की नहीं थी, हमलोग बस एक पल में पूरे तन - मन से खुशियां बटोरने में व्यस्त हो जाया करते थे। हमारे ग्रुप में कूल 6 महाशय थे - Sonu(1),Raushann औरPiyush ये तीनों दो क्लास सीनियर थे। Sonu(2),Surya और मैं (Kumãr) classmate और कुछ juniors (Alok, Rakesh, Tuntun, Rishav, #ranjan....) ।
Accurate याद नहीं है कि किसका आइडिया था पिकनिक का। एक ही दिन में सारे दोस्तों के साथ मीटिंग हुई और agreement पास हो गया। पिकनिक की तिथि थी 1st जनवरी। वर्ष याद नहीं है। कुछ दिन दिसम्बर के बीतते हीं ये agreement हुआ था। ना जाने कितने रूपये और चावल जमा हुए थे क्योंकि ये किरदार seniors का था। हाँ ये अलग बात थी कि हम सब खुद को एक ही उम्र के मानते थे किंतु वास्तविकता यही थी कि वो तीनों गाँव से 2km दूर मार्केट के मिडल स्कूल में पढ़ते थे और हम सब गाँव के मिडल स्कूल में। चूंकि वो दो क्लास सीनियर थे उनकी समझ हमसे थोड़ी अधिक थी।
जैसे तैसे प्लानिंग करते हुए 31st दिसम्बर आ गया । 
डिश था "aaloodam bhat" 
लिस्ट लिखा गया जोकि की actually सबको मौखिक याद हो गया था प्रतिदिन के डिस्कशन से।
                     आलू - ढाई किलो
                     प्याज - एक किलो
                     फूलगोभी-1pcs.
                      मटर - 1 किलो...
 कुछ छोटे सामाग्री जैसे नमक, हल्दी, मसाला, तेल, दुध ये सब सबके घर से उपलब्ध होना था। 
दोपहर के बाद दो साईकिल निकली और शाम होने से पहले सारा समान आ गया। रात्री में सब अपने-अपने घर चले गए और सुबह होने का बेसब्री से इंतजार किया जाने लगा। उस वक्त हमलोगों के पास ना तो एक वित्ता का फोन था और ना ही facebook या WhatsApp का कोई ग्रुप, नहीं तो ना जाने रात भर में कितनी बार पिकनिक मनाई जा चुकी होती।       
                         सुबह बिस्तर पर ही थे तो घर में कुछ शोरगुल सुनाई दिया, मम्मी का आवाज स्पष्ट सुनाई दे रहा था कि "पवन के बुखार है बुआ तोहनी जा .. जाके बनाबऽऽ, बनला के बाद ओरा बोला लियऽऽ हू। " जैसे ही मैं ये शोरगुल सुना छटपटाते हुए रूम से बाहर निकला और बरामदे में जाकर खड़ा हुआ ,एहसास हुआ कि काफी तेज बुखार था । लेकिन मन में तो किसी और चीज़ का बुखार चढ़ा हुआ था। कुछ देर के नोंक-झोंक के बाद घरवालों को ये समझ आ गया कि अगर ये नहीं जाएगा तो इसका बुखार और बढ़ जाएगा 😂 और अंततः permission मिल गया।
                       उत्सुकता कुछ यूँ समंदर में गोते लगा रही थी कि हैप्पी न्यू ईयर भी किसी ने किसी को wish नहीं किया। इसे कहते हैं मोमेंट को हैप्पी बनाते वक्त इंसान भूल जाता है कि उसे कैसे हैप्पी बनाना है। यानी जब जब आप किसी चीज़ में 100 पर्सेंट खो जाते हैं तो उस वक्त आपको ये ध्यान नहीं रहता की आप ये काम खुश होने के लिए कर रहे हैं वो अपने आप अच्छा और खुशी का मोमेंट बन जाता है।
      तभी मैंने देखा कि तीन लोग एक- एक बोरियां थामे खड़े हैं, एक में खरीदी गयी सामाग्री थे , दूसरे में चावल व घर से उपलब्ध किए गए कुछ समान और तीसरे बोरी में गोइठा, खोहिया आदि था। मेरे घर से मम्मी सकुचाते हुए कुकर दी और थोड़ा सा किरासन तेल ताकि आग जलाने में मदद मिलेगा। 
          सबलोग फनेला भीर (जामुन का एक पुकारू पेड़ है,अब तो सूख गया है 😐) जमा हुए, पास के एक खाढ़ (सब्जियों का एक छोटा सा खेत) से कुछ टमाटर चुराए गए। वहाँ से सबलोग योजनानुसार बजरंगबली के मंदिर के समीप संस्कृत विद्यालय पहुचे। पहुचते ही दो लोग ईंट से अस्थायी चूल्हा बनाने में जुट गए और बाकी सब मिलके लकड़ी और पत्ता इत्यादि की खोज में निकले। कुछ देर बाद सब लौटे तो सबके हाथ में थोड़ा - थोड़ा ईंधन था। योजनानुसार सबसे पहले चाय बनाया गया और आसपास बैठे कुछ बुजुर्गों के साथ बैठकर सब चाय पीए। फिर एक - एक करके भोजन भी बना।
आलूदम!!!!... भात!!!!
सब खाने बैठे, और एक दीदी थी जिन्होंने सबको परोसा। खाना कितना स्वादिष्ट बना था इसका तो किसी को ख्याल ही नहीं था क्योंकि सारे इस खुशी में व्यस्त थे कि आखिरकार धुआँ फूंक फूंक के खाना बन ही गया। चूंकि सारे लोगों ने बराबर मेहनत किया था और सबने काफी इंतजार भी किया था, सबको भूख भी लगी थी खाना अपने आप स्वादिष्ट लगने लगा। खाने के बाद किरदार आया बर्तन धोने का। कुछ लोग धोए, कुछ लोग चापाकल चलाए, सारे बर्तन साफ हो गए। लेकिन कुकर बिल्कुल भी साफ नहीं हो रहा था (इस तरह के आग मे पकाने से पहले बर्तनों में मिट्टी का लेबा लगाया जाता है उसमे लगाना छुट गया था 🤣🤣)। सब डरे हुए थे और सबसे ज्यादा मैं। कोई कमेन्ट कर रहा था, कोई निरंतर साफ करने की कोशिश कर रहा था और मेंरे दोनों classmates मेरी ओर से सबको डांट रहे थे। अंत में सोनू (2) ने कुकर उठाया और सब घर की ओर चल पड़े। फनेला भीर से सब अपने अपने घर की ओर लेकिन रौशन, सोनू (2)और मोनू (1) अब भी मेरे साथ घर तक जा रहा था। घर तक तो पहुंचा दिया कुकर लेकिन अंदर जाने का किसी को हिम्मत नहीं गेट पर रख कर ही तीनों भाग गए। अब वास्तविक culprit थे हम कुकर हाथ में था। सोचा तो था कि ढेरों उपलब्धियों मिलेंगी आज लेकिन दादा का एंट्री होता है एक दम सही समय पर
Mummy : एहि से हम कुकरवा देबे ला न चाह रेली हल
Dada : का होतय बाल बुतरू सब कैसे कैसे पकैलके ह थोड़ा गंदे हो गेलय त ओरा ला का दिक्कत है
Mummy :अपने के कुछ बुझा है हमरा न साफ करे पड़ऽऽ है
Dada : तू रहे दीहऽऽ हम दुन्नू बाबा पोता धो देंगे, का बेटा।


Thursday, March 5, 2020

सोशल मीडिया : एक सोंच



सोशल मीडिया आज के दौर में हरेक इंसान का लंगोट बन चुका है। आप चाह कर भी नहीं चौंक सकते मेरे इस वाक्य से क्योंकि वास्तव में ये (सोशल मीडिया )हमारी अधिकतर जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्तरदायी बन चुका है। विश्लेषण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वो आप बेहतर जानते होंगें। हां, ये शत प्रतिशत सत्य है कि आज हम किसी भी वर्ल्ड वाइड न्यूज से सबसे पहले अवगत हो जाते हैं। ये भी सत्य है कि हम अपने विभिन्न रुकावटों को हटाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं - वो चाहे स्टडी रूम हो,किचन रूम हो, गेस्ट रूम हो, बाथरूम हो, बेडरूम हो, पूजा रूम हो, मनोरंजन रूम हो और ना जाने कौन कौन से रूम यानी सारे रूम के उपभोग करने वाला व्यक्ति इस चिड़िया (सोशल मीडिया) को जी भरकर उपयोग करते हैं।
बहुत सारी मुश्किलों को दूर करने में , नए लोगों से जुड़ने में, लोगों की पंखों को उड़ान देने में सोशल मीडिया काफी लाभप्रद देखी जा सकती है।
अब मैं आपसे कुछ ऐसी बातेँ साझा करने जा रहा हूं जो हर युवा की सोच होनी चाहिए लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि बहुत कम लोगों इसपर सोचते हैं -
बढ़ती व्यस्तताओं और आवश्यकताओं के कारण हमारे देश के युवा अपने तीसरे नेत्र का उपयोग ना के बराबर कर रहे हैं
सोशल मीडिया का हरेक स्तंभ इस तरह से मजबूत नहीं प्रतीत होता है जैसा होना चाहिए। इस पर भारी मात्रा में अश्लीलता और झूठे (जाली) समाचारों को परोसा जा रहा है। आज हमारे देश का हरेक युवा साथी हर 5 मिनट किसी न किसी प्रकार से सोशल मीडिया के संपर्क में आ रहे हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है। आप खुद आकलन कर सकते हैं। बस आप 10 मिनट के लिए बारी-बारी से सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को खोलिए और नोट कीजिए कि आपने वहां क्या देखा। आप खुद कहेंगे कि हम क्या देख रहे हैं। क्या यह एक बड़ा प्रश्न नहीं है कि आप हर 5 मिनट में क्या देख रहे?
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप में से बहुत कम लोग ही निर्देश को जो ऊपर दिए गए हैं उसका अनुसरण करेंगे।
इसलिए ध्यानपूर्वक पढ़ें- मुझे ऐसा लगता है कि आज के दौर में सोशल मीडिया पर या तो लोग अपने आपको अच्छा दिखा कर अपनी पहचान बनाने में व्यस्त हैं। या तो वो चंद रुपए कमाने के उद्देश्य से अपने व्यापार आदि को बढ़ावा देने के लिए प्रचार-प्रसार करने में व्यस्त हैं।
लोगों को लगता है कि वह खुद को दिखाएंगे या अपनी चीजों का प्रसार करेंगे तो जनता उन्हें जानेगी। क्या बस इतने तक में सीमित होनी चाहिए उनकी सोच? अरे यह भी सोचें कि जनता आपको जान कर क्या करेगी? क्या जनता की जरूरत सिर्फ आपको जानना है?
अजीब कंपटीशन देखा जाता है आज हमारे युवा साथियों के बीच में, तुम्हारा कितना लाइक है, मेरा तो इतना है? जबकि सच्चाई तो यह है कि like , dislike देखना या देखकर खुश या दुखी होना मूर्खता है। आप खुद को कितना लाइक करते हैं और कितना dislike करते हैं ये बड़ा प्रश्न है?
हालांकि ये प्रश्न इतना मुश्किल नहीं है किंतु आसान भी नहीं है।
सच्चाई तो यह है कि जनता का तवा इतना बड़ा और सस्ता है कि जो चाहे अपनी रोटियां सेक लेता है। जरा सा कोई ये नहीं सोचता कि जिस आग से तवा गर्म हो रही है वह बहुत मेहनत से उपलब्ध हो सकी है।
मैं उन तमाम लघु एडवरटाइजर को यह प्रश्न करना चाहता हूं कि क्या आपका व्यापार जिसके लिए आपको अश्लील प्रचार करना पड़ रहा है वह समाज के अंकुर जैसे नन्हे बच्चों के मानसिकताओं से बढ़कर है? क्या वह व्यापारी यह नहीं जानते कि बच्चे सबसे ज्यादा सीखते हैं कोई भी चीज को? क्या वो व्यापारी ये नहीं जानते कि आपकी आगामी तिथियाँ बच्चों की सोच पर निर्भर करती है जिसे आप अपने व्यापार के साथ समझौता कर रहे हैं?
मैं कदापि नहीं कह सकता कि सारे लोग जो सोशल मीडिया से कनेक्टेड हैं वो सारे एक ही जैसे हैं, यह मेरी मूर्खता समझी जाएगी क्योंकि ऐसा नहीं है। मैं सोशल मीडिया पर बहुत सारे ऐसे सक्रिय तत्वों से भी रूबरू हुआ हूं जो काफी सकारात्मक हैं जिनकी सोच और सार्थकता हमारे युवा और अंकुर दोनों के लिए काफी लाभप्रद है।
अगर आपने इतना पढ़ लिया होगा तो यह सवाल जरूर उत्पन्न हुआ होगा आपके मन में कि इसका निदान क्या हो सकता है? उपाय इतना कठिन भी नहीं है किंतु आसान भी नहीं है। आप किसी को यह कह कर नहीं रोक सकते हैं कि बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो, बुरा मत सोचो, इत्यादि क्योंकि ऐसा बोलने पर सबसे पहले तो उस इंसान की जिज्ञासा और बढ़ जाएगी की कोई चीज़ हमसे छिपाया क्यों जा रहा है या फिर उस काम को करने से हमको मना क्यों किया जा रहा है। और दूसरी बात यह भी है कि हरेक इंसान की डिक्शनरी में अच्छा और बुरा की परिभाषा अलग हो सकती है क्योंकि वह उसके पास्ट में किए गए एक्सपेरिमेंट पर निर्भर करती है।
निदान सिर्फ ये हो सकता है कि आप सोचें कि आप क्या दिखा रहे हैं, इसका क्या-क्या प्रभाव हो सकता है?
निदान सिर्फ ये हो सकता है कि आप खुद से ये प्रश्न करें कि आप क्या देख रहे हैं?

Some parallel thinkers' thoughts 

Sunday, February 9, 2020

Translating a picture


There is an unknown forest. That is the month of February means lasting of winter season.Prince and his pigeon are fighting carelessly a little fight.  The shadows of floras are making the environment romantic with their darkness and coldness. And the hot sunlight is consecutively trying to bright and warm them. Suddenly the princess tweets that I return quickly. After that she sneaks off the prince handing a bow and some arrows. The pigeon points on a guava for plucking it. Here she thinks that she is hidden but the prince has seen her due to tinkling of her anklets. The princess tries thrice for plucking the fruit but consecutively she is defeated by her  missing tries . Prince comes under the tree. He jumps straight and plucks the green guava. But the pigeon doesn't see him and drops the arrow towards the guava that has already broken by the prince. She's again missed the target and the arrow directly shots on the chest of the falling prince (after jumping he is falling down with guava). The prince screams a little and falls down with guava and arrow on his chest. Some tissues of blood spread on the white  kurta. The  spot of blood makes the eyes tearful of the pigeon. But the prince's eyes don't able to look the spot on his chest because they (eyes) are busy in looking the running princess. He is looking her ups and downs, her eyes, her flying hair, her anklets her flying dupatta and so on that can't be described. When the pigeon stands near him, they are gazing and gazing and gazing at each other.
Is the picture relatable with the given picture?


एक अनजान जंगल है।  यह फरवरी का महीना है, जिसका मतलब है जाड़े के मौसम का अंतिम । एक राजकुमार और उसकी राजकुमारी अल्हड़पन के साथ नोंक झोंक कर रहे हैं ।  वनस्पतियों की परछाइयाँ अपने अंधेरे और शीतलता से पर्यावरण को रोमांटिक बना रही हैं।  और गर्म धूप लगातार उन्हें उज्ज्वल और गर्म करने की कोशिश कर रही है।  अचानक राजकुमारी चहकती है कि मैं जल्दी लौटती हूं।  उसके बाद वह एक धनुष और कुछ तीरों के साथ राजकुमार से छिपते हुए भागती है। कन्या एक अमरूद पर निशाना बांधती है। यहाँ वह सोचती है कि वह छिपी हुई है लेकिन राजकुमार उसे पायल की खनखनाहट के कारण देख लेता है।  राजकुमारी फल को तोड़ने के लिए तीन बार कोशिश करती है लेकिन लगातार अपने गलत कोशिस से हार जाती है।  राजकुमार पेड़ के नीचे आता है।  वह सीधे कूदता है और हरे अमरूद को तोड़ता है।  लेकिन राजकुमारी उसे नहीं देखती है और अमरूद की ओर तीर छोड़ देती है जो पहले ही राजकुमार द्वारा तोड़ लिया गया है।  वह फिर से लक्ष्य से चूक गई और तीर सीधे गिरते राजकुमार के सीने पर जा लगा (उछलने के बाद वह अमरूद के साथ नीचे गिर रहा है)।  राजकुमार थोड़ा चीखता है और अमरूद और अपने सीने पर लगे तीर के साथ नीचे गिरता है ।  रक्त के कुछ ऊतक सफेद कुर्ते पर फैलते हैं।  रक्त का धब्बा राजकुमारी के आंखों को अश्रुपूर्ण बनाता है।  लेकिन राजकुमार की आंखें उसकी छाती पर लगी खून को देखने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि वे (आंखें) दौड़ती हुई राजकुमारी को देखने में व्यस्त हैं।  वह उसकी उतार-चढ़ाव देख रहा है, उसकी आँखें, उसके उड़ते हुए बाल, उसके पायल, उसके उड़ते दुपट्टे और भी इसी तरह के चीज़ जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। जब राजकुमारी उसके पास खड़ा होती है, तो वे टकटकी लगाकर देखते हैं, देखते हैं और देखते ही रहते हैं।

 क्या चित्र दिए गए चित्र के साथ संबंधित है?

Thursday, December 19, 2019

Writing a picture : erotic plus marvellous


There is a midday of winter. The sun is shining with its slight warmth. Chilly wind seems restless. Overall the environment is balanced with the hybrid of the sunlight and the wind. A boy is laying on the comfortable hard grass putting his head on the lap(thighs) of his lover one. Softness of the thighs that is sufficient to don't let feel the harshness of the grass. The girl is sitting and doesn't want to lay because she feels comfort at the level of extreme in her position. Careless wind doesn't understand their sentiments. The wind is repeatedly blowing and dispersing the untied hair of the pigeon(girl). They are as staring at each other that any disturbances seem little.They (disturbances) are trying to touch them but they are frequently burning as the couple is covered with the shield of the warmth love. The fingers (that are cold due to Chilly wind) of the girl is moving very slowly among the many hairs of the boy. The boy is feeling tranquility (relax)a lot. They were lost in the love as they couldn't veiw the sun was being snatched its warm lights slowly.
..... The picture formed?
Any artist here who can help me in the drawing these words as craft?

चित्र लेखन 

 सर्दियों का एक दोपहर है।  सूरज अपनी हल्की गर्मी के साथ चमक रहा है।  सर्द हवा अशांत जान पड़ती है। कुल मिलाकर पर्यावरण सूर्य के प्रकाश और हवा के हाइब्रिड से संतुलित है।  एक लड़का अपने प्रेमी की गोद (जांघों) पर अपना सिर रखकर आरामदायक सख्त घास पर लेटा हुआ है।  जांघों की कोमलता जो घास की कठोरता को महसूस नहीं होने देती है।  लड़की बैठी है और लेटना नहीं चाहती क्योंकि वह अपनी स्थिति में चरम के स्तर पर आराम महसूस करती है।  लापरवाह हवा उनकी भावनाओं को नहीं समझती है।  कबूतरी (लड़की) के खुले बालों को हवा बार-बार उड़ा रही है और फैला रही है।  वे एक-दूसरे को लगातार ऐसे देख रहे हैं कि कोई भी परेशानी बहुत कम लगती है। वे (परेशानियां ) बार बार उन्हें छूने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे अक्सर जल जा रहे हैं क्योंकि युगल गर्मजोशी से प्यार के कवच से घिरे हुए हैं ।  लड़की की उंगलियों (जो सर्द हवा के कारण ठंडी है) लड़के के कई बालों के बीच से बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है।  लड़का बहुत शांति (आराम) महसूस कर रहा है।  वे प्यार में इस तरह खो गए थे कि वे ये भी महसूस नहीं कर पाते रहे थे सूरज अपनी गर्म किरणों को धीरे धीरे उनसे छिन रहा था।
 ..... पिक्चर बनी?
 यहां कोई भी कलाकार जो मुझे इन शब्दों को शिल्प के रूप में चित्रित करने में मदद कर सकता है?

Thursday, November 14, 2019

काग़ज़ की कलम से


कोरा काग़ज़ था!
लिखने वाले ने  लिखना चाहा...
हुआ ये कि उसे शब्द ना मिला।
काग़ज़ बोला - बेटा किसकी खोज में है .. अरे गिरा दे स्याही को जहां तहां , फिर सोचने के लिए पूरा पन्ना तुम्हारे सामने होगा। बस ध्यान ये रहे की स्याही पन्ने से बाहर न गिरे क्योंकि फिर सोचने की तनख्वाह बदल जाएगी। क्योंकि नीचे बेडशीट था।
लिखने बाला थोड़ा सनकी था उसने काग़ज़ की बात मान ली, उसने कलम तोड़ी और इंक उड़ेल दिया। हुआ ये कि पन्ने पर इंक का फव्वारा जैसा एक धब्बा सा लग गया।                                            लिखने बाला फिर से सोच में पड़ गया...
काग़ज़ फिर बोला-  किसकी खोज में हैं जनाब... अरे डूबा दे किसी पानी से भरे बर्तन में, फिर सोचने के लिए पूरा बर्तन भर पानी तेरे सामने होगा। बस ध्यान रहे  पीने योग्य पानी में मत डालना नहीं तो तनख्वाह बदल जाएगी ।
लिखने वाले ने ये भी आजमाया।
उसने इंक से रंगे काग़ज़ को एक पानी से भरे बाल्टी में डुबो दिया (शायद वो नाले में फेंकने के लिए रखा था)।
बाल्टी भर पानी रंगीन हो गया और वो काग़ज़ गल के फट गया।
लेकिन लिखने बाला अभी भी सोच में था कि आखिर ये काग़ज़ कहना क्या चाह रहा था। उसने ये बात अपने दोस्तों को सुनाया कुछ ध्यान से सुने,कुछ सुनकर हंसे और कुछ लोगों ने तो सुनना ही टाईम की बर्बादी समझा। अंततः उसे उत्तर उनमे से किसी दोस्त से नहीं मिला।
लिखने वाले ने फिर से सोचने की कोशिस की..... बहुत सोचने पर उसने पाया कि  --
पहली दफा काग़ज़ का कहना ये था कि अपने अस्त्रों को फैला कर के उनकी उपयोगिता तराशने की कोशिश करो, बस ध्यान ये रखना की उतने दूर में ही बिखेरना जितनी दूर में तुम्हारी निगाहें उसे आसानी से देख सकें नहीं तो फिर उपयोग करने के बजाय तुम उसे ही ढूंढते रह जाओगे, यानी तनख्वाह बदल जाएगी,
और दूसरी बार जब काग़ज़ ने देखा कि लिखने बाला अब भी सोच में है तो समझाया कि अपने अस्त्रों को दूसरी नजरिए से  देखिये, यानी पानी में भिगोने को कहा, बस ध्यान ये रहे की आप अभी अपने अस्त्र तराश रहे हैं इसलिए तराशे हुए चीजों को नष्ट करके ना तराशे, यथार्थ पीने योग्य पानी में ना डुबोयें।
..... लिखने बाला अज्ञानी अभी तक इसी उलझन में है कि उस काग़ज़ के सजीवता को सर्वोपरि समझे जो कि अपनी जान देकर ज्ञान दे गया या उसके दिए गए ज्ञान को सर्वोत्तम समझे जिसके लिए उसके दाता की जान चली गई।

Monday, September 23, 2019

Importance of expired newspapers


Newspaper is a combination of two words 'news and paper'. It's mean some pieces of paper which carry news. But in India not enough to add news with paper to make newspaper because here it fulfills so different needs. Whenever the word 'importance' is popped up in my mind a quote of Dr. Kalam is always touched the mind that even a stop watch shows right time twice a day. When a newspaper is thrown at the door, every awaken person pounces on it. Everybody has ardour for reading the newspaper in the morning. As a result of moving here and there during the day the newspaper becomes crumbled like a palm after an examination. And lastly the paper is put on that corner of the Almirah where similar newspapers are waiting for the new one. The worst paper feels novelty and it images youth at that time. And that newspaper also starts waiting for the new friend. But they don't know that when they will be pulled for use or sell. Because they are pulled by a teacher for rubbing the board in the absence of duster,pulled by a priest for distributing 'naivedya', pulled by a trembling man due to Chilly wind for burning the cold,pulled by a bus driver for rubbing the front mirror and the foremost use of newspapers in our India is rolling(packing) the bread....and etcetera whatever you can... 
Therefore In our country newspaper is not only a piece of paper which carries news but it is also used for different works as I described. The most important behaviour of the newspaper that I like most is it never loose it's impression even on burning,and as we know that it is eco-friendly too...
Motive squeezed from this frivolous blog is - increase your importance widely and frequently but never loose your impression in any worsen-worse situation. 
समाचार पत्र दो शब्दों 'समाचार और पत्र' का संयोजन है। इसका मतलब है कि कागज के कुछ ऐसे टुकड़े जो समाचार को ढोते हैं। लेकिन भारत के समाचार पत्र सिर्फ समाचार को ही नहीं ढोते यहां यह विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करता है। जब भी मेरे दिमाग में 'महत्व' शब्द आता है तो डॉo कलाम की एक बात हमेशा दिमाग को छू जाती है कि एक स्टॉप वॉच भी दिन में दो बार सही समय दिखाती है। सुबह - सुबह जब अखबार दरवाजे पर फेंका जाता है, तो हर जागृत व्यक्ति उस पर झपटता है । सुबह अखबार पढ़ने की जिज्ञासा हरेक सदस्य को होती है। दिनभर यहां-वहां घूमने के परिणामस्वरूप अख़बार की हालत भी वैसी ही हो जाती है जैसे कि 3 घंटे की एक परीक्षा के बाद हथेली की । और अंत में उस अखबार को अलमीरा के उस निश्चित कोने में रख दिया जाता है जहाँ इसी तरह के और भी समाचार पत्र नए की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं।जब उस पेपर को उस कोने में रखा जाता है तो वो फटा-चिटा अखबार भी नवीनता महसूस करता है।और ये नया अखबार भी औरों की तरह नए दोस्त का इंतजार करने लगता है। लेकिन वे नहीं जानते कि कब वे उपयोग या बिक्री के लिए निकाल लिए जाएंगे। वे एक शिक्षक के द्वारा डस्टर की अनुपस्थिति में बोर्ड को रगड़ने के लिए खींचे जाते हैं, एक पुजारी द्वारा 'नैवेद्य' बांटने के लिए, ठंडी हवा से कांपते व्यक्ति के द्वारा आग जलाने के लिए, एक बस ड्राइवर द्वारा सामने वाले शीशे को साफ करने लिये और हमारे भारत में समाचार पत्रों का सबसे अधिक उपयोग रोटी लपेटने ( पैकिंग करने )के लिए खिंच लिया जाता है .... और जो भी आप कर सकते हैं ...
  इसलिए हमारे देश में समाचार पत्र केवल कागज का एक ऐसा टुकड़ा नहीं है जो सिर्फ समाचारों को ले ढोता है बल्कि इसका उपयोग विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए भी किया जाता है। अखबार का सबसे महत्वपूर्ण व्यवहार जो मुझे पसंद है वह यह है कि यह कभी भी अपनी पहचान नहीं खोता है यहां तक कि जलने पर भी प्रभावित नहीं होता है, और जैसा कि हम जानते हैं कि यह पर्यावरण के अनुकूल भी है।
  Motive - आप अपने महत्व को हर क्षेत्र में बढ़ाएं लेकिन किसी भी स्थिति में अपनी पहचान को न 
छोडें। 

शनिवार: अंक ७

  आतिश का नारा और धार्मिक कट्टरता से परे जब हम किसी धर्म के उसके विज्ञान की चेतना से खुद को जोड़ते हैं तो हमारा जीवन एक ऐसी कला का रुप लेता ...