Newspaper is a combination of two words 'news and paper'. It's mean some pieces of paper which carry news. But in India not enough to add news with paper to make newspaper because here it fulfills so different needs. Whenever the word 'importance' is popped up in my mind a quote of Dr. Kalam is always touched the mind that even a stop watch shows right time twice a day. When a newspaper is thrown at the door, every awaken person pounces on it. Everybody has ardour for reading the newspaper in the morning. As a result of moving here and there during the day the newspaper becomes crumbled like a palm after an examination. And lastly the paper is put on that corner of the Almirah where similar newspapers are waiting for the new one. The worst paper feels novelty and it images youth at that time. And that newspaper also starts waiting for the new friend. But they don't know that when they will be pulled for use or sell. Because they are pulled by a teacher for rubbing the board in the absence of duster,pulled by a priest for distributing 'naivedya', pulled by a trembling man due to Chilly wind for burning the cold,pulled by a bus driver for rubbing the front mirror and the foremost use of newspapers in our India is rolling(packing) the bread....and etcetera whatever you can...
Therefore In our country newspaper is not only a piece of paper which carries news but it is also used for different works as I described. The most important behaviour of the newspaper that I like most is it never loose it's impression even on burning,and as we know that it is eco-friendly too...Motive squeezed from this frivolous blog is - increase your importance widely and frequently but never loose your impression in any worsen-worse situation.
समाचार पत्र दो शब्दों 'समाचार और पत्र' का संयोजन है। इसका मतलब है कि कागज के कुछ ऐसे टुकड़े जो समाचार को ढोते हैं। लेकिन भारत के समाचार पत्र सिर्फ समाचार को ही नहीं ढोते यहां यह विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करता है। जब भी मेरे दिमाग में 'महत्व' शब्द आता है तो डॉo कलाम की एक बात हमेशा दिमाग को छू जाती है कि एक स्टॉप वॉच भी दिन में दो बार सही समय दिखाती है। सुबह - सुबह जब अखबार दरवाजे पर फेंका जाता है, तो हर जागृत व्यक्ति उस पर झपटता है । सुबह अखबार पढ़ने की जिज्ञासा हरेक सदस्य को होती है। दिनभर यहां-वहां घूमने के परिणामस्वरूप अख़बार की हालत भी वैसी ही हो जाती है जैसे कि 3 घंटे की एक परीक्षा के बाद हथेली की । और अंत में उस अखबार को अलमीरा के उस निश्चित कोने में रख दिया जाता है जहाँ इसी तरह के और भी समाचार पत्र नए की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं।जब उस पेपर को उस कोने में रखा जाता है तो वो फटा-चिटा अखबार भी नवीनता महसूस करता है।और ये नया अखबार भी औरों की तरह नए दोस्त का इंतजार करने लगता है। लेकिन वे नहीं जानते कि कब वे उपयोग या बिक्री के लिए निकाल लिए जाएंगे। वे एक शिक्षक के द्वारा डस्टर की अनुपस्थिति में बोर्ड को रगड़ने के लिए खींचे जाते हैं, एक पुजारी द्वारा 'नैवेद्य' बांटने के लिए, ठंडी हवा से कांपते व्यक्ति के द्वारा आग जलाने के लिए, एक बस ड्राइवर द्वारा सामने वाले शीशे को साफ करने लिये और हमारे भारत में समाचार पत्रों का सबसे अधिक उपयोग रोटी लपेटने ( पैकिंग करने )के लिए खिंच लिया जाता है .... और जो भी आप कर सकते हैं ...
इसलिए हमारे देश में समाचार पत्र केवल कागज का एक ऐसा टुकड़ा नहीं है जो सिर्फ समाचारों को ले ढोता है बल्कि इसका उपयोग विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए भी किया जाता है। अखबार का सबसे महत्वपूर्ण व्यवहार जो मुझे पसंद है वह यह है कि यह कभी भी अपनी पहचान नहीं खोता है यहां तक कि जलने पर भी प्रभावित नहीं होता है, और जैसा कि हम जानते हैं कि यह पर्यावरण के अनुकूल भी है।
Motive - आप अपने महत्व को हर क्षेत्र में बढ़ाएं लेकिन किसी भी स्थिति में अपनी पहचान को न
छोडें।
Adorable thought
ReplyDeleteधन्यवाद
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