Saturday, September 19, 2020

चुनाव : प्रचार - प्रसार

 



नए प्रत्याशी जनता को अपनी शक्ल और चिह्न दिखाएं तो थोड़ा समझ आता है, लेकिन वो प्रत्याशी जिन्हें जनता वर्षों से देख रही हैं या देख चुकी हैं, ये मज़ाक लगता है। किसी भले मानुष की आवाज है कि "काम बोलता है" , तो वो बोली प्रचार के लिए कम पड़ गया है क्या जो आपको ऐम्पलीफाइ करना पड़ रहा है? खैर हमनी के का पता हम बुडवक जो हैं।

जब कनिष्ठ कक्षाओं में हुआ करते थे न तो 5-7 महानुभाव चिलचिलाती धूप में नंगे पांव बाहर निकल आते थे इनकी लाउडस्पीकर को सुनकर पता है क्यों, ये पर्ची बांटते थे। पर्ची में अभ्यर्थी का नाम, हांथ जोड़ के खिंचवाया हुआ फोटो, चुनाव चिह्न और नंबर इतना पढ़ करते पैंट के पॉकेट में डाल लेते थे। दूसरी बार जब पर्ची को पढ़ते थे एक लंबी लिस्ट होती थी जिन्हें हमलोग वादे बोलते हैं  और अंत में पढ़ते थे 12500 प्रतियां, 17000 प्रतियां जो कि हरेक प्रति सबसे नीचे होती थी । उस वक्त बस ये सोंचते थे कि अभी पर्ची बांटा जा रहा है, फलाना तारीख को  स्कूल में चुनाव होगा , और हमलोगों की छुट्टी होगी। ना तो उसकी परवाह होती थी कि लिस्ट में क्या हैं और ना ही इसकी की ये लिस्ट ही क्यों हैं?
मनोरंजन तो बच्चों को हर चीज़ में मिल जाता है इसमे भी मिलता था, किसके पास सबसे ज्यादा प्रति है?
आज ये सोचते हैं कि वो हज़ारों प्रतियां उसी तरह से बच्चों को मनोरंजन के लिए बांट दिया करते थे,  खैर एक पल के लिए मान लेते हैं कि प्रतियां मनोरंजन हों कोई बात नहीं लेकिन वो नेता, उनके जोड़े हुए हांथ, इत्यादि सब के सब क्या मनोरंजन ही थे?
जितने वाले तो भूल जाते होंगे कि प्रिंटिंग प्रेस वालों की कितना रुपैया दिए थे, लेकिन हारने वाले को जरूर याद होगा कि ये वास्तव में मनोरंजन पर किया गया व्यय था?
उसकी तो बात ही छोड़िए की क्या होना चाहिए नहीं होना चाहिए जब हम  विधायक बनेंगे तब पूछ लीजियेगा 😁😁। मज़ाक कर रहे थे 😂
  आज वो सिहरी हुई पांव बूथ तक को जाने को तैयार  हैं, लिस्ट आज भी हैँ, क्या बोले नए वाले!!! अरे पन्ने नए हुए हैं वो तो अब भी वही हैं।
लेकिन आज ये उंगली प्रतियाँ जमा करके मनोरंजन नहीं करनेवाली  हैं। ये घिस गए हैं वादे वाले पन्ने गिन गिन के। घिसने से चमक आ गयी है, अरे दिमाग मे भई ।




Tuesday, June 23, 2020

Ploughman

Beetles noise when at night 
ploughman takes the posture right
He beholds the next day's plannings
Eyelids compel for present living
While he found in the slumber
Thy thalamus ships him to the tractor
Turns posture of sleeping body
Other wall of spacious lobby
He is now on his plane
Aviating above towering cane
Clucking gave signal to wake
Sleepless ploughman just at four awake
He is now in the fallow land
For the ploughing as he planned
Sharpen voice of little birdie
Pleasant breezes thrill him early
Sun is feverish to appear
 nimbostratus blankets over & over
Hydrated soil is easy for traction
Peasant is to finish operation
Pearly Droplets surprised a little
He is gifted in a riddle
Daystar hidden cent percent
Water is coming very constant
He amended in today's planning
Next step will be the leveling


Just after a sound he heard
Ding - dong of the anklets appeared
Yes, she was his cute Shrimati
For the lunch he carried basmati
After having he changed hardware
Trolly hook to ground leveler
Finished the work returned near three
Took a bath and sip of tea
In the evening leaves his den
To asking for the ladies and men
This night when comes to cart
He was happy in his heart
O! Dear reader did you sense
It was raining cats and dogs
You must have read and may get bore 
that paddy crops need water more
Became more happy than the past
Standing in the field assuming forecast
As far as his lens can capture
 nothing else but theme of silver 

Just after he comes to take 
He has left spade by mistake 
He sends labours to his field 
Himself goes to repair the field 
Mens are sent to draw the seedlings 
Ladies are for planting them 
In a week disposed his doings 
Sleepless man takes sleeping deep



Tuesday, May 19, 2020

Books are rum

बड़े प्यारे लगते हैं पन्ने अगर किताब अनदेखे मिल जाएं
बड़े मुश्किल होते हैं  नाटक अगर वो समझ ना आएं

ख्याल ये होता है कि  पूरे रसगुल्ले मुँह में हों
ये पुस्तक गन्ने होते हैं साहब चूसने का भी धैर्य होने चाहिए 

ये फुल स्टॉप भोले होते हैं पथिक को रोकते रहते हैं
मुसाफिर जितना थकता है थकावट कमती जाती हैं 

संदेह नहीं कि बड़े निष्ठुर होते हैं ये गन्ने दाँतों से चैलेंज करते हैं
अब क्या बताएं आपको दाँतों को लड़ना भी यही सीखाते हैं

हसरत ऐ दिल तो यूँ होता है कि किताबें याद हों जाएं
गन्ने से द्रव्य निकलता है साहब रवा बड़े कम बनते हैं 

पुस्तकें द्रव्य देती हैं आप घड़ा बढ़ा लें अपनी
रवा तो तपने से ही बनेंगे आग बढ़ा लें अपनी 

विचलित ना हो मन समय का महत्व सोच सोच के
वक्त मीठे होते नहीं हैं रस में डूबा कर बनाने होते हैं 


किताबों के रस के भी अपने मिठास होते हैं
आप जितना पियोगे वो बढ़ते ही रहते हैं







Saturday, April 25, 2020

Commas of the life

Ofcourse count your problems, 
Not for expressing before someone else. 
Ofcourse release your teardrops, 
Not for soaking someone else. 
Ofcourse fracture your pen, 
Not only after giving death penalty. 
Ofcourse scold whom you want, 
Not in presence of the third one. 
Ofcourse tease whom you love, 
Lesser in the crowd than in  together. 
Ofcourse respect who really deserves, 
Doesn't matter when and where. 
Ofcourse remember your lord, 
Not only when you are troubled
Ofcourse help who really needs, 
But teach him first how to handle. 
Ofcourse enjoy what you have, 
But not before one who hasn't. 
Ofcourse study in your classroom, 
But try to teach yourselves everywhere. 
Ofcourse get scared before one, 
But always more by yourselves than one. 
Ofcourse forgive whom has mistaken, 
But always keep his mistakes in mind. 
Ofcourse ignore one's cheekiness, 
But make the limit very short. 
Ofcourse reply same for all the same questions,  
But consecutively change the emotions for comfort. 
Ofcourse respect the things related to you, 
But  also keep the listener's belongings in your mind. 
Ofcourse follow your tradition, 
But don't consider that it's only the righteousness. 
Ofcourse learn other fonts a lot, 
But never lose your indegenous
Ofcourse bear up with thousands of difficulties, 
But not with a single disrespect. 
Ofcourse be 'good' dear reader, 
But never try to prove your listener. 
Ofcourse be a good thinker, 
But don't let your brain that that's sufficient. 
Ofcourse learn any languages, 
But not to scare but for ease. 
Ofcourse orient the youth towards the parenthood, 
But never consider that that's the completest
Ofcourse enumerate all the shortages, 
Remember also that they're are too resources
Ofcourse share the failures courageously, 
Need not to share your success. 
Ofcourse stay in your relationship, 
But your affection is major than the affectionate. 
Ofcourse get moisturized by other's numbers, 
But always sink in your own waters. 

Thursday, April 23, 2020

रिसोर्स : जिंदा भी तेरा, राख भी तेरा

इज्जत से इस्तेमाल करोगे तो इज्जत बचा पाओगे,
लूटोगे तो एक दिन खुद को भी दांव पे लगा दोगे।
मुझे क्या है बे आज भी तेरा हूं कल भी रहूँगा,
तू सोच ले क्या आज लूटोगे  क्या बचा के रखोगे।
मूक हूँ तो क्या हुआ बे मेरी जिंदगी खुद का नहीं है,
अबे जिंदा तो जिंदा, राख भी होकर ये जिंदगी तुम्हारी ही है।
बेटा ये कविताएँ लिख पढ़  के कुछ नहीं होगा,
यूँ त्रुटियाँ गिनने से रत्तीभर फर्क़ नहीं पड़ेगा।
अगर कर सको तो ठीक नहीं तो हथोड़े कौन पीटेगा,
तू नहीं सोचा तो ये बारात  तो खाक भी चाट जाएगा।
भाई उतावला ना हो बस बर्बाद करता हुआ ना देख,
हथोड़ा नहीं बाबु हाथ पीट और प्रणाम करके देख।
बस बेइज्जती के हकदार को सीधा इज्जत देके देख,
आंसू कम पड़ जाएंगे उनको पानी देके देख।

Wednesday, April 22, 2020

निद्रालोप

नजरे बेचैन होती हैं
शिकायत दिल से करती हैं
दिल कसमें गिनता है
ये नजरें भींग जाती हैं
आंसू गिरते हैं उनसे
ये दिल को भी भींगाते हैं
ये दिल फिर भी धड़कता है
चाहत उनकी करता है
अचानक बीच उनकी 
ये दिमाग है आ जाता 
ये दोनों को एक एक करके 
बेवकूफ है कहता 
वो दोनों करते हैं ऐसे 
की जैसे बच्चे हों माँ के 
ये मष्तिष्क बाज ना आता है 
जोरों का थप्पड़ जड़ता है 
नजरें घूरती हैं दिल को 
ये दिल भी घूरता है उसको 
फिर दिमाग भी उनको, अपनी करुणा दिखाता है 
दोनों को एक ही साथ अपनी बाहों में भरता है 
फिर तीनों के लफ्जों से 
ये सुर एक साथ निकलता है 
की जिंदगी हैं मिली हमको 
तो इसको जाया ना करना है 
कीचड़ को भी भर-भरके
मटमैली काग़ज़ों पर ही 
 अपना भाग्य है लिखना 
अपना भाग्य है लिखना 


Tuesday, April 21, 2020

पिकनिक_एक_कहानी


ये उस दौर की बात है जब मुझे और मेरे महानुभावों को पिकनिक का मतलब बस ये पता था कि घर से बाहर बिना माताओं की मदद के भोजन पकाना। जब बनाने गए तो ज्ञात हुआ की सिर्फ एक वक्त का भोजन जुटाने में क्या - क्या मशक्कत करनी पड़ती है, क्या-क्या सोचना पड़ता और कौन - कौन से किरदार निभाने पड़ते हैं। 
उन दिनों हमारी समझ इन बातों को observe करने की नहीं थी, हमलोग बस एक पल में पूरे तन - मन से खुशियां बटोरने में व्यस्त हो जाया करते थे। हमारे ग्रुप में कूल 6 महाशय थे - Sonu(1),Raushann औरPiyush ये तीनों दो क्लास सीनियर थे। Sonu(2),Surya और मैं (Kumãr) classmate और कुछ juniors (Alok, Rakesh, Tuntun, Rishav, #ranjan....) ।
Accurate याद नहीं है कि किसका आइडिया था पिकनिक का। एक ही दिन में सारे दोस्तों के साथ मीटिंग हुई और agreement पास हो गया। पिकनिक की तिथि थी 1st जनवरी। वर्ष याद नहीं है। कुछ दिन दिसम्बर के बीतते हीं ये agreement हुआ था। ना जाने कितने रूपये और चावल जमा हुए थे क्योंकि ये किरदार seniors का था। हाँ ये अलग बात थी कि हम सब खुद को एक ही उम्र के मानते थे किंतु वास्तविकता यही थी कि वो तीनों गाँव से 2km दूर मार्केट के मिडल स्कूल में पढ़ते थे और हम सब गाँव के मिडल स्कूल में। चूंकि वो दो क्लास सीनियर थे उनकी समझ हमसे थोड़ी अधिक थी।
जैसे तैसे प्लानिंग करते हुए 31st दिसम्बर आ गया । 
डिश था "aaloodam bhat" 
लिस्ट लिखा गया जोकि की actually सबको मौखिक याद हो गया था प्रतिदिन के डिस्कशन से।
                     आलू - ढाई किलो
                     प्याज - एक किलो
                     फूलगोभी-1pcs.
                      मटर - 1 किलो...
 कुछ छोटे सामाग्री जैसे नमक, हल्दी, मसाला, तेल, दुध ये सब सबके घर से उपलब्ध होना था। 
दोपहर के बाद दो साईकिल निकली और शाम होने से पहले सारा समान आ गया। रात्री में सब अपने-अपने घर चले गए और सुबह होने का बेसब्री से इंतजार किया जाने लगा। उस वक्त हमलोगों के पास ना तो एक वित्ता का फोन था और ना ही facebook या WhatsApp का कोई ग्रुप, नहीं तो ना जाने रात भर में कितनी बार पिकनिक मनाई जा चुकी होती।       
                         सुबह बिस्तर पर ही थे तो घर में कुछ शोरगुल सुनाई दिया, मम्मी का आवाज स्पष्ट सुनाई दे रहा था कि "पवन के बुखार है बुआ तोहनी जा .. जाके बनाबऽऽ, बनला के बाद ओरा बोला लियऽऽ हू। " जैसे ही मैं ये शोरगुल सुना छटपटाते हुए रूम से बाहर निकला और बरामदे में जाकर खड़ा हुआ ,एहसास हुआ कि काफी तेज बुखार था । लेकिन मन में तो किसी और चीज़ का बुखार चढ़ा हुआ था। कुछ देर के नोंक-झोंक के बाद घरवालों को ये समझ आ गया कि अगर ये नहीं जाएगा तो इसका बुखार और बढ़ जाएगा 😂 और अंततः permission मिल गया।
                       उत्सुकता कुछ यूँ समंदर में गोते लगा रही थी कि हैप्पी न्यू ईयर भी किसी ने किसी को wish नहीं किया। इसे कहते हैं मोमेंट को हैप्पी बनाते वक्त इंसान भूल जाता है कि उसे कैसे हैप्पी बनाना है। यानी जब जब आप किसी चीज़ में 100 पर्सेंट खो जाते हैं तो उस वक्त आपको ये ध्यान नहीं रहता की आप ये काम खुश होने के लिए कर रहे हैं वो अपने आप अच्छा और खुशी का मोमेंट बन जाता है।
      तभी मैंने देखा कि तीन लोग एक- एक बोरियां थामे खड़े हैं, एक में खरीदी गयी सामाग्री थे , दूसरे में चावल व घर से उपलब्ध किए गए कुछ समान और तीसरे बोरी में गोइठा, खोहिया आदि था। मेरे घर से मम्मी सकुचाते हुए कुकर दी और थोड़ा सा किरासन तेल ताकि आग जलाने में मदद मिलेगा। 
          सबलोग फनेला भीर (जामुन का एक पुकारू पेड़ है,अब तो सूख गया है 😐) जमा हुए, पास के एक खाढ़ (सब्जियों का एक छोटा सा खेत) से कुछ टमाटर चुराए गए। वहाँ से सबलोग योजनानुसार बजरंगबली के मंदिर के समीप संस्कृत विद्यालय पहुचे। पहुचते ही दो लोग ईंट से अस्थायी चूल्हा बनाने में जुट गए और बाकी सब मिलके लकड़ी और पत्ता इत्यादि की खोज में निकले। कुछ देर बाद सब लौटे तो सबके हाथ में थोड़ा - थोड़ा ईंधन था। योजनानुसार सबसे पहले चाय बनाया गया और आसपास बैठे कुछ बुजुर्गों के साथ बैठकर सब चाय पीए। फिर एक - एक करके भोजन भी बना।
आलूदम!!!!... भात!!!!
सब खाने बैठे, और एक दीदी थी जिन्होंने सबको परोसा। खाना कितना स्वादिष्ट बना था इसका तो किसी को ख्याल ही नहीं था क्योंकि सारे इस खुशी में व्यस्त थे कि आखिरकार धुआँ फूंक फूंक के खाना बन ही गया। चूंकि सारे लोगों ने बराबर मेहनत किया था और सबने काफी इंतजार भी किया था, सबको भूख भी लगी थी खाना अपने आप स्वादिष्ट लगने लगा। खाने के बाद किरदार आया बर्तन धोने का। कुछ लोग धोए, कुछ लोग चापाकल चलाए, सारे बर्तन साफ हो गए। लेकिन कुकर बिल्कुल भी साफ नहीं हो रहा था (इस तरह के आग मे पकाने से पहले बर्तनों में मिट्टी का लेबा लगाया जाता है उसमे लगाना छुट गया था 🤣🤣)। सब डरे हुए थे और सबसे ज्यादा मैं। कोई कमेन्ट कर रहा था, कोई निरंतर साफ करने की कोशिश कर रहा था और मेंरे दोनों classmates मेरी ओर से सबको डांट रहे थे। अंत में सोनू (2) ने कुकर उठाया और सब घर की ओर चल पड़े। फनेला भीर से सब अपने अपने घर की ओर लेकिन रौशन, सोनू (2)और मोनू (1) अब भी मेरे साथ घर तक जा रहा था। घर तक तो पहुंचा दिया कुकर लेकिन अंदर जाने का किसी को हिम्मत नहीं गेट पर रख कर ही तीनों भाग गए। अब वास्तविक culprit थे हम कुकर हाथ में था। सोचा तो था कि ढेरों उपलब्धियों मिलेंगी आज लेकिन दादा का एंट्री होता है एक दम सही समय पर
Mummy : एहि से हम कुकरवा देबे ला न चाह रेली हल
Dada : का होतय बाल बुतरू सब कैसे कैसे पकैलके ह थोड़ा गंदे हो गेलय त ओरा ला का दिक्कत है
Mummy :अपने के कुछ बुझा है हमरा न साफ करे पड़ऽऽ है
Dada : तू रहे दीहऽऽ हम दुन्नू बाबा पोता धो देंगे, का बेटा।


Thursday, March 5, 2020

सोशल मीडिया : एक सोंच



सोशल मीडिया आज के दौर में हरेक इंसान का लंगोट बन चुका है। आप चाह कर भी नहीं चौंक सकते मेरे इस वाक्य से क्योंकि वास्तव में ये (सोशल मीडिया )हमारी अधिकतर जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्तरदायी बन चुका है। विश्लेषण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वो आप बेहतर जानते होंगें। हां, ये शत प्रतिशत सत्य है कि आज हम किसी भी वर्ल्ड वाइड न्यूज से सबसे पहले अवगत हो जाते हैं। ये भी सत्य है कि हम अपने विभिन्न रुकावटों को हटाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं - वो चाहे स्टडी रूम हो,किचन रूम हो, गेस्ट रूम हो, बाथरूम हो, बेडरूम हो, पूजा रूम हो, मनोरंजन रूम हो और ना जाने कौन कौन से रूम यानी सारे रूम के उपभोग करने वाला व्यक्ति इस चिड़िया (सोशल मीडिया) को जी भरकर उपयोग करते हैं।
बहुत सारी मुश्किलों को दूर करने में , नए लोगों से जुड़ने में, लोगों की पंखों को उड़ान देने में सोशल मीडिया काफी लाभप्रद देखी जा सकती है।
अब मैं आपसे कुछ ऐसी बातेँ साझा करने जा रहा हूं जो हर युवा की सोच होनी चाहिए लेकिन ऐसा जान पड़ता है कि बहुत कम लोगों इसपर सोचते हैं -
बढ़ती व्यस्तताओं और आवश्यकताओं के कारण हमारे देश के युवा अपने तीसरे नेत्र का उपयोग ना के बराबर कर रहे हैं
सोशल मीडिया का हरेक स्तंभ इस तरह से मजबूत नहीं प्रतीत होता है जैसा होना चाहिए। इस पर भारी मात्रा में अश्लीलता और झूठे (जाली) समाचारों को परोसा जा रहा है। आज हमारे देश का हरेक युवा साथी हर 5 मिनट किसी न किसी प्रकार से सोशल मीडिया के संपर्क में आ रहे हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है। आप खुद आकलन कर सकते हैं। बस आप 10 मिनट के लिए बारी-बारी से सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को खोलिए और नोट कीजिए कि आपने वहां क्या देखा। आप खुद कहेंगे कि हम क्या देख रहे हैं। क्या यह एक बड़ा प्रश्न नहीं है कि आप हर 5 मिनट में क्या देख रहे?
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप में से बहुत कम लोग ही निर्देश को जो ऊपर दिए गए हैं उसका अनुसरण करेंगे।
इसलिए ध्यानपूर्वक पढ़ें- मुझे ऐसा लगता है कि आज के दौर में सोशल मीडिया पर या तो लोग अपने आपको अच्छा दिखा कर अपनी पहचान बनाने में व्यस्त हैं। या तो वो चंद रुपए कमाने के उद्देश्य से अपने व्यापार आदि को बढ़ावा देने के लिए प्रचार-प्रसार करने में व्यस्त हैं।
लोगों को लगता है कि वह खुद को दिखाएंगे या अपनी चीजों का प्रसार करेंगे तो जनता उन्हें जानेगी। क्या बस इतने तक में सीमित होनी चाहिए उनकी सोच? अरे यह भी सोचें कि जनता आपको जान कर क्या करेगी? क्या जनता की जरूरत सिर्फ आपको जानना है?
अजीब कंपटीशन देखा जाता है आज हमारे युवा साथियों के बीच में, तुम्हारा कितना लाइक है, मेरा तो इतना है? जबकि सच्चाई तो यह है कि like , dislike देखना या देखकर खुश या दुखी होना मूर्खता है। आप खुद को कितना लाइक करते हैं और कितना dislike करते हैं ये बड़ा प्रश्न है?
हालांकि ये प्रश्न इतना मुश्किल नहीं है किंतु आसान भी नहीं है।
सच्चाई तो यह है कि जनता का तवा इतना बड़ा और सस्ता है कि जो चाहे अपनी रोटियां सेक लेता है। जरा सा कोई ये नहीं सोचता कि जिस आग से तवा गर्म हो रही है वह बहुत मेहनत से उपलब्ध हो सकी है।
मैं उन तमाम लघु एडवरटाइजर को यह प्रश्न करना चाहता हूं कि क्या आपका व्यापार जिसके लिए आपको अश्लील प्रचार करना पड़ रहा है वह समाज के अंकुर जैसे नन्हे बच्चों के मानसिकताओं से बढ़कर है? क्या वह व्यापारी यह नहीं जानते कि बच्चे सबसे ज्यादा सीखते हैं कोई भी चीज को? क्या वो व्यापारी ये नहीं जानते कि आपकी आगामी तिथियाँ बच्चों की सोच पर निर्भर करती है जिसे आप अपने व्यापार के साथ समझौता कर रहे हैं?
मैं कदापि नहीं कह सकता कि सारे लोग जो सोशल मीडिया से कनेक्टेड हैं वो सारे एक ही जैसे हैं, यह मेरी मूर्खता समझी जाएगी क्योंकि ऐसा नहीं है। मैं सोशल मीडिया पर बहुत सारे ऐसे सक्रिय तत्वों से भी रूबरू हुआ हूं जो काफी सकारात्मक हैं जिनकी सोच और सार्थकता हमारे युवा और अंकुर दोनों के लिए काफी लाभप्रद है।
अगर आपने इतना पढ़ लिया होगा तो यह सवाल जरूर उत्पन्न हुआ होगा आपके मन में कि इसका निदान क्या हो सकता है? उपाय इतना कठिन भी नहीं है किंतु आसान भी नहीं है। आप किसी को यह कह कर नहीं रोक सकते हैं कि बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो, बुरा मत सोचो, इत्यादि क्योंकि ऐसा बोलने पर सबसे पहले तो उस इंसान की जिज्ञासा और बढ़ जाएगी की कोई चीज़ हमसे छिपाया क्यों जा रहा है या फिर उस काम को करने से हमको मना क्यों किया जा रहा है। और दूसरी बात यह भी है कि हरेक इंसान की डिक्शनरी में अच्छा और बुरा की परिभाषा अलग हो सकती है क्योंकि वह उसके पास्ट में किए गए एक्सपेरिमेंट पर निर्भर करती है।
निदान सिर्फ ये हो सकता है कि आप सोचें कि आप क्या दिखा रहे हैं, इसका क्या-क्या प्रभाव हो सकता है?
निदान सिर्फ ये हो सकता है कि आप खुद से ये प्रश्न करें कि आप क्या देख रहे हैं?

Some parallel thinkers' thoughts 

Sunday, February 9, 2020

Translating a picture


There is an unknown forest. That is the month of February means lasting of winter season.Prince and his pigeon are fighting carelessly a little fight.  The shadows of floras are making the environment romantic with their darkness and coldness. And the hot sunlight is consecutively trying to bright and warm them. Suddenly the princess tweets that I return quickly. After that she sneaks off the prince handing a bow and some arrows. The pigeon points on a guava for plucking it. Here she thinks that she is hidden but the prince has seen her due to tinkling of her anklets. The princess tries thrice for plucking the fruit but consecutively she is defeated by her  missing tries . Prince comes under the tree. He jumps straight and plucks the green guava. But the pigeon doesn't see him and drops the arrow towards the guava that has already broken by the prince. She's again missed the target and the arrow directly shots on the chest of the falling prince (after jumping he is falling down with guava). The prince screams a little and falls down with guava and arrow on his chest. Some tissues of blood spread on the white  kurta. The  spot of blood makes the eyes tearful of the pigeon. But the prince's eyes don't able to look the spot on his chest because they (eyes) are busy in looking the running princess. He is looking her ups and downs, her eyes, her flying hair, her anklets her flying dupatta and so on that can't be described. When the pigeon stands near him, they are gazing and gazing and gazing at each other.
Is the picture relatable with the given picture?


एक अनजान जंगल है।  यह फरवरी का महीना है, जिसका मतलब है जाड़े के मौसम का अंतिम । एक राजकुमार और उसकी राजकुमारी अल्हड़पन के साथ नोंक झोंक कर रहे हैं ।  वनस्पतियों की परछाइयाँ अपने अंधेरे और शीतलता से पर्यावरण को रोमांटिक बना रही हैं।  और गर्म धूप लगातार उन्हें उज्ज्वल और गर्म करने की कोशिश कर रही है।  अचानक राजकुमारी चहकती है कि मैं जल्दी लौटती हूं।  उसके बाद वह एक धनुष और कुछ तीरों के साथ राजकुमार से छिपते हुए भागती है। कन्या एक अमरूद पर निशाना बांधती है। यहाँ वह सोचती है कि वह छिपी हुई है लेकिन राजकुमार उसे पायल की खनखनाहट के कारण देख लेता है।  राजकुमारी फल को तोड़ने के लिए तीन बार कोशिश करती है लेकिन लगातार अपने गलत कोशिस से हार जाती है।  राजकुमार पेड़ के नीचे आता है।  वह सीधे कूदता है और हरे अमरूद को तोड़ता है।  लेकिन राजकुमारी उसे नहीं देखती है और अमरूद की ओर तीर छोड़ देती है जो पहले ही राजकुमार द्वारा तोड़ लिया गया है।  वह फिर से लक्ष्य से चूक गई और तीर सीधे गिरते राजकुमार के सीने पर जा लगा (उछलने के बाद वह अमरूद के साथ नीचे गिर रहा है)।  राजकुमार थोड़ा चीखता है और अमरूद और अपने सीने पर लगे तीर के साथ नीचे गिरता है ।  रक्त के कुछ ऊतक सफेद कुर्ते पर फैलते हैं।  रक्त का धब्बा राजकुमारी के आंखों को अश्रुपूर्ण बनाता है।  लेकिन राजकुमार की आंखें उसकी छाती पर लगी खून को देखने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि वे (आंखें) दौड़ती हुई राजकुमारी को देखने में व्यस्त हैं।  वह उसकी उतार-चढ़ाव देख रहा है, उसकी आँखें, उसके उड़ते हुए बाल, उसके पायल, उसके उड़ते दुपट्टे और भी इसी तरह के चीज़ जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। जब राजकुमारी उसके पास खड़ा होती है, तो वे टकटकी लगाकर देखते हैं, देखते हैं और देखते ही रहते हैं।

 क्या चित्र दिए गए चित्र के साथ संबंधित है?

शनिवार: अंक ८

  दुनिया की कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है: मनमोहन सिंह  यह उद्धरण इस तथ्य को दर्शाता है कि जब कोई विचार समय के अन...