Saturday, June 21, 2025

धूप, धूल और धन्यवाद






 हमने वो गांव देखा है,

गली खलिहान देखा है।

गली की झिटकी से लेकर ,

खुला आसमान देखा है ।

शहर की चकचकी सड़कें ,

हमारा धन्यवाद तुमको।

ये जो रफ्तार दी तूने ,

किसी दिन मैं चुकाऊंगा ।

मैं तुमको गुनगुनाऊंगा।।


हमने वो रात देखा है,

बिन बिजली के तार देखा है।

छुटकी डिबरी से लेकर ,

तड़ित का आग देखा है।

शहर की झिलमिली बिजली,

हमारा धन्यवाद तुमको ।

ये जो रोशनी दी तूने,

किसी दिन मैं चुकाऊंगा ।

मैं तुमको गुनगुनाऊंगा।।


हमने बुखार देखा है,

और बारम्बार देखा है ।

नन्ही फुंसी से लेकर ,

बड़े आघात देखा है ।

शहर के ओ दर अल शिफा,

हमारा धन्यवाद तुमको ।

ये जो संजीवनी दी तूने ,

किसी दिन मैं चुकाऊंगा ।

मैं तुमको ...


हमने वो पाठ देखी है,

खंडहर प्रयोगशालाएं देखी हैं।

शिक्षकों की अल्पता से लेकर ,

बिन उनके मौज देखी है ।

शहर के ओ सुलभ मक़तब,

हमारा धन्यवाद तुमको ।

ये जो विस्तार दी तूने ,

किसी दिन मैं चुकाऊंगा ।

मैं तुमको...


हमने बरसात देखा है ,

कमर तक बाढ़ देखा है ।

सोंधी माटी से लेकर ,

कोस भर सुखाड़ देखा है ।

शहर के ऊंचे निचे तल ,

हमारा धन्यवाद तुमको ।

जो उत्कर्ष दी तूने ,

किसी दिन मैं चुकाऊंगा ।

मैं तुमको ...


हमने वो सूद देखा है ,

पैंचा उधार देखा है ।

दही की बैना से लेकर ,

कर्ज की गाय देखा है ।

शहर के ओ, ईएमआई ,

हमारा धन्यवाद तुमको ।

ये जो सपना संभाला तूने ,

किसी दिन मैं चुकाऊंगा।

मैं तुमको...


हमने तंगहाली देखा है,

फटे बनियान देखा है ।

कलम की किल्लत से लेकर ,

होरी की जान देखा है।

शहर के ओ खुले कारोबार ,

हमारा धन्यवाद तुमको।

ये जो व्यापार दी तूने ,

किसी दिन मैं चुकाऊंगा ।

मैं तुमको गुनगुनाऊंगा



हमने वो जात देखा है ,

उसी की पात देखा है ।

छूत, दुत्कार से लेकर,

भोज का भात देखा है ।

शहर के थोड़ी निष्पक्ष सी दुनिया 

हमारा धन्यवाद तुमको ,

जो पहचान दी तूने।

किसी दिन मैं चुकाऊंगा ,

मैं तुमको गुनगुनाऊंगा ।

मैं तुमको गुनगुनाऊंगा।।




 

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