अब के दशक में सोशल मीडिया हमारा वो प्रदर्शनी बन चुका है जहां पर हम अधिकांशतः अपने उन एस्पेक्ट्स को दिखाते हैं जो हमारे जीवन का सबसे उज्ज्वल होता है, या कुछ मायनों में हम अपने असलियत को छुपाते हुए खुद को खुश इत्यादि दिखाने का प्रयास कर रहे होते हैं।
अब ऐसे में जो दर्शकगण हैं उनपर यह निर्भर करता है कि वो कितना अपने ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल करते हैं और कितना अपने समझ का।
यकीन मानें चाहे कितनी भी खूबसूरत नायिका हों उनकी सौंदर्य को जीवित रखने के लिए चुकाई गई कीमत हम समझ नहीं पाते कुछ क्षण को हमें लगता है कि सिर्फ़ हम ही हैं वो जो परेशानी में हैं और बाकी दुनिया तो हसीन है। क्या आप जानते हैं या ध्यान रख पाते हैं कि बहुत सारी नायिकाएं पता नहीं कितने साल तक तो मनपसंद व्यंजन नहीं खा पाती हैं डाइटिंग के चक्कर में, दर्जनों ऑपरेशन हो सकता है उनके नाक नक्श को ठीक दिखाने के लिए जोकि वास्तव में काफी पीड़ादायक भी होता है। लता मंगेश्कर जी को एक बार पूछा गया कि आप दुबारा जिंदगी चाहते हैं? तो उन्होंने कहा कि जरूर, मगर मैं दुबारा लता मंगेशकर नहीं बनना चाहती क्योंकि लता मंगेशकर की तकलीफें सिर्फ मैं ही जानती हूँ।
जब भी हमें तथाकथित या अपने कसोटी पर किन्हीं सफल लोगों को देखते हैं तो हम पर निर्भर करता है कि हम सिर्फ़ आंख का इस्तेमाल करें या दिमाग का भी, क्योंकि रील देखने की गंदी लत ने हमें सोचने देने का समय खींचlलिया है और ये बढ़ भी रहा है हम इम्पेशेंट होकर सिर्फ़ अपने ज्ञानेंद्रियों पर शिफ्ट होते चले जा रहे हैं और इसी का नतीजा है कि हमें आए दिन यह लगते रहता है कि दुनिया हरी भरी है और हम रेगिस्तान में हैं। यकीन मानिए ऐसा नहीं है। सब अपने अपने जीवन में अपने हिस्से का कीमत चुका कर आगे बढ़ रहे हैं। और उनमें भी जो वास्तविक हैं उनका कुछ ठीक भी पर जो बनावटी हैं उनका तो छोड़ ही दीजिए और विश्वास कीजिए आज के इस सोशल मीडिया प्रदर्शनी में अधिकांश दर्शन बनावटी ही है। ध्यान रखें कि सबसे अधिक मेगा पिक्सल का भी फोटो को झूम करने पर धुंधला या फटा फटा सा दिखता है। Come closer to know well. ज्ञान का प्रकाश ही अंधकार को दूर कर सकता है, जहां अंधकार है वहां दिया जलाएं। आत्म दीपो भवः।
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