पूरब की लाली निकलने से पहले जब आप अधकचि निंद्रा में बिना चप्पल पहने गांव की पुरानी अलंग पर निकल के खुली हवा का आलिंगन कर रहे हों और अचानक भक्क से एक बबूल का कांटा आके तलबे के में लग जाए तो आपका मुँह देखते रह जाएगा। होगा बस ये की आपका 50 किलो का शरीर को दूसरा पैर थाम लेगा और आप बिना 1सेकंड गंवाए उस कांटे से मुक्त होंगे। ठीक से नींद खुल गई और अब अपने चाल में थोड़ा अल्हड़पन आ गया धूल पर चलते चलते कभी कभी शीत से भींगी घास पर चलना बहुत सुखद जान पड़ता था। जब थोड़ा और आगे बढ़े तो कहीं कोसों दूर से एक ध्वनि सुनाई देती है। ये ध्वनि थी 48 घंटे के लिए निरंतर चलती हुई अखंड कीर्तन की जो पास के दो गांव बाद के गांव से आ रही थी। हेडफोन लगा कर मद्धिमतम आवाज में आपने कभी अगर राग मल्हार सुना हो, तो आप इस स्पर्श का अनुभव कर सकेंगे जो कीर्तन से आती जा रही थी।
हरे रामाऽऽ हरे रामाऽऽ ...रामाऽऽरामाऽऽ हरेऽहरेऽ... हरे कृष्णा हरे कृष्णाऽऽ
कृष्णा कृष्णा हरे हरेऽऽ
सुनते हुए यूं ही चले जाते थे कि पीछे से किसी ने आवाज दिया ऐऽऽ पवन रुक हमहू आ रेलियो हss , पीछे मुड़ा तो देखा दो महानुभाव मेरी ही तरह खाली पैर चले आते थे। रुक गया और पूछा कि और सब आ रेले है, प्रत्युत्तर मिला कि हां। आज एतबार था, तो स्कूल बंद था ओर ट्यूशन वाले मास्टरसाहब बारात गए थे तो साप्ताहिक टेस्ट भी कैंसिल था इसलिए विगत शाम के प्लान के हिसाब से सब क्रिकेट खेलने जा रहे थे। यूं तो मैं उतना अच्छा नहीं था खेलने में पर लोग रख लेते थे ताकि फील्डिंग हो जाए और दिल भी न टूटे अर्थात मंत्रिमंडल में राजमंत्री। अपनी अकुशलता महिमामंडित करना ठीक नहीं हमें क्रिकेट खेलने आना चाहिए था पर पता नहीं क्यों खेलने में रुचि होने के बाद भी हम उतना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाए । ऐसा नहीं की सिर्फ हम,कुछ और भी लोग थे मेरे जैसे। खेलते खेलते कब 11 बज गया भनक भी नहीं लगी किसी को। तो प्रश्न है कि पता कैसे चला कि 11 बज गया। हुआ कुछ यूं कि अचानक से खिलाड़ियों के संख्या से दो लोग अनुपस्थित हो गए सबने नजरे दौड़ाई तो देखा कि सोनू ओर मोनू आरी पर थे घर की ओर जाते हुए। थोड़ी और दूर देखा तो देखा कि लूंगी और गंजी पहने एक बाबा थे जो सोनू मोनू के बाबा थे,अब माजरा यह था कि ये दोनों उनको आते देखे तो घर जाना शुरू कर दिए। हमसब भी अब क्या खेलते, थोड़ा मोह भंग भी हुआ और ये डांट स्पष्ट सुनाई दिया कि 11 बजे तक तोहनी के खाली एही सब करे के हऊ रे, जा ह की न घरबा।
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