Saturday, April 25, 2020

Commas of the life

Ofcourse count your problems, 
Not for expressing before someone else. 
Ofcourse release your teardrops, 
Not for soaking someone else. 
Ofcourse fracture your pen, 
Not only after giving death penalty. 
Ofcourse scold whom you want, 
Not in presence of the third one. 
Ofcourse tease whom you love, 
Lesser in the crowd than in  together. 
Ofcourse respect who really deserves, 
Doesn't matter when and where. 
Ofcourse remember your lord, 
Not only when you are troubled
Ofcourse help who really needs, 
But teach him first how to handle. 
Ofcourse enjoy what you have, 
But not before one who hasn't. 
Ofcourse study in your classroom, 
But try to teach yourselves everywhere. 
Ofcourse get scared before one, 
But always more by yourselves than one. 
Ofcourse forgive whom has mistaken, 
But always keep his mistakes in mind. 
Ofcourse ignore one's cheekiness, 
But make the limit very short. 
Ofcourse reply same for all the same questions,  
But consecutively change the emotions for comfort. 
Ofcourse respect the things related to you, 
But  also keep the listener's belongings in your mind. 
Ofcourse follow your tradition, 
But don't consider that it's only the righteousness. 
Ofcourse learn other fonts a lot, 
But never lose your indegenous
Ofcourse bear up with thousands of difficulties, 
But not with a single disrespect. 
Ofcourse be 'good' dear reader, 
But never try to prove your listener. 
Ofcourse be a good thinker, 
But don't let your brain that that's sufficient. 
Ofcourse learn any languages, 
But not to scare but for ease. 
Ofcourse orient the youth towards the parenthood, 
But never consider that that's the completest
Ofcourse enumerate all the shortages, 
Remember also that they're are too resources
Ofcourse share the failures courageously, 
Need not to share your success. 
Ofcourse stay in your relationship, 
But your affection is major than the affectionate. 
Ofcourse get moisturized by other's numbers, 
But always sink in your own waters. 

Thursday, April 23, 2020

रिसोर्स : जिंदा भी तेरा, राख भी तेरा

इज्जत से इस्तेमाल करोगे तो इज्जत बचा पाओगे,
लूटोगे तो एक दिन खुद को भी दांव पे लगा दोगे।
मुझे क्या है बे आज भी तेरा हूं कल भी रहूँगा,
तू सोच ले क्या आज लूटोगे  क्या बचा के रखोगे।
मूक हूँ तो क्या हुआ बे मेरी जिंदगी खुद का नहीं है,
अबे जिंदा तो जिंदा, राख भी होकर ये जिंदगी तुम्हारी ही है।
बेटा ये कविताएँ लिख पढ़  के कुछ नहीं होगा,
यूँ त्रुटियाँ गिनने से रत्तीभर फर्क़ नहीं पड़ेगा।
अगर कर सको तो ठीक नहीं तो हथोड़े कौन पीटेगा,
तू नहीं सोचा तो ये बारात  तो खाक भी चाट जाएगा।
भाई उतावला ना हो बस बर्बाद करता हुआ ना देख,
हथोड़ा नहीं बाबु हाथ पीट और प्रणाम करके देख।
बस बेइज्जती के हकदार को सीधा इज्जत देके देख,
आंसू कम पड़ जाएंगे उनको पानी देके देख।

Wednesday, April 22, 2020

निद्रालोप

नजरे बेचैन होती हैं
शिकायत दिल से करती हैं
दिल कसमें गिनता है
ये नजरें भींग जाती हैं
आंसू गिरते हैं उनसे
ये दिल को भी भींगाते हैं
ये दिल फिर भी धड़कता है
चाहत उनकी करता है
अचानक बीच उनकी 
ये दिमाग है आ जाता 
ये दोनों को एक एक करके 
बेवकूफ है कहता 
वो दोनों करते हैं ऐसे 
की जैसे बच्चे हों माँ के 
ये मष्तिष्क बाज ना आता है 
जोरों का थप्पड़ जड़ता है 
नजरें घूरती हैं दिल को 
ये दिल भी घूरता है उसको 
फिर दिमाग भी उनको, अपनी करुणा दिखाता है 
दोनों को एक ही साथ अपनी बाहों में भरता है 
फिर तीनों के लफ्जों से 
ये सुर एक साथ निकलता है 
की जिंदगी हैं मिली हमको 
तो इसको जाया ना करना है 
कीचड़ को भी भर-भरके
मटमैली काग़ज़ों पर ही 
 अपना भाग्य है लिखना 
अपना भाग्य है लिखना 


Tuesday, April 21, 2020

पिकनिक_एक_कहानी


ये उस दौर की बात है जब मुझे और मेरे महानुभावों को पिकनिक का मतलब बस ये पता था कि घर से बाहर बिना माताओं की मदद के भोजन पकाना। जब बनाने गए तो ज्ञात हुआ की सिर्फ एक वक्त का भोजन जुटाने में क्या - क्या मशक्कत करनी पड़ती है, क्या-क्या सोचना पड़ता और कौन - कौन से किरदार निभाने पड़ते हैं। 
उन दिनों हमारी समझ इन बातों को observe करने की नहीं थी, हमलोग बस एक पल में पूरे तन - मन से खुशियां बटोरने में व्यस्त हो जाया करते थे। हमारे ग्रुप में कूल 6 महाशय थे - Sonu(1),Raushann औरPiyush ये तीनों दो क्लास सीनियर थे। Sonu(2),Surya और मैं (Kumãr) classmate और कुछ juniors (Alok, Rakesh, Tuntun, Rishav, #ranjan....) ।
Accurate याद नहीं है कि किसका आइडिया था पिकनिक का। एक ही दिन में सारे दोस्तों के साथ मीटिंग हुई और agreement पास हो गया। पिकनिक की तिथि थी 1st जनवरी। वर्ष याद नहीं है। कुछ दिन दिसम्बर के बीतते हीं ये agreement हुआ था। ना जाने कितने रूपये और चावल जमा हुए थे क्योंकि ये किरदार seniors का था। हाँ ये अलग बात थी कि हम सब खुद को एक ही उम्र के मानते थे किंतु वास्तविकता यही थी कि वो तीनों गाँव से 2km दूर मार्केट के मिडल स्कूल में पढ़ते थे और हम सब गाँव के मिडल स्कूल में। चूंकि वो दो क्लास सीनियर थे उनकी समझ हमसे थोड़ी अधिक थी।
जैसे तैसे प्लानिंग करते हुए 31st दिसम्बर आ गया । 
डिश था "aaloodam bhat" 
लिस्ट लिखा गया जोकि की actually सबको मौखिक याद हो गया था प्रतिदिन के डिस्कशन से।
                     आलू - ढाई किलो
                     प्याज - एक किलो
                     फूलगोभी-1pcs.
                      मटर - 1 किलो...
 कुछ छोटे सामाग्री जैसे नमक, हल्दी, मसाला, तेल, दुध ये सब सबके घर से उपलब्ध होना था। 
दोपहर के बाद दो साईकिल निकली और शाम होने से पहले सारा समान आ गया। रात्री में सब अपने-अपने घर चले गए और सुबह होने का बेसब्री से इंतजार किया जाने लगा। उस वक्त हमलोगों के पास ना तो एक वित्ता का फोन था और ना ही facebook या WhatsApp का कोई ग्रुप, नहीं तो ना जाने रात भर में कितनी बार पिकनिक मनाई जा चुकी होती।       
                         सुबह बिस्तर पर ही थे तो घर में कुछ शोरगुल सुनाई दिया, मम्मी का आवाज स्पष्ट सुनाई दे रहा था कि "पवन के बुखार है बुआ तोहनी जा .. जाके बनाबऽऽ, बनला के बाद ओरा बोला लियऽऽ हू। " जैसे ही मैं ये शोरगुल सुना छटपटाते हुए रूम से बाहर निकला और बरामदे में जाकर खड़ा हुआ ,एहसास हुआ कि काफी तेज बुखार था । लेकिन मन में तो किसी और चीज़ का बुखार चढ़ा हुआ था। कुछ देर के नोंक-झोंक के बाद घरवालों को ये समझ आ गया कि अगर ये नहीं जाएगा तो इसका बुखार और बढ़ जाएगा 😂 और अंततः permission मिल गया।
                       उत्सुकता कुछ यूँ समंदर में गोते लगा रही थी कि हैप्पी न्यू ईयर भी किसी ने किसी को wish नहीं किया। इसे कहते हैं मोमेंट को हैप्पी बनाते वक्त इंसान भूल जाता है कि उसे कैसे हैप्पी बनाना है। यानी जब जब आप किसी चीज़ में 100 पर्सेंट खो जाते हैं तो उस वक्त आपको ये ध्यान नहीं रहता की आप ये काम खुश होने के लिए कर रहे हैं वो अपने आप अच्छा और खुशी का मोमेंट बन जाता है।
      तभी मैंने देखा कि तीन लोग एक- एक बोरियां थामे खड़े हैं, एक में खरीदी गयी सामाग्री थे , दूसरे में चावल व घर से उपलब्ध किए गए कुछ समान और तीसरे बोरी में गोइठा, खोहिया आदि था। मेरे घर से मम्मी सकुचाते हुए कुकर दी और थोड़ा सा किरासन तेल ताकि आग जलाने में मदद मिलेगा। 
          सबलोग फनेला भीर (जामुन का एक पुकारू पेड़ है,अब तो सूख गया है 😐) जमा हुए, पास के एक खाढ़ (सब्जियों का एक छोटा सा खेत) से कुछ टमाटर चुराए गए। वहाँ से सबलोग योजनानुसार बजरंगबली के मंदिर के समीप संस्कृत विद्यालय पहुचे। पहुचते ही दो लोग ईंट से अस्थायी चूल्हा बनाने में जुट गए और बाकी सब मिलके लकड़ी और पत्ता इत्यादि की खोज में निकले। कुछ देर बाद सब लौटे तो सबके हाथ में थोड़ा - थोड़ा ईंधन था। योजनानुसार सबसे पहले चाय बनाया गया और आसपास बैठे कुछ बुजुर्गों के साथ बैठकर सब चाय पीए। फिर एक - एक करके भोजन भी बना।
आलूदम!!!!... भात!!!!
सब खाने बैठे, और एक दीदी थी जिन्होंने सबको परोसा। खाना कितना स्वादिष्ट बना था इसका तो किसी को ख्याल ही नहीं था क्योंकि सारे इस खुशी में व्यस्त थे कि आखिरकार धुआँ फूंक फूंक के खाना बन ही गया। चूंकि सारे लोगों ने बराबर मेहनत किया था और सबने काफी इंतजार भी किया था, सबको भूख भी लगी थी खाना अपने आप स्वादिष्ट लगने लगा। खाने के बाद किरदार आया बर्तन धोने का। कुछ लोग धोए, कुछ लोग चापाकल चलाए, सारे बर्तन साफ हो गए। लेकिन कुकर बिल्कुल भी साफ नहीं हो रहा था (इस तरह के आग मे पकाने से पहले बर्तनों में मिट्टी का लेबा लगाया जाता है उसमे लगाना छुट गया था 🤣🤣)। सब डरे हुए थे और सबसे ज्यादा मैं। कोई कमेन्ट कर रहा था, कोई निरंतर साफ करने की कोशिश कर रहा था और मेंरे दोनों classmates मेरी ओर से सबको डांट रहे थे। अंत में सोनू (2) ने कुकर उठाया और सब घर की ओर चल पड़े। फनेला भीर से सब अपने अपने घर की ओर लेकिन रौशन, सोनू (2)और मोनू (1) अब भी मेरे साथ घर तक जा रहा था। घर तक तो पहुंचा दिया कुकर लेकिन अंदर जाने का किसी को हिम्मत नहीं गेट पर रख कर ही तीनों भाग गए। अब वास्तविक culprit थे हम कुकर हाथ में था। सोचा तो था कि ढेरों उपलब्धियों मिलेंगी आज लेकिन दादा का एंट्री होता है एक दम सही समय पर
Mummy : एहि से हम कुकरवा देबे ला न चाह रेली हल
Dada : का होतय बाल बुतरू सब कैसे कैसे पकैलके ह थोड़ा गंदे हो गेलय त ओरा ला का दिक्कत है
Mummy :अपने के कुछ बुझा है हमरा न साफ करे पड़ऽऽ है
Dada : तू रहे दीहऽऽ हम दुन्नू बाबा पोता धो देंगे, का बेटा।


शनिवार: अंक ८

  दुनिया की कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है: मनमोहन सिंह  यह उद्धरण इस तथ्य को दर्शाता है कि जब कोई विचार समय के अन...