Thursday, November 14, 2019

काग़ज़ की कलम से


कोरा काग़ज़ था!
लिखने वाले ने  लिखना चाहा...
हुआ ये कि उसे शब्द ना मिला।
काग़ज़ बोला - बेटा किसकी खोज में है .. अरे गिरा दे स्याही को जहां तहां , फिर सोचने के लिए पूरा पन्ना तुम्हारे सामने होगा। बस ध्यान ये रहे की स्याही पन्ने से बाहर न गिरे क्योंकि फिर सोचने की तनख्वाह बदल जाएगी। क्योंकि नीचे बेडशीट था।
लिखने बाला थोड़ा सनकी था उसने काग़ज़ की बात मान ली, उसने कलम तोड़ी और इंक उड़ेल दिया। हुआ ये कि पन्ने पर इंक का फव्वारा जैसा एक धब्बा सा लग गया।                                            लिखने बाला फिर से सोच में पड़ गया...
काग़ज़ फिर बोला-  किसकी खोज में हैं जनाब... अरे डूबा दे किसी पानी से भरे बर्तन में, फिर सोचने के लिए पूरा बर्तन भर पानी तेरे सामने होगा। बस ध्यान रहे  पीने योग्य पानी में मत डालना नहीं तो तनख्वाह बदल जाएगी ।
लिखने वाले ने ये भी आजमाया।
उसने इंक से रंगे काग़ज़ को एक पानी से भरे बाल्टी में डुबो दिया (शायद वो नाले में फेंकने के लिए रखा था)।
बाल्टी भर पानी रंगीन हो गया और वो काग़ज़ गल के फट गया।
लेकिन लिखने बाला अभी भी सोच में था कि आखिर ये काग़ज़ कहना क्या चाह रहा था। उसने ये बात अपने दोस्तों को सुनाया कुछ ध्यान से सुने,कुछ सुनकर हंसे और कुछ लोगों ने तो सुनना ही टाईम की बर्बादी समझा। अंततः उसे उत्तर उनमे से किसी दोस्त से नहीं मिला।
लिखने वाले ने फिर से सोचने की कोशिस की..... बहुत सोचने पर उसने पाया कि  --
पहली दफा काग़ज़ का कहना ये था कि अपने अस्त्रों को फैला कर के उनकी उपयोगिता तराशने की कोशिश करो, बस ध्यान ये रखना की उतने दूर में ही बिखेरना जितनी दूर में तुम्हारी निगाहें उसे आसानी से देख सकें नहीं तो फिर उपयोग करने के बजाय तुम उसे ही ढूंढते रह जाओगे, यानी तनख्वाह बदल जाएगी,
और दूसरी बार जब काग़ज़ ने देखा कि लिखने बाला अब भी सोच में है तो समझाया कि अपने अस्त्रों को दूसरी नजरिए से  देखिये, यानी पानी में भिगोने को कहा, बस ध्यान ये रहे की आप अभी अपने अस्त्र तराश रहे हैं इसलिए तराशे हुए चीजों को नष्ट करके ना तराशे, यथार्थ पीने योग्य पानी में ना डुबोयें।
..... लिखने बाला अज्ञानी अभी तक इसी उलझन में है कि उस काग़ज़ के सजीवता को सर्वोपरि समझे जो कि अपनी जान देकर ज्ञान दे गया या उसके दिए गए ज्ञान को सर्वोत्तम समझे जिसके लिए उसके दाता की जान चली गई।

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