Thursday, March 28, 2019

January's morning 2000

That January's morning 2000

A 50-60 years old lady carried an infant lying on her lap. A 3ft cot, a bed and a bowl of oil carried in her another hand. She was climbing on the stairs as if she was on the straight street.
When the grandfather saw, he said that she may fall down with her baby. But he could not even help because till then the woman had completed the journey of HIMALAYAS...
Love you grandma.
                           Your Kumãr

जनवरी की वो सुबह 

एक ५५-६० वर्ष की नारी बाएं हाँथ के सहारे १ माह के शिशु को गोद मे लिए हुए और दूसरी हाथ मे कांपते हुए 3ft का खटिया, बिस्तर और तेल की कटोरी लेकर बिना किसी से help लिए सीढ़ियों पर कुछ यूँ चढ़ रही थीं जैसे सीधी सड़क हो...
मन मे उल्लास और हाथों मे दम इतना था कि छोटी मोटी परेशानियां हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी पास आने की।
जब दादा ने देखा तो कहा कि "अपने भी गिरतय और बुतरुओ के गिरयतय"..चाह कर भी help ना कर सके क्यूँकि तबतक तो अबला ने हिमालय की यात्रा पूरी कर ली थी।
लव यू दादी
           आपका कुमार
Kuchh yu scene tha Jb hum aaye the.. 😄😄

Friday, March 22, 2019

इंटरनेट की पुरानी यादें...


जब 9th में थे तो nokia का एक फोन हुआ करता था।हाँ याद आया Nokia 2626. पापा मम्मी को बस ये पता था कि उस से सिर्फ बातें हो सकती थी। But हमको पता था कि उसमे इंटरनेट  भी चलता था। और इंटरनेट का मतलब बस google और facebook. Idea भी कमाल का कंपनी है हो किफायत मे ही काम चला देता था। एकंगरसराय पीएनबी  के नीचे एक photocopy का दुकान है वही से 5 rupees का 30mb valadity 1din का रीचार्ज करवाता था। और घर आते आते 5-6 बार चेक कर लेता था कि इंटरनेट चल रहा है या नहीं और mb कट रहा है कि नहीं। घर आके जैसे भगवान् को ध्यान करते हैं ना वैसे ही Setting पे Click करता और data connection ऑन करता। फिर web browser के bookmark को खोलता और google पर Fb सर्च करता था।1.5 इंच के स्क्रीन पर 3 min तक गोल चकरी घूमते घूमते welcome to Facebook show करता।खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता था।जल्दी जल्दी id और password डालता और फिर 3 min गोल गोल घूमने का इंतजार करता था। मुस्किल से खुलने के बाद गिने चुने फ़्रेंड्स की तस्वीरें देखकर यूँ खुश होता था जैसे कौची इनवेंट कर दिए हैं। फिर ठुकूर-ठुकूर (2g)टेक्नोलॉजी के जरिए कुछ लोगों से hyy byy करता था। तबतक क्लास का टाइम हो जाता था। क्लास से आता तो टेंशन रहता की 20 mb अभी और खतम करना है नहीं तो approx 3 rupee का हानि हो जाएगी और इधर ये भी डर की दादा डांटेंगें की पढ़े के त खेल करे मे लगल रहता है।तब भी किसी तरह से 12 बजे तक खतम कर ही देता था वो भी लालकिला, ताजमहल, गुलाब etc का pic. डाउनलोड करके।          
उस वक़्त सोचता था कि काश बड्डा सा फोन होता जिसमे ढेर सारे बैलेंस होते, और सब दोस्तों से खूब सारी बातें करते....
‌Aaj बड्डा सा फोन भी है,डाटा भी खूब हैं, कॉलिंग भी फ्री है, but वो सारे दोस्त कोशों दूर हैं।
‌miss you yaaron

Monday, March 18, 2019

गाँव की पार्टी


स्कूल से आया  तो मम्मी बताई की आज न्योता (निमंत्रण) आया है, पूर्वारी टोला से। मुंह में पानी भर आया और दिमाग assume करना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद जब क्रिकेट खेलने गया तो वहाँ सबने verify किया कि सबके पास न्योता आया है। और सब खुश थे कि एक साथ बैठकर खाएँगे आज।जल्दी- जल्दी एकाध मैच खेलकर घर आ गये सब। क्यूंकि डर था कि कहीं हम छूट ना जाएं। आज ना तो लालटेन साफ किया और ना ही पढ़ने को बैठा। दिमाग कही ठहर ही नहीं रहा था। तभी दादाजी बुलाए और पूछे की आज पढ़ नहीं  रहा है हो।लड़खड़ाते मुँह से निकला बाबा आज ना।दादा मेरे बहुत प्यारे हैं मान गए लेकिन गोद में  लेके ओरल ही शुरू कर दिए। मुझे भी मजा आया क्यूंकि सबकुछ तो याद था ही। 
     तभी एकाएक दरवाजे की खटख़टाहट सुनाई दी और गोद से उठकर दरवाजे की तरफ भागा और पीछे पीछे दादा। दरवाजे खोला तो दादा से एक आदमी बोले बीज्जै हको चचा (मतलब खाना स्टार्ट हो गया है)।उत्सुकता मेरी आसमान छूने लगी। फिर दादा एक हाथ से टार्च और  दूसरी हाथ से मेरी हाँथ को पकड़कर चले। 
जब पहुंचे तो किसी तरफ से सब्जी की महक ,किसी तरफ से मिठाइयों की सुगंध आ रही थी। तभी सब दोस्त धीरे धीरे पास आने लगे। और देखते ही देखते 8-10 महापुरुष एक जगह खड़ा हो गए। सब के दिल मे एक ही अभिलाषा थी कि कितना जल्दी जल्दी खाने को मिले। तभी प्रबंधक महोदय आए और सबको बैठाने लगे। हमसब बच्चे एक साथ बैठे और सबके  Guardian जस्ट ऑपोज़िट साइड में बैठे। और बार बार हमलोग को हल्ला करने से मना कर रहे थे। but हमनी कहाँ तो सुनाने बाले थे ।देखते देखते पत्तल(plate) परोसा जाने लगा। झटपट हमलोग अपने -अपने हाथ और पत्तल को धो लिया। तभी दादाजी बोले कि हम्मर दंतीया छूट ना गेलौ पवन (मेरे दादाजी हैंड मेड दाँत लगाते हैं वही वाला)।ना टार्च लिया ना चप्पल पहना, सरपट घर की तरफ भागा और एक साँस में दौड़कर ले आया। दादा खुश भी हुए और डांटे भी थोरा सा। तबतक परोसा जा चुका था but अभी खाना शुरू नहीं किया था लोगों ने क्यूंकि चटनी परोसना अभी भी बाकी था .
पत्तल की तरफ देखा तो खाने का बड़ी मन कर रहा था। लेकिन जबतक सबकुछ परोसा ना जाए तबतक हाँथ लगाना सख्त मना था। फिर भी किसी तरह से छुप छुपा कर आधा रसगूल्ला खा ही गए। चटनी परोसा गया और सब ने जी भर के खाया और फिर सारे दोस्त अपने अपने घर की तरफ चल दिए....

बचपन के वो दिन

                        बचपन की वो यादें...                  

सुबह में खाना खाते – खाते या कभी उस से पहले 5-6 लोगों की एक टोली,कुछ सहपाठी और कुछ जूनियर्स, मेरे घर के द्वार पर जमा होती थी, और उनके मुँह से एक ही बात निकलती थी पऽऽवऽऽनऽ…
ये सुनकर खाना खाने की रफ्तार 300km/h, और दादी की जिह्वा पे एक ही वाक्यांश repeat हो जाती थी “अब एरा खाल हो गेलौ”....मम्मी भी वही की “खा ले बेटा अभी ओखनी हीएँ परी हथिन”। इनलोगों को अपने शब्द पूरा करते-करते मेरा drybathe हो जाता था, फिर स्कूल ड्रेस किसी तरह से तिर खींच कर शरीर पे चढ़ जाता था। आँगन के सामने 5 खाने बाली अलमारी से कुछ कॉपी किताब और एक बोरा कंधे पर रखकर सरपट दरवाजे की तरफ भागता था (बैग का प्रचलन तो मेरे ज़िन्दगी मे इंटरमीडिएट से शुरू हुआ)। फिर शुरू होता था आजाद परिंदों का सुहाना सफर,उछलते-कूदते-गुनगुनाते हुए स्कूल की आधी दूरी तय करने के बाद सबके पाँव थम से जाते थे, और तब हमारे कोमल हाँथ काँटों मे छिपी गुलाब की कलियों को तोड़ने लगती थी। गुलाब बाली आंटी का संबोधन (चीचीए-भतिए तोड़ ले रे... ) सुनने से पहले सबके हाथ में एक – एक कली आ जाती थी। मुँह को मोटेर्साइकिल का भोंपू बनाकर इस कदर भागता था जैसे पकड़ा गए तो जबरदस्ती शादी कर दी जाएगी। स्कूल के सामने छोटा सा तालाब था वहाँ जाके सबके पैर रुकते थे और हांफते – हांफते देखते कि rose तो ठीक है न कि वो भी हाँफ रहा है। महीने मे 20 दिन तो 9 बजे से पहले ही पहुँच जाते थे, फटाफट बस्ता मंदिर के पीछे छिपा करके(तबतक 2-4 महापुरुष और शामिल हो जाते थे) खेलने लग जाते थे। जाड़े की धूप मे करेंट-बिजली, पहाड़-पानी, नुक्चोरीया (लुका-छिपी) खेलने मे वास्तव मे बड़ा मजा आता था। खेत में खेलते खेलते आरी पर हेडमास्टर साहिबा जिन्हें हमसब बड़े प्यार से बुढ़िया मैडम कहते थे, लायक भी थीं! दिख जाती तो सब रुक कर उनके पास आने का wait करते और पास आते ही national anthem की तरह सब एक साथ goood moornning madaaam चिल्लाते थे।फिर हम में से किसी एक को चाबी का गुच्छा (सुतरी में बंधा हुआ) मिल जाता था। वो महाशय भी खुद को मैडम का निजी आदमी समझ कर इतना खुश हो जाता कि जैसे Kiss मिल गया हो, फुदकते हुए जाके ताला खोलता। झारू – वारू लगने के पश्चात हमलोग का क्लास मे पदार्पण होता और उसके कुछ देर बाद sir आते। 1:30 बजे बिहार सरकार थाली लाने घर भेजती और फिर खाके पहुचाने का tension, जल्दी-जल्दी थाली घर पहुंचा के वापस स्कूल आता और सुबह का बचा हुआ टास्क पूरा करने फिर से खेत की तरफ। 4pm में छुट्टि होती पर हमलोगों की 3bje ही, घर पहुचते-पहुचते क्रिकेट का schedule set होता but मेरा selection pending में रहता था (due to mummy’s decision) तब भी किसी तरह से 4 बजे तक निकल ही जाता था, और संकुचाते हुए 6 बजे लौटता तो दर्जनो उपलब्धियां हासिल करने के बाद मूवी मे थोड़ा मार-धार का scene चलता। फिर कुछ यूँ मेरी सफाई की जाती जैसे FeSo4 लगे लोहे को saresh paper से की जाती है। रोते रोते लालटेन खोजता और सीसा साफ करके माँ सरस्वती का आवाह्न करता। फिर गरमा-गरम रोटियां खाता और सो जाता.........
Narrated by: Kumãr Pãvañ

शनिवार: अंक ७

  आतिश का नारा और धार्मिक कट्टरता से परे जब हम किसी धर्म के उसके विज्ञान की चेतना से खुद को जोड़ते हैं तो हमारा जीवन एक ऐसी कला का रुप लेता ...