Saturday, August 24, 2024

शनिवार: अंक ६





 शनिवार की दोपहर और झारखंड की बरसात में से अगर किसी एक को भी आपने जिया है तो आपका जीवन धन्य है। और अगर दोनों एकसाथ जी लिया तो प्रकृति को सिर्फ ये कह देना की मैं तुम्हरा कृतज्ञ हूं ये अपर्याप्त होगा। 

 ये और बात है की हरेक पहलू के कई कई आयाम होते हैं पर अगर आपको पूरा ब्रह्मांड का भी दर्शन करना है अगर तो एक निश्चित समय बिंदु पर किसी एक ही बिंदु को जिएं तो आपका दर्शन शायद समर्पित कहलाएगा अन्यथा हरेक ५ सेकेंड में शॉर्ट वीडियो के स्लाइड्स बदलने से न तो आप दर्शन कर पाइएगा और न ही उस दर्शन का दर्शन समझ पाइएगा।

 खैर हम कहां भटक गए... 

 अगर आपने अपने श्रवण इंद्रियों का बेहतर प्रयोग किया हो तो पिछले वीडियो में आपको दो ध्वनि अवश्य सुनाई दिया होगा, नहीं सुने अगर तो अब भी इयरफोन लगा के आंख बंद कर लीजिए। इन दो ध्वनियों में एक ध्वनि की फ्रीक्वेंसी दूसरे की अपेक्षा अधिक जान पड़ती है। अंतर मामूली नहीं है। ज्यादा फ्रीक्वेंसी वाली ध्वनि बारिश की बूंदों का एल्वेस्टर की छत से सीधा संपर्क करने से हुआ है। और दूसरी ध्वनि उन जलकणों के अल्वेस्टर से संपर्क के बाद ओहारी से टपकने की ध्वनि है। इसके अलावा आप और भी बहुत कुछ देख सुन या दर्शन कर सकते हैं इस वीडियो क्लिप से। 

 एक बात अगर आपसब के साथ साझा करूं तो ये कहना चाहता हुं कि आज हमारे जीवन में ठहराव बहुत निम्न स्तर पर आ चुका है। मैंने, हमारे शब्द का जिक्र किया है, आप मुझे खुद से भिन्न समझने की नासमझी बिलकुल भी न करें। आप भी इस पर सोचें कि आपके जीवन में आप कितना भाग भाग के जी रहे हैं और कितना ठहर ठहर के। 

 हो सकता है की मैं यहां धारा बदल दूं तो आप असहज हो जाएं पर क्या है की इस विशेष लिखावट की प्रकृति मुझे एक खास धारा पर विशेष बात चीत की इजाजत नहीं देता है। आप कहेंगे की अभी अभी ठहर के जीने की बात कह रहे थे अभी खुद भागने लग गए। तो मेरा इसपर यह कतई राय नहीं है की आप एक जगह विशेष पर ठहर ही जाएं। यूं तो ठहर जाएं तो शायद कुछ विशेष ही प्राप्त कर लौटेंगे पर अगर उतना नहीं तो इतना ही ठहर जाइए। 

 आज भादो कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि है, परसों जन्माष्टमी है। सावन गए आज ५ दिन बीत गया है। मधुमास कहे जाने की खासियत लिए ये सावन न जाने कितने कांवरियों का जल भालेनाथ को अर्पित करा दिया। अर्धवृद्ध सज्जन, उनसे कम उम्र वाले अधेड़, और कुछ हमउम्र भी, बाबा के यहां से होकर आ गए।

 लोग कहते हैं कि शिव समा रहे मुझमें और में शून्य हो रहा हूं। भाई आर्यभट्ट की भी शायद गणित में ५४ प्रतिशत आएगा अगर इसकी प्रामाणिकता मांग लो। न तो आप खुद ही देख लो, कोलकाता केश में कपिल सिब्बल और तुषार मेहता जी का क्या वकालत चल रही है। रक्षाबंधन बीता, पूर्णिमा को। राखी खुल गए होंगे ६६ नहीं अब अपडेट करके ६८ प्रतिशत युवाओं से भरे इस देश के रक्षाबंधित युवाओं की कलाई से। और न भी खुला होगा गिने चुने लोगों का तो क्या प्रमाण की उस राखी के मोतियों को गिनने भर का भी समय हो उनके पास।

 रेडियो के १००.५ मेगा हर्ट्ज पर हर घंटे के समाचार देने के बाद अगर कैफ़ी आज़मी और लता मंगेशकर की कोई ऐसी गीत बज जाए ~

शब-ए-इंतज़ार आखिर, शब-ए-इंतज़ार 

आखिर कभी होगी मुक़्तसर भी, 

कभी होगी मुक़्तसर भी

ये चिराग़ ये चिराग़ बुझ रहे हैं, 

ये चिराग़ बुझ रहे हैं मेरे साथ जलते जलते, 

मेरे साथ जलते जलते ये चिराग़ बुझ रहे हैं, 

ये चिराग़ बुझ रहे हैं - (३) मेरे साथ जलते जलते, मेरे साथ जलते जलते यूँही कोई मिल गया था, यूँही कोई मिल गया था सर-ए-राह चलते चलते, सर-ए-राह चलते चलते ...

 ~ तो रेडियो पर दूसरी फ्रीक्वेंसी लगाने या रेडियो को बंद करने से पहले जरा रुकिए इयरफोन को ठीक से एडजस्ट करके आवाज थोड़ा धीरे कीजिए और आंखे बंद करके ४~६ मिनट सुन के तो देखिए फिर बड़े बड़े स्क्रीन पर घंटों रील्स देखने से ज्यादा सुख न मिले तो कहिएगा।

 थोड़ा उत्तर मोड़ते हैं अब धारा तो ये सुनिए 

~ किय बालक तुहूं पंथ भुलल किय तू अइल कुराह जी 

 अरे नाही नागिन हम पंथ भुलल ना हम अइनी कुराह जी 

 अरे चाहूं तो अभी नाग नाथू गलिए गलिये डोरीआबूं जी ... 

खेलत गेंद गिरी जमुना जी में कृष्ण जी कूदी पड़े। 

अरे खेलत गेंद गिरी जमुना जी में कृष्ण जी कूदी पड़े।


इसी से मिलती जुलती एक और कृति पढ़िए 

लडिका है गोपाल लड़िका है गोपाल ,कूदी पड़े जमुना में 

लडि़का है गोपाल... कूदी पड़े जमुना में 

अरे जमुना में कूदे काली नाग नाथे 

फन पर हुअए सवार, कूदी पड़े जमुना में 

लडिका है गोपाल।

 आपकी उद्दंडता तब बाहर आती है जब आप सक्षम हों पर आपकी उद्दंडता तब ही अच्छी लगती है जब वो सार्थक हो उच्च उद्देश्य के लिए और निस्वार्थ किया गया हो। 

स्त्रीषु नर्म विवाहे च वृत्त्यर्थे प्राणसङ्कटे। गोब्राह्मणार्थे हिंसायां नानृतं स्याज्जुगुप्सितम् ॥ 

अर्थात: स्त्री को प्रसन्न करने के लिए

 हास-परिहास में 

 विवाह में

 किसी कन्या की प्रशंसा में 

 आजीविका की रक्षा के लिए

 प्राणसंकट उपस्थित होने पर

  गौ और ब्राह्मण की रक्षा के लिए 

 किसी को मृत्यु से बचाने के लिए 

 ~ इन विषयों में झुठ बोलना अच्छा माना हुआ है। 

 जरा सोंचिये की गइयों से अगाध प्रेम करने वाले कृष्ण , भोलेनाथ के गले में विराजमान वासुकी को प्रणाम करने वाले कृष्ण , कालिया के फन पर नृत्य करते हुए ही अच्छे लगते हैं। और जिस जीवन काल में वो नृत्य करते हैं वो हमें असाधारण लगता है पर जीवन की वास्तविकता से अगर मिला कर देखें तो आज भी के बच्चों में भी वो उत्साह पूर्ण मात्रा में दिखाई पड़ते हैं पर बात है की उनको एक जामवंत चाहिए जो उनके अंदर के हनुमान को जगा सके। उनकी गलती पर हतोत्साहित नहीं बल्कि एक संतुलित संस्कार देकर उसे ज्ञान दे सके।

 ~तो चलिए अब थोड़ी देर होने को है कमल सत्यार्थी जी की ४ पंक्तियां अपने जीवन में उतारने को पढ़िए ~

 बल पौरुष घुड़दौड़ यहां है 

 समर सतत आराम कहां है 

 बाजी लगी हुई है पगले

 फेंक विजय के दांव मुसाफिर 

छोड़ पेड़ की छांव

 मुसाफिर ,छोड़ पेड़ की छांव 

 दो और पढ़े लीजिए ...

 देख दुपहरी ढलती जाती

 छाया रूप बदलती जाती 

सूरज घूम चला पश्चिम में

 बहुत दूर है गांव मुसाफिर

 छोड़ पेड़ की छांव मुसाफिर, छोड़ पेड़ की छांव।




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