३अगस्त २०२५ श्रावण शुक्ल पक्ष अष्टमी
जब कोई रिश्ता आपको असीमित प्रेम और लगाव दे, इतना की आप कभी उसे बराबर ना चुका पाएं
तो आप उस रिश्ते को ज्ञान माग से लें
और उस भाव को अपने रिश्ते जो क उसी के समतुल्य हैं या अन्य रिश्तों पर प्रयोग करके देखें
यकीन मानिए आप कुछ अद्भुत काय कर रहे होंगे
और इसी माध्यम से आप अपनी उस रिश्ते के भाव को फ़ैला रहे होंगे जोक आपकी उनके प्रति कृतज्ञता को
सम्बोधित करती हुई आपको सुख देगी।
तत्कालीन उदाहरण मेरे द्वारा अनुभव किया गया है
मैं पूज्य दादाजी के दाह संस्कार के लिए घाट पे खड़ा था। लोग लकड़ी खरीदने के लिए गए तभी बारिश शुरू हुई मैं ,
मेरा छोटा भाई और बड़े पापा अकेले उनके पास रहे। और उसी समय मुझे रोना आया जो क उनकी मृत्यु के
पश्चात पहली दफा था जो इतना झकझोर कर रुलाया मुझे और काफी देर रुलाया। उनके साथ व्यतीत की गई
बहुत सारी बचपन से अबतक की घटनाएं कुछ मिनट में एक एक करके आती गई और मुझे रुलाती गई। एक पंिक्त
जो हरेक घटना के याद में रोने के पश्चात मेरे मन से नकली वो यही थी क
"आपने हमारे (मेरे एवं बाबा के ) रिश्ते
को इतना कुछ दया, मैं इसका ऋण अपने रिश्तों को अवश्य चुकाऊंगा और खास करके जब मैं दादा बनूंगा तब तो
मैं पक्का आपकी इस प्रेम को दोहराऊंगा। "