चांद और सूरज दो शक्तियाँ हैं ब्रह्मांड की,
एक ही मंडल में पृथक चमकना व्यर्थ थोड़ी है ।
किसी का चले जाना अंत थोड़ी है,
दूरियाँ का आशय किसी को खोना थोड़ी है ।
खैर जो भी है... तुम्हें खोना, खोना थोड़ी है,
क्या हुआ जो तुम बिछड़े , किसी को पा लेना भी पाना
थोड़ी है ।
तुम प्राकृतिक रहो इस धरा पर,
गुलाब जो पसंद हो हमे तोड़ लेना जायज थोड़े है।
गिली आंखें और सूखी ज़बान, (महसूस करना)
खैर...
नि:शब्दता संवाद का अंत थोड़ी है ।
आँखें ढंक कर सत्य से ओझल होके,
प्रेम के लिए प्रेमी से मोह करना जायज थोड़े है।
की क्या हुआ जो हम विलग हो गए,
सत्य को स्वीकार कर मुड़ जाना नाजायज़ थोड़े है।
ज़ख्मों से अनजान तुम भी नहीं हम भी नहीं,
ये घाव को गहरा होने से बचाना नाजायज़ थोड़े है।
अंजाम जो भी हो, पता नहीं.... पर
इक बार ये सोंचो की स्वार्थ में जीना जायज थोड़े है।
बेशक वो मान लें हमारी चाहतें
पर जल का तैलीय स्पर्श स्नान थोड़े है।
जिंदगी का एक नायाब तोहफा,
और उसे भी कुबूल ना करना आसान थोड़े है।
पल पल की मुलाकात और हर दूसरे पल की एक आह,
क्या कहें ! मुलाकात शारीरिक हो जरूरी थोड़े है।