के शहर बीच बगीचा हजार देखा है 
फक्र हो , गुलजार -ए -शादाब देखा है। 
आरजू , ऐतबार , ख़ाब , अर्चना.... 
भवानी तेरे द्वारे माथे हजार देखा है। 
काली घटा, जिसमें छुपा चांद देखा है, 
फक्र हो, हुस्न - ए - गुलाब देखा है।
मुस्कान, नजाकत, शराफत, शरारत ...
फक्र हो साहब तूने प्राकृतिक फुहार देखा है। 
रंगीन दोपहरी और मदहोश शाम देखा है, 
मर्यादा की दामन में प्रेयसी हमार देखा है। 
गुफ़्तगू, किलकारियाँ, बेपरवाही, जिम्मेवारियां...
हाँ साहब तूने संगीत ए खास सुना है 
परछाई में चाँदनी, पवन में महक पाया है, 
फक्र हो, तिरंगा लिए सरहद ए हिंद देखा है। 
जुनून , हिम्मत, देशभक्ति, कोप...
साहब तूने आज झलक ए हिन्दोस्तान देखा है। 
श्वेत ज़मी पर केशरिया अलंकार देखा है, 
धरा के बीच  पुष्पों का क्यार देखा है। 
हिफाजत, मोहब्बत, दिवानगी और क्या... 
साहब दऊ महीने बाद तूने बसंती खुमार देखा है। 
अंगारों के सिरहाने शबनमी बुखार देखा है, 
अश्रु की धार, माने रेशमी बौछार देखा है। 
हाँ खनक, झनक, महक और क्या... 
फक्र हो साहब आपने दुर्लभ झपास देखा है।