कहीं दूर से, तेरी खूशबू आयी है। 
तेरी गलियों में हूँ , निहारता हुआ। 
हर कदम पे, तमन्ना-ए- इश्क़ होगी। 
मिले तुम अगर, तो राह - ए - ज़िंदगी आसान होगी। 
ग़र ना मिले, तो मंजूर- ए - इश्क़ होगी । 
कहीं दूर पर्वत से, तेरे गीतों की ध्वनि आयी है। 
हर पग पे रस बदलें, कुछ यूँ नजाकत है तेरी। 
तुम तो तुम हो,स्वाद अपने हैं मेरे। 
मिले  तुम अगर तो, महफ़िल मे हम भी होंगे। 
ग़र ना मिले ,तो एक महफ़िल हमारी भी होगी। 
कि हर कतरा हो वाकिफ़ रग रग से, यूँ रास्ते हैं तुम्हारे। 
दीदार तो कसौटी ही है तुझे पाने की ,पाकर क्या देखूँ ?
तेरा यूँ नजरें फ़ेर लेना भी , इम्तिहान- ए -चाहत है हमारी। 
मिले तुम अगर तो, हम प्रकाश हो जाएं। 
ग़र ना मिले, तो यूँ समझो हम दृश्यमान हो जाएं। 
तमन्ना है आलिंगन हो तुम्हारा, और मधुमेह ना ले आए। 
बेशक तुम यूँ मिलो इस आटे में की मिष्ठान बन जाएं। 
गुलाब ख़्बाब दवा जहर जाम, क्या क्या रक्खा है तुमने सिरहाने में? 
मिले तुम अगर साकी, तो हम शराबी न हो जाएं। 
 ग़र ना मिले, तो हम पूरे शराब न हो जाएं। 
छनकती पायल तुम्हारी, चित्तचोर हो ये आम है। 
तेरी ही चोरी से खुद को चुराना, तेरा शर्त - ए- आम है। 
नियति का साथ, ये तो अचिन्त्य है रे पगली। 
मिले तुम अगर, तो  नियत ही पहचान बन जाए। 
ग़र ना मिले, तो शख्स नियति की पहचान बन जाए। 
तड़प की वेदना, विरह बनके पहुंचें ओ प्यारे। 
त्याग, तप, चाह - ये सब डाकिये हैं हमारे। 
धैर्य की स्याही वक़्त की जमीं पर उकेरें।
मिले तुम अगर, तो पत्र भी पवित्र हो जाए।
ग़र ना मिले, तो प्रेम पत्रकार बन जाए।
रश्म - ए - वफ़ा ही ऐसी है, तुझे पाने की।
कि हर आशिक, समृद्ध हो जाए। 
पाना, खोना तो कर्मों की उपज है सखी। 
मिले तुम अगर, तो बंजर पर स्वर्ण उग आए। 
ग़र ना  मिले, तो भी ये धरती धनवान बन जाए। 
क्या घटा है, तेरी वफ़ा कि ओ रे सखी। 
की सबका जीवन, किसानी होने को चाहे। 
ताज्जुब! गुड़ का प्रतिवचन शहद के चुंबन से!! 
सूर जो मिले तो, हुंकारों की शंखनाद हो उठे। 
ग़र ना मिले तो, गन्ने को शहद की माधुर्य मिल जाए।